"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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| quote = मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं। इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती है। यदि एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है, उसका धर्म कोई होना चाहिए, तो वह धर्म केवल [[बौद्ध धर्म]] ही हो सकता है। सभी धर्मों के घनिष्ठ अध्ययन के पच्चीस वर्षों के बाद यह दृढ़ विश्वास मेरे बीच बढ़ गया है।<ref>{{Cite web|url=http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/ambedkar_buddha/|title=The Buddha and His Dhamma, by Dr. B. R. Ambedkar|website=www.columbia.edu|accessdate=25 अप्रैल 2019}}</ref>}}
 
13 अक्तूबर 1956 आम्बेडकर ने एक पत्रकार परिषद ली, उन्होंने कहा — "मैं भगवान बुद्ध और उनके मूल धर्म की शरण जा रहा हूँ। मैं प्रचलित बौद्ध पन्थों से तटस्थ हूँ। मैं जिस बौद्ध धर्म को स्वीकार कर रहा हूँ, वह नव बौद्ध धर्म या [[नवयान]] हैं।<ref>{{cite book|last=प्रभाकर वैद्य|title=डॉ॰ आम्बेडकर आणि त्यांचा धम्म|year=|publisher=|location=|isbn=|page=99|url=|chapter=}</ref> 14 अक्टूबर 1956 को [[नागपुर]] शहर में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। प्रथम डॉ॰ आम्बेडकर ने अपनी पत्नी सविता एवं कुछ सहयोगियों के साथ भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा पारंपरिक तरीके से [[त्रिरत्न]] और [[पंचशील]] को अपनाते हुये [[बौद्ध धर्म]] ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने अपने 5,00,000 अनुयायियो को [[त्रिरत्न]], [[पंचशील]] और 22 प्रतिज्ञाएँ देते हुए [[नवयान]] बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया।<ref name="Columbia7"/> वे देवताओं के संजाल को तोड़कर एक ऐसे मुक्त मनुष्य की कल्पना कर रहे थे जो धार्मिक तो हो लेकिन ग़ैर-बराबरी को जीवन मूल्य न माने। हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके इसलिए आम्बेडकर ने अपने बौद्ध अनुयायियों के लिए [[बाइस प्रतिज्ञाएँ]] स्वयं निर्धारित कीं जो बौद्ध धर्म के दर्शन का ही एक सार एवं दर्शन है। यह प्रतिज्ञाएं हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति में अविश्वास, अवतारवाद के खंडन, श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान के परित्याग, बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों में विश्वास, ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह न भाग लेने, मनुष्य की समानता में विश्वास, बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग के अनुसरण, प्राणियों के प्रति दयालुता, चोरी न करने, झूठ न बोलने, शराब के सेवन न करने, असमानता पर आधारित हिंदू धर्म का त्याग करने और बौद्ध धर्म को अपनाने से संबंधित थीं।<ref>http://thewirehindi.com/21396/bhimrao-ambedkar-buddhism-dalit-dhammadeeksha/amp/</ref> [[नवयान]] लेकर आम्बेडकर और उनके समर्थकों ने विषमतावादी [[हिन्दू धर्म]] और [[हिन्दू दर्शन]] की स्पष्ट निंदा की और उसे त्याग दिया। आम्बेडकर ने दुसरे दिन 15 अक्टूबर को फीर वहाँ अपने 2 से 3 लाख अनुयायियों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी, यह वह अनुयायि थे जो 14 अक्तुबर के समारोह में नहीं पहुच पाये थे या देर से पहुचे थे। आम्बेडकर ने नागपूर में करीब 8 लाख लोगों बौद्ध धर्म की दीक्षा दी, इसलिए यह भूमी [[दीक्षाभूमि]] नाम से प्रसिद्ध हुई। तिसरे दिन 16 अक्टूबर को आम्बेडकर [[चंद्रपुर]] गये और वहां भी उन्होंने करीब 3,00,000 समर्थकों को बौद्ध धम्म की दीक्षा दी।<ref name="Columbia7"/><ref>{{cite web| last = Sinha| first = Arunav|url=http://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/Monk-who-witnessed-Ambedkars-conversion-to-Buddhism/articleshow/46925826.cms| title = Monk who witnessed Ambedkar’s conversion to Buddhism| deadurl=no| archiveurl=https://web.archive.org/web/20150417154149/http://timesofindia.indiatimes.com/city/lucknow/Monk-who-witnessed-Ambedkars-conversion-to-Buddhism/articleshow/46925826.cms| archivedate = 17 April 2015| df = dmy-all}}</ref> इस तरह केवल तीन दिन में आम्बेडकर ने स्वयं 11 लाख से अधिक लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर विश्व के बौद्धों की संख्या 11 लाख बढा दी और [[भारत में बौद्ध धर्म]] को पुनर्जिवीत किया। इस घटना से कई लोगों एवं बौद्ध देशों में से अभिनंदन प्राप्त हुए। इसके बाद वे [[नेपाल]] में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन मे भाग लेने के लिए [[काठमांडू]] गये। वहां वह काठमांडू शहर की दलित बस्तियों में गए थे। नेपाल का आंबेडकरवादी आंदोलन, दलित नेताओं द्वारा संचालित किया जाता है, तथा नेपाल के अधिकांश दलित नेता यह मानते हैं कि "आम्बेडकर का दर्शन" ही जातिगत भेदभाव को मिटाने में सक्षम है।<ref>{{Cite web|url=https://www.forwardpress.in/2014/06/nepals-dalits-should-turn-to-ambedkar-gahatraj-hindi/|title=आंबेडकर से जुड़ें नेपाल के दलित : गहतराज|first=Vidya Bhushan Rawat विद्याभूषण|last=रावत|date=1 जून 2014|website=फॉरवर्ड प्रेस|accessdate=25 अप्रैल 2019}}</ref><ref name="Docker"/> उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि ''[[बुद्ध]] याऔर [[कार्ल मार्क्स]]'' को [[2 दिसंबर]] [[1956]] को पूरा किया।<ref>[http://www.ambedkar.org/ambcd/20.Buddha%20or%20Karl%20Marx.htm Buddha or Karl Marx&nbsp;– Editorial Note in the source publication: Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Vol. 3] {{webarchive|url=https://web.archive.org/web/20120319041541/http://www.ambedkar.org/ambcd/20.Buddha%20or%20Karl%20Marx.htm |date=19 March 2012 }}. Ambedkar.org. Retrieved on 12 August 2012.</ref>
 
==निधन==