"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर
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Sandesh9822 (वार्ता | योगदान) →धर्म परिवर्तन की घोषणा: गांधी की प्रतिक्रिया टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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<blockquote>"हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा!"</blockquote>
उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया।<ref>{{Cite web|url=http://www.navodayatimes.in/news/khabre/why-dr-b-r-ambedkar-converted-to-buddhism/59020/|title=हिन्दू धर्म छोड़कर क्यों बौद्ध धर्म के हुए अम्बेडकर?|date=14 अक्तू॰ 2017|website=www.navodayatimes.in|accessdate=25 अप्रैल 2019}}</ref> उन्होंने अपनी इस बात को भारत भर में कई सार्वजनिक सभाओं में भी दोहराया। इस धर्म-परिवर्तन की घोषणा के बाद हैदराबाद के [[इस्लाम]] धर्म के [[निज़ाम]] से लेकर कई [[ईसाई]] मिशनरियों ने उन्हें करोड़ों रुपये का प्रलोभन भी दिया पर उन्होनें सभी को ठुकरा दिया। निःसंदेह वो भी चाहते थे कि दलित समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार हो, पर पराए धन पर आश्रित होकर नहीं बल्कि उनके परिश्रम और संगठन होने से स्थिति में सुधार आए। इसके अलावा आम्बेडकर ऐसे धर्म को चुनना चाहते थे जिसका केन्द्र मनुष्य और नैतिकता हो, उसमें स्वतंत्रता, समता तथा बंधुत्व हो। वो किसी भी हाल में ऐसे धर्म को नहीं अपनाना चाहते थे जो वर्णभेद तथा छुआछूत की बीमारी से जकड़ा हो और ना ही वो ऐसा धर्म चुनना चाहते थे जिसमें अंधविश्वास तथा पाखंडवाद हो।<ref name="Columbia5"/> 21 मार्च, 1936 के ‘हरिजन’ में गांधी ने लिखा की, 'जबसे डॉक्टर आंबेडकर ने धर्म-परिवर्तन की धमकी का बमगोला हिन्दू समाज में फेंका है, उन्हें अपने निश्चय से डिगाने की हरचन्द कोशिशें की जा रही हैं.' यहीं गांधी जी आगे एक जगह लिखते हैं, 'हां ऐसे समय में (सवर्ण) सुधारकों को अपना हृदय टटोलना जरूरी है। उसे सोचना चाहिए कि कहीं मेरे या मेरे पड़ोसियों के व्यवहार से दुखी होकर तो ऐसा नहीं किया जा रहा है। ...यह तो एक मानी हुई बात है कि अपने को सनातनी कहने वाले हिन्दुओं की एक बड़ी संख्या का व्यवहार ऐसा है जिससे देशभर के हरिजनों को अत्यधिक असुविधा और खीज होती है। आश्चर्य यही है कि इतने ही हिन्दुओं ने हिन्दू धर्म क्यों छोड़ा, और दूसरों ने भी क्यों नहीं छोड़ दिया? यह तो उनकी प्रशंसनीय वफादारी या हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता ही है जो उसी धर्म के नाम पर इतनी निर्दयता होते हुए भी लाखों हरिजन उसमें बने हुए हैं।'<ref>https://satyagrah.scroll.in/article/106183/the-relationship-of-ambedkar-and-gandhi-series-part-1</ref>
आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 वर्ष तक के समय के बीच उन्होंने ने विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया। उनके द्वारा इतना लंबा समय लेने का मुख्य कारण यह भी था कि वो चाहते थे कि जिस समय वो धर्म परिवर्तन करें उनके साथ ज्यादा से ज्यादा उनके अनुयायी धर्मान्तरण करें। आम्बेडकर बौद्ध धर्म को पसंद करते थे क्योंकि उसमें तीन सिद्धांतों का समन्वित रूप मिलता है जो किसी अन्य धर्म में नहीं मिलता। बौद्ध धर्म प्रज्ञा (अंधविश्वास तथा अतिप्रकृतिवाद के स्थान पर बुद्धि का प्रयोग), करुणा (प्रेम) और समता (समानता) की शिक्षा देता है। उनका कहना था कि मनुष्य इन्हीं बातों को शुभ तथा आनंदित जीवन के लिए चाहता है। देवता और आत्मा समाज को नहीं बचा सकते। आम्बेडकर के अनुसार सच्चा धर्म वो ही है जिसका केन्द्र मनुष्य तथा नैतिकता हो, [[विज्ञान]] अथवा बौद्धिक तत्व पर आधारित हो, न कि धर्म का केन्द्र [[ईश्वर]], [[आत्मा]] की मुक्ति और [[मोक्ष]]। साथ ही उनका कहना था धर्म का कार्य [[विश्व]] का पुनर्निर्माण करना होना चाहिए ना कि उसकी उत्पत्ति और अंत की व्याख्या करना। वह जनतांत्रिक समाज व्यवस्था के पक्षधर थे, क्योंकि उनका मानना था ऐसी स्थिति में धर्म मानव जीवन का मार्गदर्शक बन सकता है। ये सब बातें उन्हें एकमात्र बौद्ध धर्म में मिलीं।<ref>{{Cite web|url=https://m.aajtak.in/general-knowledge-in-hindi/history-general-knowledge-in-hindi/story/baba-bhimrao-ambedkar-converted-10-lakh-dalit-in-buddhism-tedu-958251-2017-10-14|title=इसलिए बाबा अंबेडकर ने लाखों दलितों के साथ अपनाया था बौद्ध धर्म!|website=https://m.aajtak.in|accessdate=25 अप्रैल 2019}}</ref>
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