"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

बाहरी कड़ियाँ: आंबेडकर इंदौर के नहीं थे, वो केवल जन्म से 5 वर्ष आयु तक इंदौर जिले में रहे
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[[File:Cover page of Dr. Babasaheb Ambedkar's 'Mooknayak'.jpg|thumb|200px|मूकनायक का 31 जनवरी 1920 का पहला अंक]]
 
31 जनवरी 1920 को बाबासाहब ने अछूतों के उपर होने वाले अत्याचारों को प्रकट करने के लिए "[[मूकनायक]]" नामक अपना पहला मराठी [[पाक्षिक]] पत्र शुरू किया। इसकेये पहला दलित पाक्षिक पत्र था। 'मूकनायक' यानी "मूक लोगों का नायक"। मूकनायक के संपादक आम्बेडकर व पाण्डुराम नन्दराम भटकर थे। इस अखबारपाक्षिक के शीर्ष भागोंभाग पर संत [[तुकाराम]] के वचन छपते थे। इसकेमूकनायक के लिए कोल्हापुर संस्थान के छत्रपति [[शाहु महाराज]] द्वारा 25,000 रूपये की आर्थिक मदत भी मिली थी। ‘मूक नायक’'मूकनायक' सभी प्रकार से मूक-दलितों की ही आवाज थी, जिसमें उनकी पीड़ाएं बोलती थीं इस पत्र ने दलितों में एक नयी चेतना का संचार किया गया तथा उन्हें अपने अधिकारों के लिए आंदोलित होने को उकसाया। आम्बेडकर पढाई के लिए विलायत गये और यह पत्र आर्थिक अभावों के चलते 1923 में बंद पड गया, लेकिन एक चेतना की लहर दौड़ाने के अपने उद्देश्य में कामयाब रहा। मूकनायक की आरंभिक दर्जनभर संपादकीय टिप्पणियां आम्बेडकर ने स्वयं लिखी थी। संपादकीय टिप्पणियों को मिलाकर आम्बेडकर के कुल 40 लेख ‘मूकनायक’ में छपे जिनमें मुख्यतः जातिगत गैर बराबरी के खिलाफ आवाज बुलंद की गई है। ‘मूकनायक’ के दूसरे संपादक ध्रुवनाथ घोलप और आम्बेडकर के बीच विवाद होने के कारण तथा आर्थिक अभावों के चलते इसका प्रकाशन अप्रैल 1923 में बंद हो गया। उसके चार साल बाद 3 अप्रैल 1927 को आम्बेडकर ने दूसरा मराठी पाक्षिक ‘[[बहिष्कृत भारत]]’ निकाला।<ref>http://velivada.com/2017/07/23/babasaheb-ambedkar-newspapers-started/</ref>
 
मूकनायक के प्रवेशांक की संपादकीय में आम्बेडकर ने इसके प्रकाशन के औचित्य के बारे में लिखा था, "बहिष्कृत लोगों पर हो रहे और भविष्य में होनेवाले अन्याय के उपाय सोचकर उनकी भावी उन्नति व उनके मार्ग के सच्चे स्वरूप की चर्चा करने के लिए वर्तमान पत्रों में जगह नहीं। अधिसंख्य समाचार पत्र विशिष्ट जातियों के हित साधन करनेवाले हैं। कभी-कभी उनका आलाप इतर जातियों को अहितकारक होता है।" इसी संपादकीय टिप्पणी में आम्बेडकर लिखते हैं, "[[हिन्दू]] समाज एक [[मीनार]] है। एक-एक [[जाति]] इस मीनार का एक-एक तल है और एक से दूसरे तल में जाने का कोई मार्ग नहीं। जो जिस तल में जन्म लेता है, उसी तल में मरता है।" वे कहते हैं, "परस्पर रोटी-बेटी का व्यवहार न होने के कारण प्रत्येक जाति इन घनिष्ठ संबंधों में स्वयंभू जाति है। रोटी-बेटी व्यवहार के अभाव कायम रहने से परायापन स्पृश्यापृश्य भावना से इतना ओत-प्रोत है कि यह जाति हिंदू समाज से बाहर है, ऐसा कहना चाहिए।"<ref>https://www.forwardpress.in/2017/07/ambedkars-journalism-and-its-significance-today/</ref>
 
===बहिष्कृत भारत===