"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर
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[[File:Cover page of Dr. Babasaheb Ambedkar's 'Mooknayak'.jpg|thumb|200px|मूकनायक का 31 जनवरी 1920 का पहला अंक]]
31 जनवरी 1920 को बाबासाहब ने अछूतों के उपर होने वाले अत्याचारों को प्रकट करने के लिए "[[मूकनायक]]" नामक अपना पहला मराठी [[पाक्षिक]] पत्र शुरू किया।
मूकनायक के प्रवेशांक की संपादकीय में आम्बेडकर ने इसके प्रकाशन के औचित्य के बारे में लिखा था, "बहिष्कृत लोगों पर हो रहे और भविष्य में होनेवाले अन्याय के उपाय सोचकर उनकी भावी उन्नति व उनके मार्ग के सच्चे स्वरूप की चर्चा करने के लिए वर्तमान पत्रों में जगह नहीं। अधिसंख्य समाचार पत्र विशिष्ट जातियों के हित साधन करनेवाले हैं। कभी-कभी उनका आलाप इतर जातियों को अहितकारक होता है।" इसी संपादकीय टिप्पणी में आम्बेडकर लिखते हैं, "[[हिन्दू]] समाज एक [[मीनार]] है। एक-एक [[जाति]] इस मीनार का एक-एक तल है और एक से दूसरे तल में जाने का कोई मार्ग नहीं। जो जिस तल में जन्म लेता है, उसी तल में मरता है।" वे कहते हैं, "परस्पर रोटी-बेटी का व्यवहार न होने के कारण प्रत्येक जाति इन घनिष्ठ संबंधों में स्वयंभू जाति है। रोटी-बेटी व्यवहार के अभाव कायम रहने से परायापन स्पृश्यापृश्य भावना से इतना ओत-प्रोत है कि यह जाति हिंदू समाज से बाहर है, ऐसा कहना चाहिए।"<ref>https://www.forwardpress.in/2017/07/ambedkars-journalism-and-its-significance-today/</ref>
===बहिष्कृत भारत===
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