"दौलत (1982 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
पंक्ति 1:
अमृतम पत्रिका, ग्वालियर मप्र से साभार...
 
पैसा, धन-दौलत का महत्व क्या है...
जीवन में पैसा बहुत जरूरी है। पैसा 5 इंद्रियों को चलाने वाली छठी इन्द्रिय है।
 
!!बिन पैसा सब सून!!
 
ये नई कहावत है। पैसा न होने से व्यक्ति सदैव शून्य को निहारते-निहारते एक दिन सुन्न होकर निपट जाता है।
 
पैसा है तो सब नक्शा नवींन है
 
पैसा नही हाथ तो धेले के दिन हैं।
 
पैसे से ही सारे रिश्ते-नाते, बहीखाते, पेन के पाते चल पाते हैं। पैसे हों तो दूध-दही सही मिलता है।
 
सोना तो बिस्तर पर मिल जाता है, पर गहना लेना है, तो पैसा चाहिए। धन से मन प्रसन्न रहता है। टनाटन रहने के लिए पैसा आवश्यक है। पैसे से ही व्यक्ति की बुद्धि का आकलन होता है।
 
संस्कृत के एक श्लोक का हिंदी अर्थ जाने…
 
टका कर्मा, टका धर्मा
 
टका से ही टकाटक है ।
 
टका नही है पास तो
 
सुबह से ही खटाखट है ।
 
टका से ही सब ऐशो-आराम
 
टके से ही सब चकाचक है ।
 
टके से ही नाम प्रसिद्धि
 
काम होते फटाफट है ।
 
वैसे भी ज्यादातर लोगों का जीवन कड़की में ही निकल जाता है। जीवन की वास्तविकता बस इतनी सी है
 
बचपन मेंउपनिषदों होम वर्क जवानी मे होम लोन और बुढापे में होम अलोन.... अब बैठ कर करो अनुलोम विलोम!
 
पैसा नहीं है पास, तो कोई नहीं है खास।
 
पैसा शक्ति, ताकत सब कुछ है।
 
वर्तमान में मान-सम्मान, अच्छा सामान पाने के लिए पैसा चाहिए।
 
पैसा होने पर ही दुनिया हाल-चाल पूछती है।
 
लोग पूछेंगे आप कैसे हैं।
 
जब तक जेब में पैसे हैं।।
 
दुनिया में ये चलन चल रहा है।
 
पैसे के बारे में यजुर्वेद ४/२८ में एक ऋचा का उल्लेख है कि
 
!!उदायुषा स्वायुषोस्थाम!!
 
हमें दीर्घ और शुभ जीवन के लिए
 
सदैव उद्योगशील रहते कर्म में रत रहना चाहिए।
 
पैसा तभी आता है।
 
आलसी, लापरवाह, झूठ-फरेब, छल-कपट, दगा करने वालों के पास पैसा आ तो जाता है लेकिन टिकता नहीं है। लक्ष्मी भी ऐसे लोगों के घर आकर पछताती है।
 
ग्रामीण बुजुर्गों की सूक्तियां हैं कि-
 
औरत पछतानी पति मूर्ख पाएं के।
 
लक्ष्मी पछतानी घर नीचन के जाएं के।।
 
हम धन-पैसा गलत कामों से कमा तो लेते हैं पर यह ज्यादा दिनों तक रुकता नहीं है। पैसा रोग-बीमारी, झगड़ा, क्लेशों में बर्बाद हो जाता है।
 
कहते हैं कि-
 
पुण्य की जड़ पाताल में,
 
पाप की जड़ अस्पताल में
 
होती है।
 
पैसा कमाने के लिए हमे बदलना होगा। जोखिम उठाने से ही धन आता है। पैर में मोच हो और छोटी सोच हो, तो पैसे आयेंगे कैसे?
 
हमारी सफलता में अवरोध करने वाला वास्तविक कैदी मस्तिष्क की शिराओं में है।
 
उसकी मुक्ति आसान नहीं है।
 
लेकिन कठिन भी नहीं है।
 
दृढ़ इच्छाशक्ति, गहन आत्मबल
 
ओर सम्बल द्वारा हम छोटी सोच के कैद मुक्त हो सकते हैं।
 
भय-भ्रम, संदेह और शंका ये सब मनुष्य
 
के लिए आत्मघाती हैं।
 
विश्वास का टूटना मानव का मरना है।
 
विश्वासों की बेलाग श्रृंखला के बीच
 
रहने वाले लोगों के लिए
 
मोतियों सहित कलिंग-हाथी और
 
मणि सहित नाग पा लेना सम्भव है।
 
पैसा बढ़ाने में इस पुरानी बात में भी दम है-
 
उन्नति के लिए आचरण, गति के लिए चरण जरूरी है ।
 
काम का आरम्भ करते समय ज्यादा बुद्धि मत लगाओ।कर्मो का भरोसा हो, तो लोग परोसा लेकर पीछे दौड़ते हैं। किसी चीज का इतना एनालेसिस न करें की दिमाग को पैरालाइसिस हो जाए। ईश्वर ने जिंदगी जीने के लिए दी है, पोस्टमार्टम के लिए नही….
 
मनीप्लांट लगाने से लक्ष्मी नहीं आती इतना स्मरण रखो।
 
आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि-
 
यस्यार्थस्तस्य मित्राणि यस्यार्थस्तस्य बान्धवाः!
 
यस्यार्थः स पुमांल्लोके यस्यार्थः स च जीवति!!
 
अर्थ--जिसके पास पैसा, धन-संपदा है उसी के मित्र, नातेदार होते हैं। अर्थात् धनवान से सब मित्रता करते हैं, अन्यथा उससे दूर रहने की कोशिश करते हैं। निर्धन से मित्रता कोई नहीं करना चाहता। इसी प्रकार जो धनवान हो उसी के बंधु-बांधव होते है। नाते-रिश्तेदार धनवान से ही संबंध रखते हैं, अन्यथा उससे दूरी बनाए रहने में ही भलाई देखते हैं। जिसके पास धन हो वही पुरुष माना जाता है यानी उसी को प्रतिष्ठित, पुरुषार्थवान, कर्मठ समझा जाता है। और धनवान व्यक्ति ही जीने का सुख पाता है। उसे धनहीन की तरह जिंदगी ढोनी नहीं पड़ती है।
 
उपनिषदों की अपनी अलग मान्यता है कि-
 
न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य:।
 
कठोपनिषद १/१/२७
 
मनुष्य की तृप्ति लौकिक धन से नहीं हो सकती। सबसे बड़ा धन स्वस्थ्य शरीर है।
 
ग्वालियर तरफ के लोगों की विचारधारा भी विचित्र है। वे मानते हैं कि-
 
खालो पी लो मौज उड़ा लो, कर लो चूतड़ चौड़े।
 
बिना भाग्य के कुछ नहीं मिलता, सुन लो बहन के लोडे।
 
कभी सौभाग्य से पैसा आ जाये, तो याद रखना कि-
 
मत करना जलील किसी
 
फकीर को अपनी चौखट पर,
 
कटोरा बदलने में खुदा
 
बड़ा माहिर होता है।।
 
अंत में एक बात और बताना चाहेंगे कि-
 
दानं भोगं नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
 
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतिया गतिर्भवति।।
 
(पंचतंत्र की कहानियां से साभार)
 
अर्थात—: धन की नियति/प्रकृति तीन होती हैं । पहली है पैसे का दान, दूसरा धन का भोग और तीसरा है- सम्पत्ति का नाश । जो व्यक्ति उसे न किसी को देता है और न ही उसका स्वयं भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति होती है, अर्थात् उसका नाश होना निश्चित है!
 
{{Infobox Film
| name = दौलत
Line 15 ⟶ 172:
}}
'''दौलत''' 1982 में बनी [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] की फ़िल्म है।
 
== संक्षेप ==
== चरित्र ==