"सत्यार्थ प्रकाश": अवतरणों में अंतर

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'''सत्यार्थ प्रकाश''' [[आर्य समाज]] का प्रमुख ग्रन्थ है जिसकी रचना [[दयानन्द सरस्वती सरस्वती]] ने १८७५ ई में [[हिन्दी]] में की थी।<ref name="क्रान्त">{{cite book |last1=क्रान्त |first1= |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate= |edition=1 |series= |volume=2 |date= |year=2006 |month= |origyear= |publisher=प्रवीण प्रकाशन |location=नई दिल्ली |language=hi |isbn=81-7783-119-4 |oclc= |doi= |id= |page=348-349 |pages= |chapter= |chapterurl= |quote= |ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp= |archive-url=https://web.archive.org/web/20131014175453/http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |archive-date=14 अक्तूबर 2013 |url-status=live }}</ref>ग्रन्थ की रचना का कार्य स्वामी जी ने [[उदयपुर]] में किया। लेखन-स्थल पर वर्तमान में सत्यार्थ प्रकाश भवन बना है। <ref>[https://www.bhaskar.com/news/136-years-ago-udaipur-was-written-in-the-first-volume-of-modern-hindi-39satyarth-prakash39-the-author-was-swami-dayanand-saraswati-032050-2723154.html 136 साल पहले उदयपुर में लिखा गया था आधुनिक हिंदी का पहला ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ ]</ref> प्रथम संस्करण का प्रकाशन [[अजमेर]] में हुआ था। उन्होने १८८२ ई में इसका दूसरा संशोधित संस्करण निकाला। अब तक इसके २० से अधिक संस्करण अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
 
सत्यार्थ प्रकाश की रचना का प्रमुख उद्देश्य [[आर्यवैदिक समाज]]धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार था। इसके साथ-साथ इसमें [[ईसाई]], [[इस्लाम]],[[कबीरपंथ , बौद्ध,]] एवं अन्य कई पन्थों व मतों का खण्डन भी है। उस समय हिन्दू शास्त्रों का गलत अर्थ निकाल कर [[हिन्दू धर्म]] एवं संस्कृति को बदनाम करने का षड्यन्त्र भी चल रहा था। इसी को ध्यान में रखकर महर्षि दयानन्द ने इसका नाम ''सत्यार्थ प्रकाश'' (सत्य + अर्थ + प्रकाश) अर्थात् ''सही अर्थ पर प्रकाश डालने वाला'' (ग्रन्थ) रखा।
 
सत्यार्थ प्रकाश के बारे में वीर सावरकर लिखते है की इस पुस्तक को पढ़ने व पढ़वाने में विशेष ध्यान देते थे. इस पुस्तक को पढ़ अपने सत्य सनातन वैदिक धर्म की मान मर्यादा का ज्ञान व धर्म व राष्ट्र के प्रति भावना जाग उठती है.
आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती की पुस्तक [[सत्यार्थ प्रकाश]] पर [[रामपाल (हरियाणा)|संत रामपाल जी महाराज]] ने टिप्पणी की, किस तरह बंगाल के राजा राम मोहन राय की प्राथना समाज जो की अंग्रेजों द्वारा मोहन राय को स्थापना करने को बोला गया जिसका उद्देश सिर्फ हिंदू धर्म में फुट डालना तथा लार्ड मैकाले की योजना भारत में फैलाना था जब आर्य समाज की स्थापना दयानंद सरस्वती ने की और वह कार्य नहीं कर सकी तो अंग्रेजो द्वारा दयानंद सरस्वती जी को प्राथना समाज को ही आर्य समाज में परिवर्तन कर के हिंदू विरोधी कार्य में ढाल दिया गया जिस पर आर्य समाज के लोग भड़क गए | [[सतलोक आश्रम]] और आर्य समाज के बीच टकराव हुआ |
 
== सत्यार्थ प्रकाश का प्रयोजन ==