"कुड़माली भाषा": अवतरणों में अंतर

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कुड़माली [[बाङ्ला भाषा|बांग्ला]], [[ओड़िया भाषा|ओड़िया]] और [[असमिया भाषा|असमिया]] से अलग एक कबिलायी भाषा है, इसके उत्पत्ति का स्रोत कुड़मि जाति के सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है, कुड़माली भाषा की अपनी निजी विशेषतायें हैं जो द्रविड़ भाषा परिवार से संबंध रखता है{{उद्धरण आवश्यक}}, जो इसके ध्वनिगत, भाषागत एवं व्याकरण विशेषताओं में परिलक्षित होती है, इसके अपने भाषागत मुहावरे, लोकोक्तियाँ, सुर, ताल, लय, विविध गीत एवं व्यापक ओर समर्थ भरा पूरा लोकसाहित्य है, इसके पार्थक्य के आधारभूत कारण हैं। इसमें लोक-गीतों, लोक-कथाओं, लोकोक्तियों और पहेलियों की संख्या बहुत है। कुड़माली लोकसाहित्य में लोकगीतों के बाद लोक-कथाओं, लोकगाथा, पहेलियों और लोकोक्तियों का स्थान है। इन लोकगीतों, लोक-कथाओं एवं लोकोक्तियों में कुड़माली जीवन की छाप स्पष्ट परिलक्षित होती है। इन विधाओं की विविध रचनाओं से ज्ञात होता है कि कुड़माली साहित्य जितना समृद्ध है, भाव-सौन्दर्य की दृष्टि से भी उतना ही उत्कृष्ट।
इसका साहित्य आज से 2700 से पुरानी है, जो बोध काल की सबसे पुरानी बंगाली लिपि साहित्य [[चर्यापद]] में मिलता है।{{उद्धरण आवश्यक}}
 
==सन्दर्भ==
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* कुरमाली साहित्य: विविध सन्दर्भ, लेखक डा. एच.एन. सिंह, प्रकाशक- कुरमाली भाषा परिषद्, राँची
* कुरमाली लोक गीत: साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन, डा. संतोष कुमारी जैन।
* कुडमालि फुल-फर आर भाड-आर, कला संस्कृति विकास केंद्र, आसनतालिया, चक्रधरपुर.
* कुरमालि कृष्ण-काव्य : डॉ० विजय कुमार मुखर्जी
* कुरमाली लोक साहित्य : डॉ० गीता कुमारी सिंह
* जनजाति परिचित : लक्ष्मीकांत महतो
 
==इन्हें भी देखें==
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==सन्दर्भ==
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{{Reflist}}
 
[[श्रेणी:झारखंड की भाषाएँ]]