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'''जयशंकर प्रसाद''' (30 जनवरी 1889-14 15 नवंबरजनवरी 1937)<ref name= Sankey sainiथा>अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं॰-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई॰,पृ॰-2 (केवल तिथि एवं संवत् के लिए। ईस्वी यहाँ भी मोटे तौर पर संवत् में से 57 घटाकर1889 लिख दी गयी है जो कि गलत है, क्योंकि 1 जनवरी से लेकर चैत्र कृष्ण अमावस्या तिथि तक के ईस्वीवर्ष के लिए संवत् में से 56 वर्ष ही घटाये जाने चाहिए क्योंकि 1 जनवरी से इस तिथि तक ईस्वीवर्ष तो नया हो गया रहता है लेकिन संवत् पुराना ही रहता है। इसकी अगली तिथि अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया संवत् आरंभ होने से उस तारीख से 31 दिसंबर तक 57 वर्ष घटाने चाहिए)।</ref><ref name="ब">(क)[[हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास]], भाग-१०, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-२०२८ वि॰ (=१९७१ई॰), पृ॰-१४५(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख) www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।</ref>, [[हिन्दी]] कवि, [[नाटककार]], कहानीकार, [[उपन्यासकार]] तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी के [[छायावाद|छायावादी युग]] के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से [[छायावाद]] की स्थापना की जिसके द्वारा [[खड़ीबोली]] के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि [[जीवन]] के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और [[कामायनी]] तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के, प्रगतिशील एवं नयी [[कविता]] दोनों धाराओं के, प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि 'खड़ीबोली' हिन्दी [[काव्य]] की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।
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'''जयशंकर प्रसाद''' (30 जनवरी 1889- 15 नवंबर 1937)<ref name= Sankey sainiथा>अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं॰-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई॰,पृ॰-2 (केवल तिथि एवं संवत् के लिए। ईस्वी यहाँ भी मोटे तौर पर संवत् में से 57 घटाकर1889 लिख दी गयी है जो कि गलत है, क्योंकि 1 जनवरी से लेकर चैत्र कृष्ण अमावस्या तिथि तक के ईस्वीवर्ष के लिए संवत् में से 56 वर्ष ही घटाये जाने चाहिए क्योंकि 1 जनवरी से इस तिथि तक ईस्वीवर्ष तो नया हो गया रहता है लेकिन संवत् पुराना ही रहता है। इसकी अगली तिथि अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नया संवत् आरंभ होने से उस तारीख से 31 दिसंबर तक 57 वर्ष घटाने चाहिए)।</ref><ref name="ब">(क)[[हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास]], भाग-१०, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-२०२८ वि॰ (=१९७१ई॰), पृ॰-१४५(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख) www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।</ref>, [[हिन्दी]] कवि, [[नाटककार]], कहानीकार, [[उपन्यासकार]] तथा निबन्ध-लेखक थे। वे हिन्दी के [[छायावाद|छायावादी युग]] के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से [[छायावाद]] की स्थापना की जिसके द्वारा [[खड़ीबोली]] के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि [[जीवन]] के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और [[कामायनी]] तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के, प्रगतिशील एवं नयी [[कविता]] दोनों धाराओं के, प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि 'खड़ीबोली' हिन्दी [[काव्य]] की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।
 
जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल दशमी, संवत्‌ १९४६ वि॰ तदनुसार 30 जनवरी 18901889

ई॰ दिन-गुरुवार)<ref name="ब" /> को [[काशी]] के गोवर्धनसराय में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी भी दान देने के साथ-साथ कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे। इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता
[[काशीनरेश]] के बाद 'हर हर महादेव' से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी।