"हिन्दू वर्ण व्यवस्था": अवतरणों में अंतर

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विवाह और सामाजिक सम्पर्क की पाबंदियां, आनुवंशिकता और श्रेणीबद्धता ही अपरिवर्तनशील मानी जान वाली जातिप्रथा की प्रमुख विशिष्टताएं हैं। किसी जाति के सदस्य अपनी जाति के बाहर बेटी और रोटी के संबंध नहीं बना सकते। ऊंच-नीच का भाव जन्मजात कर दिया गया।
 
ब्राह्मण घर में जन्म लेने मात्र से मुर्ख भी ब्राह्मण हो जाता है। सिद्धांततः कोई अपने जीवनकाल में अपना वर्ण नहीं बदल सकता। चारों प्रमुख वर्ण और बहुसंख्यक जातियाँ किसी-न-किसी वर्ण के अंतर्गत आती हैं। कुल मिलकर संवैधानिक व्यवस्था से पूर्व तक ऊपरकेवल केऔर दोनोंकेवल वर्गोंक्षत्रियों के पास अधिकांशतःही जमीन औरभूमि थी और, वैश्यब्राम्हण व्यापरमंदिर तथाऔर शूद्रभिक्षाटन कृषि,तक पशुपालनही (गाय,सीमित भैंस,थे भेड़,वैश्य आदिव्यापर ),तथा शूद्र सेवा करते थे।
 
'''जातिप्रथा की उत्पत्ति संबंधी प्रथम सिद्धांत –'''–जातिप्रथा की उत्पत्ति अथवा शुरुआत के लिए बहुत  सफाइयां दी जाती हैं। कहा जाता है कि अपनी प्राकृतिक प्रवृत्ति और प्रतिभा के अनुरूप सम्पूर्ण मानव समाज चार वर्गों में बंटा है। कुछ लोगों में उच्च आध्यात्मिक तथा बौद्धिक प्रतिभाएं हैं, कुछ लोग बहादुर ( युद्ध की क्षमता ) हैं, कुछ  उत्पादन के योग्य हैं और इसी तरह श्रेणियां बना दी गयीं।