"वेद": अवतरणों में अंतर
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वेदों को सुनने से फैलने और पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद रखने के कारण व सृष्टिकर्ता ब्रहमाजी द्वारा भी अपौरुषेय वाणी के रुप में प्राप्त करने के कारण ''श्रुति'', स्वतः प्रमाण के कारण ''आम्नाय'', पुरुष (जीव) भिन्न ईश्वरकृत होने से ''अपौरुषेय'' इत्यादि नाम भी दिये जाते हैं।
वेद के पठन-पाठन के क्रम में गुरुमुख से श्रवण एवं याद करने का वेद के संरक्षण एवं सफलता की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है। इसी कारण वेद को ‘'श्रुति'’ भी कहते हैं। वेद परिश्रमपूर्वक अभ्यास द्वारा संरक्षणीय है, इस कारण इसका नाम ‘'आम्नाय’' भी है। वेदों की रक्षार्थ महर्षियों ने अष्ट विकृतियों की रचना की है -जटा माला शिखा रेखा ध्वजो दण्डो रथो घनः | अष्टौ विकृतयः प्रोक्तो क्रमपूर्वा महर्षयः || जिसके फलस्वरुप प्राचीन काल की तरह आज भी ह्रस्व, दीर्घ, प्लूत और उदात्त, अनुदात्त स्वरित आदि के अनुरुप मन्त्रोच्चारण होता है। vedh se hi upnishad nikale
=== साहित्यिक दृष्टि से ===
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