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== राजस्थानी रामलीला ==
 
राजस्थानी रामलीला - अंतरंग जनजुड़ाव का ऐतिहासिक काम
 
मनोजस्वामी नें राजस्थानी भाषा में रामलीला नाम सें जिस ग्रन्थ का सृजन किया है वह महत्वपूर्ण, यश योग्य व ऐतिहासिक काम किया है उस पर समस्त भारत का राजस्थानी भाषी समाज गर्व कर सकता है। ऐसे काम के लिए फकत दिखावटी भावना काम नहीं आती है। ऐेसे अद्भुत अन्तसचेतना, उत्साह व हौंसले की जरूरत पड़ती है। यह पुस्तक राजस्थानी भाषा की अंजस योग्य हरावल पुस्तक है। भाषा के लिए सृजन का ये अनूठा तप निरंतर दो वर्षो तक चलता रहा। जिसके हृदय में ऐसी छटपटाहट हो वही ऐसा कीर्तीमान वाला सरस कार्य कर सकता है। राजस्थानी भाषा में लेखकों की कमी नहीं है व नां ही विविध विधाओं में श्रेष्ठ रचनाओ की कोई कमी है। फिर क्या बात है कि, अंतरंग जनजुड़ाव का यह कार्य दूसरो के ध्यान में नहीं आया। इसलिए ये श्रेय लिया वह भाग्यशाली है।
 
मनोजस्वामी नें खुद माना है कि, इस ग्रन्थ के सृजन में गोस्वामी तुलसीदास रचित मानस व पंडित राधेश्याम कथावाचक की रामायण व कुछ अन्य पुस्तकों की सामग्री काम में ली गई है। भारत में बीसवीं सदी के प्राथमिक तीन-चार दशकों तक पारसी थियेटर की बहुत धूम रही। पारसी थियेटर की कम्पनियां खासकर अल्फ्रेंड थियेटिकल कंपनी नाटक व लोकनाट्यों के ढांचे में बुनियादी बदलाव लाने का कार्य किया। पारसी थियेटर व्यावसायिक थे व लोकनाट्यों के ताम-झाम से भांति-भांति के प्रयोग कर दर्शको को रिझाने का काम करते। जिससें टिकट लेकर देखने वालो की संख्या में इजाफा हो सके। भारत में सबसे पहले ऊंचे-ऊंचे मंच (स्टेज), मंच के दोने तरफ कलाकारों के प्रवेश के लिए विंग्ज, खूबसूरत चित्रो वाले बड़े बड़े परदे, दर्शको के लिए आलीशान दर्शक दीर्घाए, नाटक के बीच-बीच में गीत, गजल, नृत्य के मनमोहक कार्यक्रम, हास्य से भरपूर कोमिक इफेक्ट, गद्य में छोटे छोटे सुन्दर संवाद, आवश्यक सूचनाए जिससे दर्शको के समझ में आ जाए ऐसी लोकरंजक व मनमोहनी भाषा, सुन्दर पात्रो के अनुसार वेशभूषा तथा बीच-बीच में कलाकारों के आपसी संवाद आदि बहुत सी बातें नाट्यजगत को पारसी थियेटर की देन है। जो भी बदळाव आया वो केवल नाटको में ही नंही परन्तु परम्परागत लोक नाट्यो, रामलीलाओं व रासलीलाओं मे भी झलका। पारसी थियेटर की धूम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तथा काठियावाड़ से लेकर जगन्नाथपुरी तक थी। इस बदलाव के आगीवान तीन हस्तियां थी। आगाहश्र कश्मीरी, नारायणप्रसाद ‘बेताब‘ व पंडित राधेश्याम अधिकांश उर्दू, फारसी में हो परन्तु बाद मे उन्होने हिन्दी नाटको में भीष्मप्रतिज्ञा व सीतावनवास जैसे नाटको ने एक उपमायुक्त नाट्य भाषा दी। उनका मानना था कि, भाषा जटिल नही हो, सीधी सरल, रंजक तथा बोलचाल की मिश्रित भाषा हो तभी दर्शको में अपनी छाप छोड़ेगी।
 
उदाहरण - नां ठेठ हिन्दी, नां खालिश उर्दू, जबान गोया मिलीजुली हो।, अलग रहे दूध सें न मिश्री, डळी-डळी मे घुली मिली हो।। पारसी थियेटर में पंडित राधेश्याम कथावाचक सबसे अधिक सफल रहे। उनकी लोकप्रियता का आलम ये था कि, सन् 1915 में अभिमन्यु व 1916 मे श्रवणकुमार नाटक इतने लोकप्रिय हुए कि, तीन-चार वर्षो मे ही पुस्तको की एक लाख से अधिक प्रतियां बिक गई। भारत का एक भी ऐसा नाट्य क्लब नंही था जो पंडित राधेश्याम के नाटक व उनके द्वारा रची गई रामायण आधारित रामलीलाओं से अछुता रहा हो।
 
कलाकारों की आपसी बातचीत व घटनाओं की विवरणी देने मे भी वे पद्यनुमा संवाद लोकप्रिय हुए। जैसे -
 
(1) वनवास गमन के वक्त
 
वन जाने के लिए रथ जब पहुंचा आय
 
राम, लक्ष्मण, जानकी चले गणेष मनाय
 
मचा अयोध्या में बुरी तरह कोहराम
 
वहीं अयोध्या रहेगी जहां रहेंगे राम।
 
बच्चे कहते थे चीख-चीख जा रहे
 
हमसें राम कहां
 
बुढ्ढे माथे को ठोक-ठोक
 
कहते थे अब आराम कहां ?
 
(2) राम सें सुग्रीव का कथन
 
‘‘हे राम तुम्हारे कहने से मैने यह झगड़ा मोल लिया
 
यमदूत है मेरे लिए बाली बल मैने उसका तोल लिया
 
अफसोस तुम्हारी कुव्वत से मेरे बाजू लड़ते ही रहे
 
तुम खड़े-खड़े तकते ही रहे मुक्के मुझ पर पड़ते ही रहे।‘‘
 
(3) जनक से परशुराम  का कथन
 
हे मुर्ख जनक बतला मुझको, किसने ये धनवा तोड़ा है
 
किसने इस भरे स्वंयवर में, सीता से नाता जोड़ा है ?
 
अब वापस मनोजस्वामी रचित रामलीला की बात पर आते हैं। देखते है कि, इस रचाव में गोस्वामी तुलसीदास, पंडित राधेश्याम कथावाचक व पारसी थियेटर का किस हद तक प्रभाव पड़ा है। प्रथम रात्रि की लीला से लेकर नौवीं रात की लीला तक सूरतगढ़ की राजस्थानी रामलीला में भी बड़ा स्टेज व चिताकर्षक चित्रो वाले परदे है, दर्शको के बैठने के लिए सुव्यवस्थित स्थान है, बीच-बीच में गीत, नृत्य व हास्य के दृष्य भी आते है, गद्य मे छोटे-छोटे व सुंदर संवाद, पद्य मे कलाकारो द्वारा आपसी बातचीत, जरूरी मंचीय निर्देश, नौ रातो तक की लीला के सभी पात्रो के संवाद राजस्थानी भाषा में, वेशभूषा राजस्थानी, लोकसंगीत, हास्य आदि सब कुछ राजस्थानी भाषा में। ये सब बातें दर्शाती है कि, मनोज स्वामी की रामलीला नें भी बीसवीं सदी वाले बदलाव को काफी हद तक अपनाया है। देश की ये अकेली व जगचावी रामलीला है जो राजस्थानी में ही रची गई, तथा राजस्थानी  में ही खेली जा रही है। जबरदस्त जनजुड़ाव का आलम ये है कि, प्रथम रात्रि से लेकर नौंवी रात्रि तक हजारो दर्शक इसे देखते है। सराहते है और इस भांति से राजस्थानी भाषा का गौरव बढाते है।
 
ये रामलीला पिछले वर्षो यानि सन 2015 से दशहरे से पहले नौ दिनो तक निरंतर मंचित हो रही है। पंडित राधेश्याम कथावाचक की हिन्दी में लिखित रामायण पर आधारित रामलीला सन 1915 में शुरू हुई, उसी प्रकार ठीक सौ वर्ष बाद में अर्थात 2015 से लेकर अब तक मनोजस्वामी की ये राजस्थानी रामलीला जन-जन में छा रही है ये है सौ वर्षो के अंतराल से दो प्रथक-प्रथक भाषाओं में रामलीलाओं का प्रभाव।
 
इस रामलीला में बिना किसी धर्म, वर्ग व जातिगत भेदभाव के हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, बौध आदि कलाकार (यहां तक कि, नास्तिक कलाकार भी) अपनी मातृभाषा की मजबूती के लिए मनोयोग सें भाग लेते है। स्त्री पात्रों की भूमिका भी पुरूष कलाकार खूबसूरत अन्दाज में निभाते है। (पारसी थियेटर में भी यही प्रचलन था) रामलीला के पात्र कलाकार कई-कई दिनों तक अपनी भूमिकाओं का पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) करते है। मातृभाषा की मान्यता का मुद्धा सभी कलाकारों को परस्पर जोड़े रखता है।
 
रामलीला में  बहुत से पात्र है। बड़ी-बड़ी भूमिकाओं वाले भी और छोटी-छोटी भूमिकाओं वाले भी। कई-कई कलाकार दोहरी-तीहरी भूमिका भी निभाते है। पहले स्त्री भूमिका वाले कलाकारो की बात करते है।
 
मनोजकुमार स्वामी द्वारा सृजित इस रामलीला में नवरात्रो की प्रथम रात्रि से लेकर नौवी रात्रि तक की विषय सामग्री का मनोविज्ञयानिक बंटवारा किया हुआ है। विवरण इस प्रकार हैः-
 
प्रथम रात्रि री लीला- इन्द्र का सिंहासन डोलना, कामदेव की कामलीला, नारद की कामदेव पर जीत, नारद का अभिमान, ब्रहमा-शिव व विष्णु से मिलना, विश्वमोहिनी का स्वंयवर, विष्णु को नारद का श्राप, श्रवण कुमार की माता-पिता सेवा, श्रवण कुमार की मृत्यू, दशरथ को श्रवण के माता-पिता द्वारा श्राप देना आदि।
 
दूसरी रात्रि री लीला-  दशरथ की पुत्रेच्छा, श्रंगी ऋृषी द्वारा यज्ञ, चार पुत्रों की प्राप्ति, विश्वामित्र द्वारा राम-लक्ष्मण को मांगना व दोनों का उनके साथ व जाना, जंगल में राक्षसांे का उत्पात, ताड़का, सुबाहू की मृत्यू आदि।
 
तीसरी रात्रि री लीला -  जनक की प्रतिज्ञा(सीता स्वयंबर के लिए), राम द्वारा शिव धनुष तोड़ना, परशुराम का क्रोध, लक्ष्मण-परशुराम संवाद, मिथिलापुरी मे दशरथ का बारात लेकर आना, स्वागत, चारो राजकुमारो का विवाह आदि।
 
चौथी रात्रि री लीला - राम को युवराज बनाने का निर्णय, मंथरा-कैकयी संवाद, कैकयी द्वारा दशरथ से अपने दो वरदान मांगना, भरत को राज्य व राम के लिए चवदह वर्षो का वनवास, दशरथ का विलाप, राम-लक्ष्मण-सीता का वन गमन, मंत्री सुमंत का जंगल से खाली हाथ वापस आना आदि।
 
पांचवी रात्रि री लीला - दशरथ की मृत्यू, भरत-शत्रुधन का अयोध्या सें आना, भरत का संताप, भरत का कैकयी व कौशल्या से संवाद, भरत सहित सब का वन में जाना, निषादराज से मिलना, भरत-राम संवाद, राम की खड़ाऊ लेकर भरत का अयोध्या आना आदि।
 
छठी रात्रि री लीला - अनुसुइया द्वारा सीता को नैतिक शिक्षा, सूर्पनखा का मायाजाल, सूर्पनखा के नाक-कान काटना, खर दुषण व त्रिषरा का वध, मारीच का स्वर्णमृग बनना, सीता हरण, जटायू-राम संवाद, राम-लक्ष्मण का किष्किंधा में सुग्रीव से मिलना, बाली सुग्रीव का युद्ध, बाली की मृत्यू आदि।
 
सांतवी रात्रि री लीला - सम्पाती से मिलना, समुन्द्र पर सेतु बांधने की योजना, हनुमान-लंकनी संवाद, हनुमान-विभिषण मिलना, सीता-हनुमान संवाद, वाटिका विध्वंस, नागपाश मे हनुमान का बंधना, रावण-हनुमान संवाद, लंका दहन आदि।
 
आठवीं रात्रि री लीला - रावण को मंदोदरी द्वारा सीख, विभिषण का अपमान, राम-विभिषण मिलन, राम की समुन्द्र को धमकी, नल-नील द्वारा सेतु निर्माण, अगंद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, शक्तिबाण लगने से लक्ष्मण का मुर्छित होना, सुषेण वैद की सलाह, हनुमान द्वारा संजीवनी बुंटी लाना, लक्ष्मण का ठीक होना आदि।
 
नवीं रात्रि री लीला - कुम्भकरण की मृत्यु, मेघनाद-लक्ष्मण युद्ध, यज्ञ विघ्वंस, मेघनाद की मृत्यु, सुलोचना-राम संवाद, शीस का हंसना, अहिरावण वध, नारान्तक का वध, राम-रावण युद्ध, मरने से पहले रावण द्वारा लक्ष्मण के माध्यम से सीख देना आदि।
 
1.राजस्थानी रामलीला ग्रन्थ की चुनिंदा विशेषताएं
 
(1) समुचे भारत में राजस्थानी भाषा मे लिखा गया एकमात्र ऐसा ग्रन्थ जिसका लेखन, निर्देशन व व्यवस्था का कार्य मनोजकुमान स्वामी नें किया है। पंडित राधेश्याम कथावाचक नें हिन्दी में रामायण की रचना जरूर की परन्तु उन्होने नौ दिनों तक निरंतर इसका मंचन व निर्देशन नही किया। इस तरह से ये राजस्थानी रामलीला अनूठी है व राजस्थानी भाषा के मान्यता आन्दोलन को मजबूती देने वाली है।
 
(2) नौ रातो तक हजारो दर्शक इसे देखते है, सराहते है व राजस्थानी का गौरवगान करते है। एक पूरी समर्पित टीम मनोयोग सें इसमें भागीदार रहती है। करणी माता मंदिर सूरतगढ़ के प्रांगण मे उमड़ती भीड़ इस बात की ताइद करती है कि ये रामलीला मनभावनी व लोकप्रिय है।
 
(3) इस तरह से देखा जाए तो यह कार्य गिनीज बुक में दर्ज होने के लायक है।
 
2. भाषा की रंजकता - नारायण प्रसाद ‘बेताब‘ नें पारसी थियेटर को एक नाट्य भाषा दी, उसी तर्ज पर मनोज कुमार स्वामी रामलीला के लेखन में राजस्थानी के साथ-साथ तत्सम व हिन्दी के तद्भव शब्द तथा उर्दू के आम बोल चाल मे काम लिए जाने वाले शब्दों को लेकर त्रिवेणी बनाई है। उर्दू के कई शब्द इस प्रकार है - इमदाद, इज्जत, कुव्वत, खामखा, खिलाफत, खूंखार, खौफनाक, खामोश, गर्दिश, गुनहगार, जुल्म, ताज्जुब, तबाही, नफरत, नामाकूल, तजबीज, फतह, बदनाम, बेशक व शान आदि।
 
3. कहावतें - ग्रंथ मे बीसियों कहावतें है। कुछ नमूने जा-डूब चळू भर पानी में (पृष्ठ-167), आ बैल म्हानै मार(134), जेवड़ी बळगी पण बंट कोनी बळयो(176), लातां रा भूत बातां सूं कोनी माने(44), क्यूं थोथा गाल बजावै(52), तिणकलो है चोर दाढ़ी में (60) आदि।
 
4. अंतर कथाएं - लेखक को पौराणिक कथाओं का ज्ञान है। ग्रन्थ में कई अन्तर कथाएं है जैसे- विष्णू को नारद द्वारा श्राप (पृष्ठ-23), शम्बासुर के साथ युद्ध में कैकयी का रथ को सहारा देकर दशरथ के प्राण बचाने व दशरथ द्वारा कैकयी को दो वरदान देना (पृष्ठ-155), बाली द्वारा रावण को छः माह काख मे दबाकर रखने की अंतरकथा(पृष्ठ) आदि।
 
5. गद्य मे पात्रो के छोटे-छोटे संवाद-
 
(1) सुबाहू:- चुप रै नादान।
 
लिक्ष्मण:- पाछो हट बेईमान। (पृष्ठ-53)
 
(2) भरत:- मा सा बधाई।
 
कौशल्या:- क्यां री बधाई?
 
भरत:- घर में अबै बीनणी आई।
 
कौशल्या:- ना टिको, ना सगाई, बिनणी पैला‘ई आई। मसखरी करण   नें म्है ई ला‘धी।
 
भरत ः- मिठाई खुवावो मिठाई। (पृष्ठ-68)
 
6. हास्य प्रसंग -
 
(1) राही:- महाराज दशरथ थारी दुहाई। म्है गरीब थारै राज में लूटीज   रैया हां।
 
एक राक्षस:- अरे दशरथ के चीज है? कोई खावण चीज है के?
 
तिजो राक्षस:- जे कोई चरकी चीज हुवै तो म्हानै ई देई। (पृष्ठ-44)
 
(2) माखीचूस:- सिरदार, काकी ताड़का री फूंक निसरगी।
 
मारीच :- कै कैयो ? काकी मरगी।
 
माखीचूस:- हां महाराज मरगी.....बा तो मरणै सूं भी दो हाथ आगै   निसरगी।
 
(3) सूर्पनखा:- अरे नामाकूलो देखो मेरी नाक.... डोबा खोलगे देखो।
 
एक राक्षस:- अरे मासी री नाक तो गुलगलो बणगी।
 
तिजो राक्षस:- बापड़ी माख्यां रो अडेखण मिटग्यो। अबै बै कठै बैठसी?
 
. गीत - गजल-भजन
 
गीत - रामलीला मे केई कलाकार अपनी कला दिखाते है जैसे-
 
राम - राज रै बदळै मा सा म्हानै हुग्यो हुकम फकीरी रो।
 
राजस्थानी गजल - छोड. जावो हो म्हनै क्यूं दुख भोगण नैं
 
अबै मनाऊं म्हे किणनै थानै मनावण नैं। (पृष्ठ-20)
 
भजन - (सीता हरण से पहले- साधूवेश मे रावण)
 
  मन हरि रै हेत लगा बाबा। जोगी री है आ अरदास बाबा। (पृष्ठ-137)
 
8. उपमाएं -
 
हनुमान - सीता माता लंका मे यूं रै वै जियां जीभ दांतां बिचाळै। जिण भांत कणी में मणी हुवै, कमळ दळ जळ में। इण भांत रैवै है मा सा बठै ज्यूं चान्दणी रैहवै है बादळ में।
 
9. तुलसी कृत रामचरित मानस का प्रभाव
 
बाली (राम सूं कैवै) सुग्रीव थांरो मित्र हुयग्यो अर बाली दुष्मण। ओ न्याव कठै रो है स्वामी ? म्हनै मारण रो कारण ?
 
राम - बेटी, भैण, बेटै री बहू, छोटै भाई री नारी आं नें देखै माड़ी दीठ सूं मारण जोग हुवै दुराचारी।
 
10. हर रात्री री लीला सें पहले मुख्य अतिथि राम की आरती उतारते है, लीला पर विचार रखते है। इसी तरह पिछले दिनों ‘कोठे खड़कसिंघ‘ उपन्यास अनुवाद के विमोचन मे शिरकत कर रहे, मधु आचार्य ‘ आशावादी‘, राजाराम स्वर्णकार व हरीश बी. शर्मा सूरतगढ आये थे। समारोह में रामलीला के कई कलाकारो नें अपने संवाद सुनाए जिन्हे सुनकर लोग बहुत प्रभावित हुए। राजारम स्वर्णकार नें कहा कि, ‘‘राजस्थानी रामलीला की चहुंओर चर्चा है। ये स्वागत योग्य बात है।‘‘
 
और आखिर में, बीसवीं सदी में अपने नाटको व रामलीला के मार्फत पंडित राधेश्याम कथावाचक, समस्त भारत में हिन्दी भाषा को जन-जन में प्रचारित किया। आज इक्कीसवीं सदी में मनोजकुमार स्वामी की राजस्थानी रामलीला की ये सिक्रप्ट राजस्थान के शहरों, कस्बों व गांव-गांव में जहां-जहां राजस्थानी भाषी समाज है। वहां-वहां ये रामलीला मंचित हो तो राजस्थानी जन-जन की प्रिय भाषा बन सकती है। तथा इससे मान्यता आन्दोलन को बल मिलेगा। मैं एक बार फिर दावे के साथ कहता हूं कि, ये एक ऐसा कार्य है जिसे गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज होना चाहिए। [[सदस्य:Ashokswami0|Ashokswami0]] ([[सदस्य वार्ता:Ashokswami0|वार्ता]]) 08:18, 4 अक्टूबर 2023 (UTC)