"झारखंड आंदोलन": अवतरणों में अंतर

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[[File:Jhapa Old Logo.jpg|thumb|झारखंड पार्टी]]
राजनैतिक स्तर पर 1938 में [[जयपाल सिंह मुंडा]] के नेतृत्व में [[झारखंड पार्टी]] का गठन हुआ जो पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में पूरी तरह से दबंग पार्टी रही। जब [[राज्य पुनर्गठन आयोग]] बना तो झारखंड की भी माँग हुई जिसमें तत्कालीन [[बिहार]], [[ओडिशा|उड़ीसा]], [[पश्चिम बंगाल]] और [[मध्य प्रदेश]] के 21 जिले शामिल थे, आदिवासियों के लिए अलग राज्य के आंदोलन में [[संताल जनजाति|संताल]], [[मुंडा]], [[उरांव]], [[भूमिज]], [[खड़िया आदिवासी|खड़िया]] जैसे बड़े जनजातियों के साथ-साथ छोटे जनजातियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=fkIgsfb95rAC&pg=PA44&dq=bhumij+language&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&ovdme=1&sa=X&ved=2ahUKEwiXvYPZsJr-AhVQpVYBHRiYBFgQ6AF6BAgDEAM#v=snippet&q=Jharkhand%20state&f=false|title=Language Shifts Among the Scheduled Tribes in India: A Geographical Study|last=Ishtiaq|first=M.|date=1999|publisher=Motilal Banarsidass Publ.|isbn=978-81-208-1617-6|language=en}}</ref> इस आंदोलन में गैर-जनजातीयसरकारी समुदायों जैसेआदिवासी [[कुड़मी महतो]] का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। आयोग ने उस क्षेत्र में कोई एक आम [[भाषा]] न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 31 जनवरी 1947 को सरायकेला और खरसावां को उड़ीसा में शामिल करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में हजारों की संख्या में आदिवासी इकट्ठा हुए, जिन्हें उड़ीसा पुलिस ने गोलियों से भून दिया। जिसे 'आजाद भारत का जालियांवाला नरसंहार' भी कहा गया।<ref>{{Cite web|url=https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/saraikela-kharsawan/saraikela-kharsawan-golikand-hundreds-of-innocent-people-lost-their-lives-know-the-history-behind-it-srn|title=खरसावां गोलीकांड में सैकड़ों बेगुनाह लोगों की चली गयी थी जान, जानें क्या है इसके पीछे का इतिहास|website=Prabhat Khabar|language=hi|access-date=2023-01-02}}</ref> 1950 के दशकों में [[झारखंड पार्टी]] [[बिहार]] में सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका में रहा लेकिन धीरे-धीरे इसकी शक्ति में क्षय होना शुरू हुआ। अप्रैल 1954 में बिहार विधानसभा में छोटानागपुर और संथाल परगना के विधायकों ने राज्य पुनर्गठन आयोग को एक स्मार पत्र देकर अलग राज्य की मांग की, जिसमें सिधू हेंब्रम (कोल्हान), सुशील कुमार बागे (कोलेबिरा), हरमन लकड़ा (बेड़ो), शुभनाथ देवगम (मनोहरपुर), सुखदेव मांझी (चक्रधरपुर), लुकस मुंडा (खूंटी), जीतू किस्कू (महेशपुर), जुनस सुरीन (बसिया), विलियम हेंब्रम (शिकारीपाड़ा), कैलाश प्रसाद (जुगसलाई-पोटका एक), जेठा किस्कू (राजमहल-दामिन), सुपई मूर्मू (रामगढ़), शत्रुघन बेसरा (जामताड़ा), रामचरण किस्कू (पाकुड़-दामिन), हरिपद सिंह (जुगसलाई-पोटका दो), बाबूलाल टुडू (गोड्डा-दामिन), देवी सोरेन (दुमका), जगन्नाथ महतो कुरमी (सोनाहातू), पाल दयाल (रांची), मदन बेसरा (मसलिया), घानी राम संताल (घाटशिला-बहरागोड़ा दो), उजिंद्र लाल हो (खरसावां), देवचरण मांझी (चैनपुर), बलिया भगत (सिसई), [[मुकुंद राम तांती]] (घाटशिला-बहरागोड़ा एक), सुकरू उरांव (गुमला), अंकुरा हो (जायदा), अल्फ्रेड उरांव (सिमडेगा), चुका हेंब्रम (पोड़ैयाहाट-जरमुंडी) भैयाराम मुंडा (तमाड़), सुरेन्द्र नाथ बिरुआ (मंझारी), इग्नेस कुजुर (लोहरदगा), गोकुल महारा और [[जयपाल सिंह मुंडा|जयपाल सिंह]] द्वारा हस्ताक्षर किया गया था।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=KPRAEAAAQBAJ&pg=PT27&dq=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A6+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE+%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%80&hl=hi&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&ovdme=1&sa=X&ved=2ahUKEwjb78SK87n-AhU92TgGHaOTAVsQ6AF6BAgEEAM#v=onepage&q&f=false|title=JHARKHAND ANDOLAN KA DASTAVEJ: SHOSHAN, SANGHARSH|last=SINHA|first=ANUJ KUMAR|date=2014-08-14|publisher=Prabhat Prakashan|isbn=978-93-5186-024-2|language=en}}</ref> आंदोलन को सबसे बड़ा अघात तब पहुँचा जब 1963 में [[जयपाल सिंह मुंडा|जयपाल सिंह]] ने [[झारखण्ड|झारखंड]] पार्टी ने बिना अन्य सदस्यों से विचार विमर्श किये [[कांग्रेस]] में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप [[छोटा नागपुर पठार|छोटानागपुर]] क्षेत्र में कई छोटे छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी और विभिन्न मात्राओं में चुनावी सफलताएँ भी हासिल करती थीं।
 
झारखंड आंदोलन में ईसाई-आदिवासी और गैर-ईसाई आदिवासी समूहों में भी परस्पर प्रतिद्वंदिता की भावना रही है। इसका कुछ कारण शिक्षा का स्तर रहा है तो कुछ राजनैतिक। 1940-1960 के दशकों में गैर ईसाई आदिवासियों ने अपनी अलग सँस्थाओं का निर्माण किया और सरकार को प्रतिवेदन देकर ईसाई आदिवासी समुदायों के [[आदिवासी|अनुसूचित जनजाति]] के दर्जे को समाप्त करने की माँग की, जिसके समर्थन और विरोध में काफी राजनैतिक गोलबंदी हुई। 1967 में अखिल भारतीय झारखंड पार्टी का गठन किया गया, जिसमें बागुन सुंब्रुई अध्यक्ष और एनईर होरो महासचिव बने। इसके बाद, हुल झारखंड और बिरसा सेवा दल का भी गठन हुआ। इसी वर्ष, [[बिनोद बिहारी महतो]] द्वारा शिवाजी समाज नामक संगठन की स्थापना की गई। 1969 में [[शिबू सोरेन]] द्वारा सोनत सांथाल समाज संगठन की स्थापना की।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=KPRAEAAAQBAJ&pg=PT27&dq=%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A6+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE+%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%80&hl=hi&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&ovdme=1&sa=X&ved=2ahUKEwjb78SK87n-AhU92TgGHaOTAVsQ6AF6BAgEEAM#v=onepage&q&f=false|title=JHARKHAND ANDOLAN KA DASTAVEJ: SHOSHAN, SANGHARSH|last=SINHA|first=ANUJ KUMAR|date=2014-08-14|publisher=Prabhat Prakashan|isbn=978-93-5186-024-2|language=en}}</ref>