"धातु (संस्कृत के क्रिया शब्द)": अवतरणों में अंतर

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[[File:Dhatu Roop.jpg|thumb|संस्कृत में धातु रूप]]
[[संस्कृत व्याकरण]] में क्रियाओं (verbs) के मूल रूप को '''धातु''' कहते हैं। धातु ही [[संस्कृत]] शब्दों के निर्माण के लिए मूल तत्त्व (कच्चा माल) है। इनकी संख्या लगभग 3356 है। धातुओं के साथ [[उपसर्ग]], [[प्रत्यय]] मिलकर तथा [[समास|सामासिक क्रियाओं]] के द्वारा सभी शब्द ([[संज्ञा]], [[सर्वनाम]], [[क्रिया]] आदि) बनते हैं। दूसरे शब्द में कहें तो संस्कृत का लगभग हर शब्द अन्ततः धातुओं के रूप में तोड़ा जा सकता है। कृ, भू, स्था, अन्, ज्ञा, युज्, गम्, मन्, जन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख धातुएँ हैं।
 
'धातु' शब्द स्वयं 'धा' में 'तिन्' प्रत्यय जोड़ने से बना है।
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'''(१) कृ''' (करना)
: '''संज्ञा''' : कार्य, उपकरण, कर्मन्, प्रक्रिया,
: '''विशेषण''' : कर्मठ, सक्रिय, उपकारी,
: '''क्रिया''
: '''क्रिया''' : करोति, नमस्कुरु, प्रतिकरोमि, कुर्मः
 
''' (२) भू''' (होना)
: '''संज्ञा''' : भवन, प्रभाव, वैभव, भूत, उद्भव, भविष्य,
: '''विशेषण''' : भावी, भावुक, भावात्मक, भौगोलिक
: '''क्रिया''' : भविष्यति, अभवं, अभव, संभवेत्, संभवामि
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|}
लिट् लकार का प्रयोग परोक्ष भूतकाल के लिए होता है। ऐसा भूतकाल जो वक्ता की आँखों के सामने का न हो। प्रायः बहुत पुरानी घटना को बताने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे – रामः दशरथस्य पुत्रः बभूव। = राम दशरथ के पुत्र हुए। यह घटना कहने वाले ने देखी नहीं अपितु परम्परा से सुनी है अतः लिट् लकार का प्रयोग हुआ।
{| class="wikitable"
|+''भविष्यत्कालः''  ऌट् लकार
!
!एकवचन
!द्विवचन
!वहुवचन
|-
!प्रथम पुरुष
|इष्यति
|इष्यतः
|इष्यंति
|-
!मध्यम पुरुष
|इष्यसि
|इष्यथः
|इष्यथ
|-
!उत्तम पुरुष
|इष्यामि
|इष्यावः
|इष्यामः
|}
लृट लाकर का प्रयोग हम भविष्यत काल में उपयोग करते है, यानिकि ये Future tense कहा जाता है | उदाहरण - रामः पठिष्यति, वयं गमिष्यामः
{| class="wikitable"
|+३. लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत्, First Future Tense of Periphrastic)