"ब्राह्मण": अवतरणों में अंतर

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ब्राह्मणों मे महाब्राह्मण समाज की उत्पत्ति।
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महाब्राह्मण की उत्पत्ति।
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[[चित्र:The Reciting Brahman.jpg|thumb|ब्राह्मण]]
महाब्राह्मण का उत्पत्ति, जन्म और कर्म ऋषि वशिष्ठ मुनि से है। पहली कथा के अनुसार
 
भगवान श्री राम और और उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी माता सीता के साथ वनवास जाने की बात सभी जानते हैं।
 
इस बात से अयोध्यावासी बहुत दुखी थे। राजा दशरथ भी इस वियोग को झेल ना सके, और उनकी मृत्यु हो गई।
 
पिता के निधन की बात सुनकर भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को गहरी ठेस पहुंची।
 
दोनों भाइयों ने जंगल में ही पिंडदान करने का फैसला लिया। पिंडदान करने के लिए दोनों भाईयो ने आवश्यक सामग्री एकत्रित करने के उद्देश्य से निकल गये । एक ओर श्राद्ध कर्म का समय बिता जा रहा था। ऐसे में माता सीता ने अपने ससुर का श्राद्ध उसी समय भगवान राम और लक्ष्मण की गैर मौजूदगी में ही करने का फैसला लिया।
 
माता सीता ने पूरे विधि विधान से पिंडदान किया। जब प्रभु राम और लक्ष्मण लौट कर आए तो माता सीता ने उन्हें पूरी बात बताई और बोली की उस समय वहां एक पंडित,कौवा,फल्गु नदी और गाय उपस्थित थे,आप इनसे पूछ लीजिए। माता सीता ने कहा प्रभु आप साक्षी के तौर पर इन चारो से सच्चाई पूछ सकते हैं।
 
श्री राम ने जब पुष्टि के लिए उन चारों से पूछा तो वह उनके क्रोध के कारण झूठ हो बोलते हुए इन्कार कर दिया। इस बात से माता- सीता से दोनों भाई नाराज हो गए। क्योंकि उन्हें लगा की माता उनसे झूठ बोल रही है।
 
इस बात से माता- सीता क्रोधित हो गई और उन्होंने चारों को आजीवन श्रापित कर दिया। माता सीता ने पंडित को श्राप दिया कि उन्हें इस कर्म में कितना भी दान मिल जाए फिर भी उनकी दरिद्रता कभी दूर नही होगी, कौवे को श्राप दिया कि उसे कभी भी अकेले खाने से पेट नहीं भरेगा और आकस्मिक मृत्यु होगी, फल्गु नदी को श्राप मिला कि पानी गिरने के बावजूद वह ऊपर से सुखी रहेगी और नदी के ऊपर पानी का बहाव कभी नहीं होगा, माता सीता ने गाय को श्राप दिया कि उसे घर में पूजा होने के बाद भी जूठन खाना पड़ेगा। रामायण में भी यह कथा का जिक्र मिलता है।
 
उसी दिन से ब्राह्मणो मे ये संकोच हुआ और कोई भी ब्राम्हण श्राद्ध कर्म कराने के लिए तैयार नही होते । ऋषि वशिष्ठ को यह सहन नही हुआ और उन्होने धर्म की रक्षा के लिए यह कर्म को बिना किसी भय के वे अपने शिष्यो के साथ कराने लगे तभी से लोगो मे उनकी कीर्ति स्थापित हुई और उन्हे और उनके शिष्यो को महाब्राह्मण का दर्जा मिला।
 
दूसरी कथा के अनुसार
 
रावण के वध करने के पश्चात भगवान राम जब अयोध्या आए तब उन्होंने अपने पिता कि श्राद्ध कर्म करने का निर्णय किया क्योंकि जब राजा दशरथ जी कि मृत्यु हुई थी तब भगवान राम वन में १४ वर्ष के लिए वनवास थें इसीलिए अयोध्या आने के बाद उन्होंने अपने पिता दशरथ जी कि श्राद्ध और ब्रह्मभोज अपने हाथों से करने का निर्णय लिया । लेकिन रावण के वध करने के पश्चात उन पर ब्रह्महत्या का दोष लगा था और वो अशुद्ध हो गए थें , जिसके कारण कोई भी ऋषि, मुनि, ब्राह्मण न तो उनके समीप जाते थे और न ही उनके राज्य पाट से अन्न जल ग्रहण करते थे, भगवान राम ने सारे ऋषि मुनियों से प्रार्थना कि किन्तु कोई उसके लिए तैयार नहीं हुए। तभी ऋषि वशिष्ठ मुनि ने सोचा जो सबका पालनहार है दात्ता और सब कुछ वही है और वही कामना कर रहा है ये हमारे लिए परम स्वभावगय कि बात है, भगवान कि विनती सुन वो श्राद्ध कराने हेतु तैयार हो गए,लेकिन उनसे एक शर्त रखी कि मैं न तो आपके राज्य के अंदर जाऊंगा और न ही आपके छुए हुए अन्न जल ग्रहण करुंगा, फिर उन्होंने सारे श्राद्ध कर्म करवा दिए, तब भगवान राम और सभी देवी-देवता बहुत प्रसन्न हुए,
 
और श्राद्ध कर्म के पश्चात ऋषि वशिष्ठ के भगवान कि बात मानने और पिंडदान, श्राद्ध कर्म कराया और उसके उपरांत अपने शिष्यो को इस यज्ञ मे परिपूर्ण बनाकर महाब्राह्मण समाज की स्थापना की। इस से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा और महादेव जी ने उन्हे आशीर्वाद दिया और ब्राह्मण में श्रेष्ठ महाब्राह्मण कि उत्पत्ति हुई और उपाधि मिली, और इनके कुल देवता महादेव जी हुए ।
 
इनमें कई गोत्र और उपनाम है जैसे
 
सांडिल्य
 
कश्यप
 
भारद्वाज
 
पराशर
 
गौतम, इत्यादि हैं।
 
और कई उपनाम हैं जैसे
 
पाण्डेय
 
तिवारी
 
चौबे
 
दुबे
 
झा
 
शर्मा
 
त्रिपाठी
 
त्रिवेदी
 
पाठक
 
चतुर्वेदी इत्यादि हैं।
 
ये है असली महापात्र ब्राह्मण अर्थात महान ब्राह्मण यानी महाब्राह्मण का इतिहास।।
 
'''ब्राह्मण''' हिंदू समाज में एक वर्ण है। वेदिक और वेदिक के बाद के समय में, ब्राह्मण पंडित दर्ज के माने जाते है , जो पंडित और गुरु के तरह काम करते है