"वास्तु शास्त्र": अवतरणों में अंतर

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डिजाइन दिशात्मक संरेखण के आधार पर कर रहे हैं। यह हिंदू वास्तुकला में लागू किया जाता है, हिंदू मंदिरों के लिये और वाहनों सहित, बर्तन, फर्नीचर, मूर्तिकला, चित्रों, आदि।
 
दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु [[मयासुर|मायन]]माया को जिम्मेदार माना जाता है और उत्तर भारत में [[विश्वकर्मा|त्वष्टा]] को जिम्मेदारजिन्हे मानाविश्वकर्मा भी कहा जाता है।हैं। वास्तु शास्त्र के मुख्यतः चार प्रकार के वास्तु [[पण्डित]] होते है - स्थपति, सूत्रग्राहिन्(सूत्रधार), वर्धकी और तक्षक ये वर्तमान में विशेषतः काष्ठकारी के काम से जाने जाते हैं।
 
==वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं==