"चन्द्रगुप्त मौर्य": अवतरणों में अंतर

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[[File:Jain Inscription.jpg|thumb|अंतिम श्रुतकेवाली [[भद्रबाहु]] स्वामी और सम्राट चंद्रगुप्त का आगमन दर्शाता शिलालेख (श्रवणबेलगोला){{sfn|Dikshitar|1993|pp=264–266}}]]
[[File:Tijara Jain temple painting 32.jpg|thumb|चंद्रगुप्त के 16 स्वप्न, तिजारा जैन मंदिर का चित्रित चित्र।]]
[[श्रवणबेलगोला]] से मिले शिलालेखों के अनुसार, चन्द्रगुप्त अपने अन्तिम दिनों में पितृ मतानुसार जैन-मुनि हो गए। चन्द्र-गुप्त अन्तिम मुकुट-धारी मुनि हुए, उनके बाद और कोई मुकुट-धारी (शासक) [[दिगम्बर|दिगंबर-]][[मुनि]] नहीं हुए | अतः चन्द्र-गुप्त का [[जैन धर्म]] में महत्वपूर्ण स्थान है। स्वामी [[भद्रबाहु]] के साथ श्रवणबेलगोल चले गए। वहीं उन्होंने उपवास द्वारा शरीर त्याग किया। श्रवणबेलगोल में जिस पहाड़ी पर वे रहते थे, उसका नाम [[चंद्रगिरि|चन्द्रगिरी]] है और वहीं उनका बनवाया हुआ 'चन्द्रगुप्तबस्ति' नामक मन्दिर भी है। जैन धर्म के शास्त्रों के अनुसार चंद्रगुप्त का नाम जैन मुनि बनने के उपरांत मुनि प्रभाचंद्र हुआ,ये बाद मैं आचार्य प्रभाचंद्र के नाम से विख्यात हुए जिन्होंने प्रमेय कमल मार्तंड,न्याय कुमुदचंद्र,तत्वार्थ व्रतिपाद विवरण, शाकतायन न्यास,शब्दांभोज भास्कर,गद्य कथा कोश की रचना जैन धर्म को दी ।
 
== नाम और उपाधि==