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'''[[कुमावत]]''' एक क्षत्रियकुम्हार [[भारतीय]] [[हिन्दू]] [[जाति]] है।
 
कुमावत कुंभलगढ़([[मेवाड़]]) के निवासी हैं जिनका परम्परागत कार्य [[स्थापत्य कलाबर्तन]] से सबंधित हैं। इस जाति([[कुमावत]]) का जातिसूचक शब्द ''''राजकुमारकुम्हार'''' हुआ करता था।<ref>{{Cite book |last=Seṭha |first=Haragovindadāsa Trikamacanda |url=https://books.google.co.in/books?id=8wTGMIRwVZ4C&pg=RA1-PA158&dq=%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&ovdme=1&sa=X&ved=2ahUKEwjQiL7A35eAAxXWzTgGHZeKAIE4FBDrAXoECAsQBQ#v=onepage&q=%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF&f=false |title=पाइअ-सद्द-महण्णवो (प्राकृत-शब्द-महार्णवः): अर्थात् प्राचीन ग्रन्थों के अनल्प अवतरणों और परिपूर्ण प्रमाणों से विभूषित बृहत्कोष |date=1986 |isbn=978-81-208-0239-1 |pages=464 |language=hi}}</ref> दुर्ग, क़िले, मंदिर इत्यादि के निर्माण व मुख्य [[स्थापत्य कला]] एवं [[चित्रकारी]] की ठेकेदारी का काम कुमावत समाज के लोगों द्वारा ही किया जाता था। स्थापत्यमिट्टी कलाके एवंबर्तन शिल्पकलाबनाते दोनोंथे पहले अब अलग- अलग कलाएंकाम करने लग गए हैं। कुछ लोग [[कुमावत]] और [[कुम्हार]] को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग-अलग जातियां है।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.com/books?id=GoZdzjvFVC4C&newbks=0&hl=mr|title=Census of India, 1931|last=Commissioner|first=India Census|date=1933|publisher=|language=}}</ref> कुमावत जाति के अधिकांश लोग शुरू में स्थापत्य कला ([[वास्तुकलामिट्टी]]) का काम करते थेहै , जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी का अर्थात् हस्तशिल्पकला का काम करते थे।
 
कुमावत क्षत्रिय समूहकुम्हार के वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत शामिल हैं। और उनमें से अधिकांश [[मारवाड़]] क्षेत्र और भारत के विभिन्न राज्यों में केंद्रित हैं। उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे मारू कुमावतकुम्हार, मेवाड़ीपुरबिया कुमावतकुम्हार, चेजारा कुमावत, आदि। कुमावत को [[नायकप्रजापत]] और [[पञ्चजन|हुनपंचकुम्हार]] के नाम से भी जाना जाता है। इस समुदाय के लिए नृवंशविज्ञान संबंधी साक्ष्य [[रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत|रानी लक्ष्मी चंदाबत]] द्वारा लिखित [[बागोरा बटों की गाथा]] और [[जेम्स टॉड]] द्वारा लिखित [[एनल्स एंड एंटिक्विटीज़|एनल्स एंड एंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान]] में उपलब्ध हैं। कुमावत खुद को [[सूर्यवंश|सूर्यवंशीकुम्हार]] क्षत्रिय मानते हैं। यह समाज जयपुर से अपना त्रैमासिक प्रकाशन [[कुमावतकुम्हार क्षत्रियसमाज]] हिन्दी में भी निकलता है।<ref name="K. S. Singh">{{cite book |url=https://books.google.co.in/books?id=vm_KCE4XXPMC&pg=PA565 |title=People of India: Rajasthan
|first=S. K. |last=Mandal |chapter=Kumawat |editor-first=Kumar Suresh |editor-last=Singh |editor-link=Kumar Suresh Singh |year=1998 |pages=562–564 |isbn=978-8-17154-769-2 |access-date=13 जुलाई 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20150714032357/https://books.google.co.in/books?id=vm_KCE4XXPMC&pg=PA565 |archive-date=14 जुलाई 2015 |url-status=live }}</ref>