खोलने समय न होकर खेलते समय होगा
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'''खाता-बही''' या लेजर (ledger) उस मुख्य बही (पुस्तक) को कहते हैं जिसमें पैसे के लेन-देन का हिसाब रखा जाता है। आजकल यह कम्पयूटर-फाइल के रूप में भी होती है। खाता बही में सभी लेन-देन को खाता के अनुसार लिखा जाता है जिसमें डेबित और क्रेडित के के दो अलग-अलग कॉलम होते हैं।<ref>{{cite book|title=अंकेक्षण के सिद्धान्त|url=http://books.google.co.in/books?id=numPAzRaQWkC|page=142|author=डॉ॰ मनमोहन प्रसाद|publisher=मोतीलाल बनारसीदास|isbn=9788120828339|access-date=18 अप्रैल 2014|archive-url=https://web.archive.org/web/20140419020310/http://books.google.co.in/books?id=numPAzRaQWkC|archive-date=19 अप्रैल 2014|url-status=live}}</ref>
 
== <ref name=":0" />परिचय ==
[[लेखाकरण|लेखांकन]] का एक उद्देश्य सुगमता से यह निश्चित करना है व्यापारी को अपने लेनदारों को क्या देना है, उसे अपने देनदारों से क्या लेना है, उसके व्यय और आय कय है इत्यादी। यह भी स्पष्ट है कि यह जानकारी केवल रोजनामचे में सौदों के लिखने मात्र से ही तुरन्त प्राप्त नहीं हो सकती। माना कि एक व्यक्ति यह जानना चाहता है कि उसे 'क' से क्या लेना अथवा देना है तो उसे 'क' से सम्बन्धित प्रविष्टियों को ढ़ूंढने के लिए पूरा रोजनामचा देखना पड़ेगा क्योंकि उसने उससे कई बार माल खरीदा होगा और कई बार उसे धन दिया होगा। यदि यही तरीका अपने साथ व्यवहार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति या फर्म के साथ अपनी स्थिति मालूम करने के लिए प्रयोग में लाया जाय तो वही खाते लिखने का उद्देश्य अंतशः ही प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त इसका अर्थ होगा समय, उर्जा (शक्ति), एवं धन की व्यर्थ बरवादी। अतः प्रत्येक व्यक्ति अथवा फर्म से सम्बन्धित सभी प्रविष्टियों को एक साथ (जगह) लिखने के लिए कोई त्वरित साधन प्राप्त करना चाहिए। यह सब प्रविष्टियों को एक और पुस्तक में, जिसे '''खताबही''' कहते हैं, एकत्रित और संक्षिप्त करके किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से सम्बन्धित उन सभी प्रविष्टियों को जो अब तक रोजनामचे में विखरी पड़ी थी एक जगह (जिसे [[खाता]] कहा जात है) एकत्रित एवं संक्षिप्त किया जाता है।<ref name=":0">{{cite book|title=प्रयोजनमूलक हिन्दी|author=माधव सोनटक्के|publisher=राजकमल प्रकाशन|isbn=9788180310553|page=164-185}}</ref>
 
'''बाटलीबॉय के अनुसार''' खाताबही खातों की मुख्य पुस्तक है और इसी पुस्तक में सारे व्यापारिक लेन-देन (सौदे) अन्त में विभाजित (वर्गीकृत) होकर अपने-अपने खातों में स्थान प्राप्त करते हैं।