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छो कुम्भ मेला का खगोलीय घटना से संबंध
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[[चित्र:Kumbh Mela 2001.jpg|thumb|350px|2001 के प्रयाग कुम्भ मेले का दृष्य]]
 
'''कुम्भ मेला''' [[हिन्दू]] धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल [[इलाहाबाद|प्रयाग]], [[हरिद्वार]], [[उज्जैन का पर्यटन|उज्जैन]] और [[नासिक]] में एकत्र होते हैं और नदी में [[स्नान]] करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति १२वें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्धकुम्भ भी होता है। [[२०१३]] का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। फिर [[२०१९]] में प्रयाग में अर्धकुम्भ मेले का आयोजन हुआ था।
 
जब बृहस्पति ग्रह मृगसिरा नक्षत्र में गोचर करता है, तो उसे कुंभ काल कहा जाता है। कुंभ काल के स्वागत और पूजा के लिए एक आध्यात्मिक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे [https://kediganapati.com/kumbha-mela/ कुंभ मेला] कहा जाता है। बृहस्पति ग्रह हर 12 साल में मृगसिरा नक्षत्र में गोचर करता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में आता है। सभी जीवित प्राणी, मनुष्य और भगवान कुंभ काल में ही वैकुंठ से पृथ्वी पर आते हैं।<ref>{{Cite web|url=https://kediganapati.com/kumbha-mela/|title=Origin Of Kumbha Mela|last=Ganapati|first=Kedi|date=2024-11-28|website=https://kediganapati.com/|language=en|archive-url=https://kediganapati.com/kumbha-mela/|access-date=2024-11-28}}</ref>
 
[[खगोल शास्त्र|खगोल]] गणनाओं के अनुसार यह मेला [[मकर संक्रान्ति|मकर संक्रान्ति]] के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और [[चन्द्रमा]], वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, [[मेष राशि]] में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रान्ति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन [[स्नान]] करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् [[स्वर्ग]] दर्शन माना जाता है। इसका हिन्दू धर्म मे बहुत अधिक महत्व है।