"यज्ञोपवीत": अवतरणों में अंतर
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यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रम्ह पाश होती है।तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। अपवित्र होने पर इसे बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण कये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता।▼
# उपनयन संस्कार जिसमें मुंडन होता है, जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है।
# वह धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।<ref>{{cite book |last=आप्टे |first= वामन शिवराम|title= संस्कृत हिन्दी कोश|year= 1969 |publisher= मोतीलाल बनारसीदास|location= दिल्ली, पटना, वाराणसी भारत|id= |page= 823|editor: वामन शिवराम आप्टे|accessday= 27|accessmonth=जुलाई| accessyear=2007}}</ref>
▲यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं । ब्राम्हणों के यज्ञोपवीत में ब्रम्ह पाश होती
यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र है
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