"पैशाची भाषा": अवतरणों में अंतर

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हेमचंद्रादि प्राकृत व्याकरणों में इसके निम्न लक्षण पाए जाते हैं :
 
(1)# ज्ञ, न्य और ण्य के स्थान पर ञ्ञ का उच्चारण, जैसे सर्वज्ञ = सव्वञ्ञो, अभिमन्यू = अभिमन्ञ्ञू
(4)# के स्थान पर ळ ;न, जैसे सलिलंगुणेन = सळिळगुनेन;
 
(2)# त् और द् दोनों के स्थान पर न,त् जैसे गुणेनपार्वती पव्वती, =दामोदरो गुनेनतामोतरो;
# ल के स्थान पर ळ ; जैसे सलिलं ऊ सळिळ;
 
(3)# त्श्, औरष् द्स्, दोनोंइन तीनों के स्थान पर त्स्, जैसे पार्वतीशशि पव्वतीससि, दामोदरोविषमो - विसमो, प्रशंसा - तामोतरोपसंसा;
(6)# ट् के स्थान पर विकल्प से त्, जैसे कुटुंबकं = कुतुंबकं;
 
(7)# पर्वूकालिक प्रत्यय क्त्वा के स्थान तूण, जैसे गत्वा = गंतूण।
(4) ल के स्थान पर ळ ; जैसे सलिलं ऊ सळिळ;
 
(5) श्, ष् स्, इन तीनों के स्थान पर स्, जैसे शशि ससि, विषमो - विसमो, प्रशंसा - पसंसा;
 
(6) ट् के स्थान पर विकल्प से त्, जैसे कुटुंबकं = कुतुंबकं;
 
(7) पर्वूकालिक प्रत्यय क्त्वा के स्थान तूण, जैसे गत्वा = गंतूण।
 
इनके अतिरिक्त इस प्राकृत की मध्यकालीन अन्य [[शोरसेनी]] आदि प्राकृतों से विशेषता बतलानेवाली प्रवृत्ति यह है कि इसमें क्, ग्, च्, ज् आदि अल्पप्राण वर्णो का लोप नहीं होता और न ख्, घ्, ध्, भ् इन महापाण वर्णो के स्थान पर ह्। इस प्रकार पैशाची में वर्णव्यवस्था अन्य प्राकृतों की अपेक्षा [[संस्कृत]] के अधिक निकट है।