"सहस्वानिकी": अवतरणों में अंतर

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*'''मुक्त सहस्वानिकी''' - इसमें किसी वर्ण या वर्ण समूह को बिना किसी रोक-टोक के अपनी व्यक्तिगत पसंद के अनुसार भिन्न रूपों से उच्चारित किया जा सकता है। हिंदी के कुछ देहाती इलाक़ों में 'ज' और 'ज़' में ऐसा देखा जाता है। ऐसी जगहों की देहाती भाषा में 'ज़बान' को 'जबान' और 'जीरा' को 'ज़ीरा' कहना आम है। 'ज़ंजीर' जैसे शब्द को (जो 'ज़' और 'ज' दोनों प्रयोग करता है) अलग-अलग लोग 'जंज़ीर', 'जंजीर', 'ज़ंजीर' और 'ज़ंज़ीर' अपनी पसंद के मुताबिक़ बोलते हैं। इसी तरह कुछ पहाड़ के तराई इलाक़ों में 'श' और 'स' में मुक्त सहस्वानिकी होती है - लोग 'शक्कर' को 'सक्कर' भी कहते हैं लेकिन 'सरकार' को 'शरकार' भी कहते हैं।
 
==सहस्वानिकी और शब्दों में बदलाव==
सहस्वानिकी के कारण कभी-कभी समय के साथ शब्द अपना रूप बदल लेते हैं। उदहारण के लिए संस्कृत के 'व्यवहार' शब्द के हिंदी में दो रूप पाए जाते हैं। कुछ लोग इसमें 'व' को /v/ की भाँती बोलते हैं और कुछ लोग /w/ की भाँती। क्योंकि /व/ की ध्वनी तीख़ी है इसलिए यदि उसके साथ बोला जाए तो उच्चारण नहीं बदलता और /vjəv'haːr/ (व्यवहार) ही रहता है। लेकिन अगर 'व' को /w/ की तरह बोला जाए तो इसकी ध्वनी 'उअ' से मिलती-सी होती है, और शब्द का उच्चारण पहले 'व्युअहार' और फिर बोलने की सरलता के लिए 'व्योहार' बन जाता है। इसी प्रक्रिया से कुछ लोग 'देवपुर' जैसे नाम को अंग्रेज़ी में 'devpur' लिखते हैं और अन्य लोग इसे 'देओपुर' की तरह उच्चारित कर के अंग्रेज़ी में 'deopur' लिखते हैं।
 
==इन्हें भी देखें==