"भोजली देवी": अवतरणों में अंतर

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भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को धान बोए जाते हैं। रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। सावन की पूर्णिमा तक इनमें 4 से 6 इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती हैं और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है।

छत्तीसगढ़ जैसे कुछ प्रांतों में भौजलीभोजली कान में लगाकर मित्र बनाए जाते हैं और इस मित्रता को जीवन भर निभाया जाता है।<ref>{{cite web |url= http://sanjeettripathi.blogspot.com/2007/08/blog-post.html|title= दोस्ती: प्रीत वही पर रीत पराई |accessmonthday=[[24 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|publisher=आवारा बंजारा|language=}}</ref>
 
==संदर्भ==