"प्रकाशमिति": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 1:
{{वार्ता शीर्षक}}किसी [[प्रकाश]]स्रोत से उत्सर्जित प्रकाश [[ऊर्जा]] का मापन करने के लिये अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। इनमें विविध प्रकार के यंत्रों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, जब किसी प्रकाशस्रोत से उत्सर्जित प्रकाश एक तापवैद्युत पुंज (thermopile) के कृष्ण तल पर पड़ता है तब उस तल के ताप में वृद्धि होती है। जिससे प्रकाश ऊर्जा का मापन किया जा सकता है। दो प्रकाशस्रोतों द्वारा उत्सर्जित ऊर्जाओं के परिमाणों की तुलना उन स्रोतों को बारी बारी से तापीय पुंज की समान दूरी पर रखकर तथा उनसे पुंज के तल पर वर्धित ताप के कारण उत्पन्न ताप विद्युत-धाराओं की तुलना धारामापी की सहायता से करके, की जा सकती है। किंतु ये सभी विधियाँ ऊर्जा के सापेक्षिक परिमाणों की ही तुलना कर सकती हैं, उन प्रकाशस्रोतों की कांति या द्युति (brightness) की तुलना नहीं कर सकतीं, क्योंकि प्रकाशस्रोतों की द्युति उनसे उत्सर्जित प्रकाश के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करती है। द्युति का आपेक्षिक ज्ञान हमें अपने नेत्रों द्वारा भली प्रकार होता है, किंतु हमारे नेत्र भी अधिक विश्वसनीय साधन नहीं हैं। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के नेत्र भी भिन्न भिन्न रंगों के प्रकाश को भिन्न भिन्न ढंगों से एवं भिन्न भिन्न मात्राओं में ग्रहण करते हैं। इसलिये दो प्रकाशस्रोतों की द्युतियों का मापन उनसे उत्सर्जित प्रकाश की किसी मानक स्रोत (standard source) की द्युति के साथ तुलना करके और उस मानक की द्युति को इकाई मानकर ही करना आवश्यक होता है, अन्यथा चक्षुदृष्ट कांति का मूल्यांकन करने में सभी एकमत नहीं हो सकते। अन्य विधि यह भी हो सकती है कि उन स्रोतों को द्युतियों की तुलना उनके द्वारा प्रदीप्त किसी तल पर प्रकाश की प्रदीप्ति की तीव्रताओं (intensities of illumination) की तुलना करके की जाय। प्रकाशस्रोतों की दीप्तियों या प्रदीपन शक्तियों (illuminating powers) को अथवा प्रकाशित तलों की प्रदीप्ति की तीव्रताओं की तुलना करने के लिये जो यंत्र अथवा उपकरण व्यवहृत होते हें उन्हें ज्योतिर्मापी या प्रकाशमापी (photometer) कहते हैं और प्रकाशिकी (optics) का वह अंग जो इन क्रियाओं से संबद्ध होता है, '''ज्योतिर्मिति''' या '''प्रकाशमिति''' (photometry) कहलाता है।
 
प्रकाशमिति की प्रक्रिया में मानक प्रकाशस्रोत का सबसे अधिक महत्व है। ऐसे मानक की प्रारंभिक अर्हता यह है कि उसके द्वारा उत्सर्जित प्रकाश स्थिर हो अथवा अत्यल्प परिवर्तनशील हो तथा जिन प्रकाशस्रोतों की तुलना के लिये उसका प्रयोग किया जा रहा है उनके स्पेक्ट्रमी वितरण (spectral distribution) की सन्निकटस्थ सीमा तक उसका भी स्पेक्ट्रमी वितरण हो। इसके अतिरिक्त वह मानक प्रकाश स्रोत सुगमता से पुनरुत्पादनीय भी होना चाहिए और प्रत्येक दशा में उसके विभिन्न भागों में पर्याप्त स्थायित्व भी रहना चाहिए। इन अर्हताओं की पूर्ति के निमित्त अनेक मानक स्रोतों का व्यवहार किया जाता रहा है। इनमें सबसे प्राचीन मानक स्पमेंसेटी कैंडिल या ब्रिटिश कैंडिल है जिसका व्यास ७/८ इंच तथा १/६ पाउंड होती है तथा वह ११० ग्रेन प्रति घंटे की दर से जलती है। किंतु इसकी द्युति पर इसमें प्रयुक्त बत्ती (wick) की तथा प्रयोगस्थल पर व्याप्त वातावरण में विद्यमान जल की मात्रा का प्रभाव अनिवार्य रूप से पड़ता है। इसलिए इसका प्रयोग अब प्राय: नहीं किया जाता और इसके स्थान पर विभिन्न प्रकार के वैद्युत्‌ मानक प्रकाश स्रोतों का व्यवहार किया जाता है। इनमें वर्नन हार्कोटे पेंटेन लैंप (Vernon Harcourt pentane lamp), दस कैंडिल लैंप तथा हेफनर (Hefner) लैंप आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। पूर्वकथित वर्नन हारकोर्ट लैंप में ऐसी व्यवस्था रहती है कि ज्वाला का आकार सदा नियत रहे। सन्‌ १९०९ तक मानक ज्योति तीव्रता (luminous intensity) इस लैंप की ज्योति के दशांश के बराबर मानी जाती रही।। सन्‌ १९२१ में ऐसे अनेक विद्युत लैंपों के समूह की औसत प्रदीपन क्षमता या प्रदीपकता को अंतरराष्ट्रीय मानक माना गया। ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त राज्य अमरीका की तीन प्रमुख मानकीकारक प्रयोगशालाओं में ऐसे मानकों द्वारा अन्य लैंपों के मानकीकरण किए जाते रहे। किंतु शुद्ध पेटेन (अन्य हाइड्रोकार्बनों से मुक्त) के दुष्प्राप्य होने तथा जिस बर्नर से इसकी ज्वाला निकलती है, उसमें तापवृद्धि के साथ ज्वाला की दीर्घता में अनियंत्रणीय परिवर्तन होते रहने के कारण इस लैंप का भी प्रचलन बहुत कम हो गया है। ऊपर कथित हेफ़नर लैंप में ऐमिल ऐसीटेट (amyl acetate) के दहन द्वारा ज्वाला उत्पन्न की जाती है जिसका रंग लाल होता है और जिसकी लंबाई प्राय: ४ सेंटीमीटर होती है। सुगम, सुप्राप्य एवं पुनरुत्पादनीय होने के कारण आजकल इसी लैंप का ज्योतिर्मितीय प्रयोजन के लिये अधिक उपयोग किया जाता है, इसकी ज्योति पेंटेन लैंप के अंतरराष्ट्रीय मानक की ९/१० गुनी होती है। सन्‌ १९३९ में अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (करारनामा) के द्वारा एक नवीन एवं सर्वश्रेष्ठ प्राथमिक मानक (primary standard) का प्रयोग किया जाने लगा है जिसका नाम प्लैंकियन विकिरक (planckian radiator) है। इसमें प्लैटिनम को विद्युद्विधि से उसके गलनांक (melting point) तक उत्तप्त किया जाता है। उसकी द्युति को विशेष विकिरण व्यवस्था द्वारा ज्योतिर्मापी तक प्रेषित किया जाता है। ज्योतितीव्रता की अंतरराष्ट्रीय ईकाई का निर्धारण भी इसी विकिरक के आधार पर किया गया, किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उसका व्यवहार स्थगित हो गया। १ जनवरी, १९४८ ई. से विश्व के कतिपय राष्ट्र पुन: उसका प्रयोग करने लगे हैं। प्लैंकियन विकिरक के प्रति ईकाई सेंटीमीटर की ज्योतीय तीव्रता के षष्ठ दशांश को अंतरराष्ट्रीय कैंडिल या कैंडेला (Candella) कहा जाता है।
पंक्ति 164:
 
[[ar:قياس ضوئي]]
[[bat-smg:Puortėmetrėjė]]
[[be-x-old:Фотамэтрыя]]
[[ca:Fotometria (Òptica)]]
Line 169 ⟶ 170:
[[de:Photometrie]]
[[en:Photometry (optics)]]
[[et:Fotomeetria]]
[[es:Fotometría (óptica)]]
[[et:Fotomeetria]]
[[fr:Photométrie (optique)]]
[[io:Fotometrio]]
Line 184 ⟶ 185:
[[tr:Fotometri]]
[[uk:Світлова величина]]
[[bat-smg:Puortėmetrėjė]]