"कामशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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{{वार्ता शीर्षक}}मानव जीवन के लक्ष्यभूत [[चार पुरुषार्थ|चार पुरुषार्थों]] में "[[काम]]" अन्यतम पुरुषार्थ माना जाता है। [[संस्कृत]] भाषा में उससे संबद्ध विशाल [[साहित्य]] विद्यमान है।
 
==कामशास्त्र का इतिहास==
'''कामशास्त्र''' का आधारपीठ है - महर्षि [[वात्स्यायन]]रचित [[कामसूत्र]]। सूत्र शैली में निबद्ध, वात्स्यायन का यह महनीय ग्रंथ विषय की व्यापकता और [[शैली]] की प्रांजलता में अपनी समता नहीं रखता। महर्षि वात्स्यायन इस शास्त्र में प्रतिष्ठाता ही माने जा सकते हैं, उद्भावक नहीं, क्योंकि उनसे बहुत पहले इस शास्त्र का उद्भव हो चुका था।
 
कामशास्त्र के इतिहास को हम तीन कालविभागों में बाँट सकते हैं - पूर्ववात्स्यायन काल, वात्स्यान काल तथा पश्चातद्वात्स्यायन काल।
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(ड) '''केलिकुतूहलम् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित कृत ''' :- आधुनिक विद्वान् पं० मथुराप्रसाद दीक्षित द्वारा ९४८ श्लोकों एवं १६ तरंगरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रंथ हिन्दी अनुवाद सहित कृष्णदास अकादमी, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
 
इन बहुश: प्रकाशित ग्रंथों के अतिरिक्त कामशास्त्र की अनेक अप्रकाशित रचनाएँ उपलब्ध हैं -
*तंजोर के राजा शाहजी (1664-1710) की श्रृंगारमंजरी;
*नित्यानन्दनाथ प्रणीत कामकौतुकम्,
*रतिनाथ चक्रवर्तिन् प्रणीत कामकौमुदी,
*जनार्दनव्यास प्रणीत कामप्रबोध,
*केशव प्रणीत कामप्राभ्ऋत,
*कुम्भकर्णमहीन्द्र (राणा कुम्भा) प्रणीत कामराजरतिसार,
*वरदार्य प्रणीत कामानन्द,
*बुक्क शर्मा प्रणीत कामिनीकलाकोलाहल,
*सबलसिंह प्रणीत कामोल्लास,
*अनंत की कामसमूह,
*माधवसिंहदेव प्रणीत कामोद्दीपनकौमुदी,
*विद्याधर प्रणीत केलिरहस्य,
*कामराज प्रणीत मदनोदयसारसंग्रह,
*दुर्लभकवि प्रणीत मोहनामृत,
*कृष्णदासविप्र प्रणीत योनिमंजरी,
*हरिहरचन्द्रसूनु प्रणीत रतिदर्पण,
*माधवदेवनरेन्द्र प्रणीत रतिसार,
*आचार्य जगद्धर प्रणीत रसिकसर्वस्व, आदि।
 
इन ग्रंथों की रचना से इस शास्त्र की व्यापकता और लोकप्रियता का पता चलता है।
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://drst11.blogspot.com/2010/09/1.html संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा]
*[http://rachanakar.blogspot.com/2009/12/blog-post_04.html प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का आलेख – खजुराहो : मिथुनाचार को अंकित करने वाली प्रतिमायें ]