"कोंकणी भाषा": अवतरणों में अंतर

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{{वार्ता शीर्षक}}'''कोंकणी''' [[गोवा]], [[महाराष्ट्र]] के दक्षिणी भाग , [[कर्नाटक]] के उत्तरी भाग, [[केरल]] के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषायी तौर पर यह 'आर्य' भाषा परिवार से संबंधित है और [[मराठी]] से इसका काफी निकट का संबंध है। राजनैतिक तौर पर इस भाषा को अपनी पहचान के लिये [[मराठी]] भाषा से काफी संघर्ष करना पड़ा है। अब [[भारतीय संविधान]] के तहत कोंकणी को [[आठवीं अनुसूची]] में स्थान प्राप्त है।
 
कोंकणी अनेक लिपियों में लिखी जाती रही है; जैसे - [[देवनागरी]], [[कन्न्ड]], [[मलयालम]] और [[रोमन]]। [[गोवा]] को राज्य का दर्जा मिलने के बाद दवनागरी लिपि में कोंकणी को वहाँ की राजभाषा घोषित किया गया है।
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== परिचय ==
भारत के पश्चिमी तट स्थित कोंकण प्रदेश में प्रचलित बोलियों को सामान्यत: कोंकणी कहते है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के परिणामस्वरूव इस प्रदेश में बोली जानेवाली भाषा के तीन रूप हैं--
* (1) मराठीभाषी क्षेत्र से संलग्न मालवण-रत्नगिरि क्षेत्र की भाषा;
* (2) मंगलूर से संलग्न दक्षिण कोंकणी क्षेत्र की भाषा जिसका कन्नड़ से संपर्क है तथा
* (3) मध्य कोंकण अथवा [[गोमांतक]] (गोवा) कारवार में प्रचलित भाषा। गोवावाला प्रदेश अनेक शती तक [[पुर्तगाल]] के अधीन था। वहाँ पुर्तगालियों ने जोर जबर्दस्ती के बल पर लोगें से धर्मपरिवर्तन कराया और उनके मूल सांस्कृतिक रूप को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया। इन सब के बावजूद लोगों ने अपनी मातृभाषा का परित्याग नहीं किया। उल्टे अपने धर्मोपदेश के निमित्त ईसाई पादरियों ने वहाँ की बोली में अपने गंथ रचे। धर्मांतरित हुए नए ईसाई प्राय: अशिक्षित लोग थे। उन्हें ईसाई धर्म का तत्व समझाने के लिये पुर्तगाली पादरियों ने कोंकणी का आश्रय लिया।