"वैशेषिक दर्शन": अवतरणों में अंतर

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इस प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले कणाद ने सूत्र रूप में लिखा। कणाद एक ऋषि थे। ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणमुक्" कहते थे। किसी का कहना है कि कण अर्थात् परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है, इसलिए इन्हें "कणाद" कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये समाधि में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति "उल्लू" पक्षी की है। किस का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया। इन्हीं कारणों से यह दर्शन "औलूक्य", "काणाद", "वैशेषिक" या "पाशुपत" दर्शन के नामों से प्रसिद्ध है।
 
 
== नामकरण ==
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इस प्रकार के दोनों शास्त्र कतिपय सिद्धांतों में भिन्न-भिन्न मत रखते हुए भी परस्पर संबद्ध हैं। इनके अन्य सिद्धांत परस्पर लागू होते हैं।
 
 
वैशेषिक दर्शन जीवन का मुख्य लक्ष्य है परमानंद की प्राप्ति या दु:ख की आत्यंतिक निवृत्ति। यह "आत्मदर्शन" से ही होता है। "आत्मा वा अरे द्रष्टव्य:", यह भारतीय दर्शनों का तथा धर्म का भी लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग भी एक ही है - "नान्य: पपंथा विद्यतेयनाय"। इसलिए आत्मा को देखने का प्रयत्न करते हुए तपस्वी लोगों ने अपने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से भिन्न-भिन्न समय में उपासना के द्वारा प्राप्त अपने अनुभवों को नियमबद्ध किया। उन अनुभवों को उनके विषय के अनुसार संकलित कर और उन्हें भिन्न भिन्न नाम देकर आचार्यों ने भिन्न-भिन्न दर्शनों को प्रवर्तित किया। इन दर्शनों की संख्या अनियत है और अनंत हो सकती है।
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*[http://sa.wikibooks.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D देवनागरी में '''वैशेषिकसूत्र''']
* [http://nitaaiveda.com/All_Scriptures_By_Acharyas/Six_Philosophies/Vaisesikasutram.htm वैशेषिकसूत्रम्] (रोमन् लिपि में)
 
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
 
[[cs:Vaišéšika]]