"अमरकोश": अवतरणों में अंतर
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{{वार्ता शीर्षक}}'''अमरकोष''' (या अमरकोश) [[संस्कृत]] के कोशों में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला [[समान्तर कोश]] (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसकी रचनाकार [[अमरसिंह]] बताये जाते हैं। अन्य [[संस्कृत]] कोशों की भांति अमरकोश भी छंदोबद्ध रचना है। इसका कारण यह है कि भारत के प्राचीन पंडित "पुस्तकस्था' विद्या को कम महत्व देते थे। उनके लिए कोश का उचित उपयोग वही विद्वान् कर पाता है जिसे वह कंठस्थ हो। श्लोक शीघ्र कंठस्थ हो जाते हैं। इसलिए संस्कृत के सभी मध्यकालीन कोश पद्य में हैं। इतालीय पडित पावोलीनी ने सत्तर वर्ष पहले यह सिद्ध किया था कि संस्कृत के ये कोश कवियों के लिए महत्वपूर्ण तथा काम में कम आनेवाले शब्दों के संग्रह हैं। अमरकोश ऐसा ही एक कोश है।
अमरकोश का वास्तविक नाम अमरसिंह के अनुसार '''नामलिगानुशासन''' है। नाम का अर्थ यहाँ [[संज्ञा]] शब्द है। अमरकोश में संज्ञा और उसके लिंगभेद का अनुशासन या [[शिक्षा]] है। [[अव्यय]] भी दिए गए हैं, किन्तु धातु नहीं हैं। धातुओं के कोश भिन्न होते थे ( [[काव्यप्रकाश]], [[काव्यानुशासन]] आदि )। [[हलायुध]] ने अपना कोश लिखने का प्रयोजन '''कविकंठविभूषणार्थम्''' बताया है। धनंजय ने अपने कोश के विषय में लिखा है - '''मैं इसे कवियों के लाभ के लिए लिख रहा हूँ''' (कवीनां हितकाम्यया) । अमरसिंह इस विषय पर मौन हैं, किंतु उनका उद्देश्य भी यही रहा होगा।
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