"गर्भगृह": अवतरणों में अंतर

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{{वार्ता शीर्षक}}'''गर्भगृह''' मंदिरस्थापत्य का शब्द। गर्भगृह [[मंदिर]] का वह भाग है जिसमें देवमूर्ति की स्थापना की जाती है।
 
==परिचय==
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गर्भगृह के तीन ओर की भित्तियों में बाहर की ओर जो तीन प्रतिमाएँ बनाई जाती हैं, उन्हें रथिकाबिंव कहते हैं। ये भी देवमूर्तियाँ होती हैं जिन्हें गर्भगृह की प्रदक्षिणा करते समय प्रणाम किया जाता है।
 
गर्भगृह की लंबाई चौड़ाई प्राय: छोटी ओर बराबर होती है। प्रदक्षिण पथ से घिरे मंदिरों में प्राय: अँधेरा रहती है, इस कारण उन्हें सांधार कहते हैं। गर्भगृह मंदिर का हृदयस्थान है। यह पूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हो जाने के बाद अत्यंत पवित्र माना जाता है। विष्णु आदि की मूर्तियाँ प्राय: पिछली दीवार के सहारेरखी जाती हैं और शिवलिंग की स्थापना गर्भगृह के बीचोबीच होती हैं। देवतत्त्व की दृष्टि से गर्भगृह अत्यंत मांगलिक और महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यही मंदिर का ब्रह्मस्थान है। देवगृह के भीतरी भाग में दीवारों पर प्राय: और कोई रचना नहीं करते किंतु इसके अपवाद भी हैं। देवगृह की छत प्राय: सपाट होती हैं किंतु शिखर सहित मंदिरों में इसका भी अपवाद देखा जाता है। आरंभकाल में देवगृह या मंडोवर की रचना संयत और सादी होती थी। उस समय विशेष अलंकरणों का प्रयोग न था, किंतु समय पाकर देवगृह भित्तियों में नाना प्रकार के अलंकरण बनाए जाने लगे। देवगृह के द्वार सहित चारों ओर की भित्तियाँ चार भद्र कही जाती हैं। भद्र के तीन भाग करके यदि बीच का भाग कुछ निकाल दिया जाय तो वह तीन भागों में बँटा हुआ भद्र त्रिरथ कहलाता है। ऐसे ही पंचरथ, सप्तरथ नौरथ तक बनाए जा सकते हैं। बीच का निकला हुआ भाग या निर्गम रथ और दोनों कोनों के अंत:प्रविष्ट भाग प्रतिरथ कहलाते हैं। यदि निर्गम और प्रवेशवाले भागों की संख्या पाँच हुई तो बीच का भाग रथ, उसके दोनों ओर के भाग प्रतिरथ ओर दोनों कोनों के कोणरथ कहलाते हैं। उत्सेध, उदय या ऊँचाई में भी गर्भगृह के बाहर की ओर बहुत से अलंकरण बनाए जाते हैं; उनमें ऊपर नीचे दो जंघाएँ और उनके बीच की तीन पट्टियाँ कहलाती हैं। जंघाओं पर प्राय: स्त्रीमूर्तियों का अंकन रहता है, जिन्हें प्रेक्षणिका, सुरसुंदरी, अलसकन्या, अप्सरा आदि कई नाम दिए गए हैं। वे प्राय: नृत्य, नाट्य, संगीत और मिथुनश्रृगांर की मुद्राओं में अंकित की जाती हैं। देवगृह का उठान नीचे की खुरशिला से लेकर कलश तक, वास्तु और शिल्प के सुनिश्चित नियमों के अनुसार बनाया जाता है। उसमें एक एक घर के पत्थरों के नाम, रूप या अलंकरण निश्चित हैं, किंतु उनके भेद भी अनंत हैं। गर्भगृह प्राय: चौकोर होता है, किंतु चतुरस्र आकृति के अतिरिक्त आयताकार बेसर (द्वयस्र) अर्थात एक ओर गोल तथा एक ओर चौकोर और परिमंडल ये आकृतियों भी स्वीकृत हैं, किंतु व्यवहार में बहुत कम देखी जाती हैं।
 
[[श्रेणी:वास्तु]]