"अयोध्या प्रसाद खत्री": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Ayodhyaprasad khattri.jpg|thumb|right|200px|अयोध्या प्रसाद खत्री]]
'''अयोध्या प्रसाद खत्री''' ([[१८५७]]-[[४ जनवरी]] [[१९०५]]) का नाम हिंदी पद्य में [[खड़ी बोली]] हिन्दी के प्रारम्भिक समर्थकों और पुरस्कर्ताओं में प्रमुख है। उन्होंने उस समय [[हिन्दी]] [[कविता]] में खड़ी बोली के महत्त्व पर जोर दिया जब अधिकतर लोग [[ब्रजभाषा]] में कविता लिख रहे थे।<ref>{{cite web |url= http://hindilekhak.blogspot.com/2007/10/ayodhya-prasad-khatri.html|title=अयोध्या प्रसाद खत्री |accessmonthday=[[४ दिसंबर]]|accessyear=[[२००७]]|format= एचटीएमएल|publisher=छाया|language=}}</ref> उनका जन्म [[बिहार]] में हुआ था बाद में वे बिहार के [[मुजफ्फरपुर जिला|मुजफ्फरपुर]] जिले में कलक्‍टरी के पेशकार पद पर नियुक्त हुए। [[१८७७]] में उन्होंने ''हिन्दी व्याकरण'' नामक खड़ी बोली की पहली व्याकरण पुस्तक की रचना की जो बिहार बन्धु प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनके अनुसार खड़ीबोली गद्य की चार शैलियाँ थीं- मौलवी शैली, मुंशी शैली, पण्डित शैली तथा मास्टर शैली। [[१८८७]]-[[१८८९|८९]] में इन्होंने "खड़ीबोली का पद्य" नामक संग्रह दो भागों में प्रस्तुत किया जिसमें विभिन्न शैलियों की रचनाएँ संकलित की गयीं। इसके अतिरिक्त सभाओं आदि में बोलकर भी वे खड़ीबोली के पक्ष का समर्थन करते थे। [[सरस्वती पत्रिका|सरस्वती]] मार्च [[१९०५]] में प्रकाशित "अयोध्याप्रसाद" खत्री शीर्षक जीवनी के लेखक पुरुषोत्तमप्रसाद ने लिखा था कि खड़ी बोली का प्रचार करने के लिए इन्होंने इतना द्रव्य खर्च किया कि राजा-महाराजा भी कम करते हैं। [[१८८८]] में उन्‍होंने 'खडी बोली का आंदोलन' नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाई।