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उनकी एकमात्र रचना [[वक्रोक्तिजीवित]] है जो अधूरी ही उपलब्ध हैं। वक्रोक्ति को वे काव्य का 'जीवित' (जीवन, प्राण) मानते हैं। पूरे ग्रंथ में वक्रोक्ति के स्वरूप तथा प्रकार का बड़ा ही प्रौढ़ तथा पांडित्यपूर्ण विवेचन है। वक्रोक्ति का अर्थ है वदैग्ध्यभंगीभणिति (सर्वसाधारण) द्वारा प्रयुक्त वाक्य से विलक्षण कथनप्रकार
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