"निघंटु": अवतरणों में अंतर

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'''निघंटु''' [[संस्कृत]] का प्राचीन शब्दकोश है। इसमें वैदिक साहित्य में प्राप्त शब्दों का अपूर्व संग्रह है। वैदिक संहिताओं में से चुनकर यहाँ पर शब्द एकत्र किए गए हैं। यह संभवत: संसार के कोश साहित्य की सर्वप्रथम रचना है। वैदिक साहित्य के विशिष्ट शब्दों का संग्रह बहुत ही सुध्यवस्थित रूप से इसमें किया गया है।
 
निघंटु शब्द का अर्थ है - नामसंग्रह । निघंटु "नि" उपसर्गक "घटि" धातु से "मृगव्यादयश्च" उणा. 1.38 सूत्र से कु प्रत्यय करने पर निघंटु शब्द व्युत्पन्न होता है।
'''निघंटु''' [[संस्कृत]] का प्राचीन शब्दकोश है। इसमें वैदिक साहित्य में प्राप्त शब्दों का अपूर्व संग्रह है। वैदिक संहिताओं में से चुनकर यहाँ पर शब्द एकत्र किए गए हैं। यह संभवत: संसार के कोश साहित्य की सर्वप्रथम रचना है। वैदिक साहित्य के विशिष्ट शब्दों का संग्रह बहुत ही सुध्यवस्थित रूप से इसमें किया गया है।
 
निघंटु शब्द का अर्थ है - नामसंग्रह । निघंटु "नि" उपसर्गक "घटि" धातु से "मृगव्यादयश्च" उणा. 1.38 सूत्र से कु प्रत्यय करने पर निघंटु शब्द व्युत्पन्न होता है।
 
प्राचीन काल में संभवत: इस निघंटु की तरह के कुछ अन्य निघंटु भी रहे होंगे, किंतु अभी तक उनके अस्तित्व का कुछ प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पाया है। इस निर्घटु के रचयिता के विषय में यद्यपि विद्वानों के अनेक पूर्व पक्ष हैं तथापि विशिष्ट एवं प्राचीन विद्वानों के द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि इसके रचयिता '''यास्क''' हैं। इसका प्रारंभ "गो" शब्द से होता है और समाप्ति "देवपत्नी" शब्द से देखी जाती है।
 
== निघंटु की विषय-वस्तु ==
निघंटु के पाँच अध्याय हैं। प्रारंभ के तीन अध्यायों में "नैघंटुक" शब्दों का संग्रह है। चतुर्थ अध्याय में "नैगम" शब्द और पंचम अध्याय में "दैवत" शब्द एकत्रित किए गए हैं। प्रत्येक अध्याय में विभागद्योतक खंड हैं। पहले तीन अध्यायों में सजातीय शब्दों का चयन किया गया है। यह नियम चतुर्थ और पंचम अध्यायों में नहीं है।
 
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[[en:Nighantu]]
[[mr:निघंटु]]
[[sv:Nighantu]]