"अन्ना हज़ारे": अवतरणों में अंतर
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'''किसन बाबूराव
==परिचय==
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छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी
==अन्ना से झुकतीं है सरकारें ==
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समाजसेवी अन्ना हजारे का मूल नाम डॉ. किशन बाबूराव हजारे है। उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव में हुआ था। उन्होंने 1975 में अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत की थी। अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान 1995 में बनी थी जब उन्होंने शिवसेना-बीजेपी की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। 1990 तक हजारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता की थी, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि नाम के गांव की कायापलट कर दी थी। पहले इस गांव में बिजली और पानी की जबर्दस्त किल्लत थी। हजारे ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया। उनके ही कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई भी मिली। इसके बाद हजारे की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ।
1995 में महाराष्ट्र के तीन 'भ्रष्ट' मंत्रियों-शशिकांत सुतार, महादेव शिवंकर और बबन घोलाप के खिलाफ वे अनशन पर बैठे थे। सरकार को झुकना पड़ा और सुतार और शिवंकर को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया। घोलाप ने
अन्ना के
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