"अन्ना हज़ारे": अवतरणों में अंतर

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'''किसन बाबूराव हजारेहज़ारे''' (जन्म 15 जून, 1938), [[भारत]] के प्रसिद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अधिकांश लोग उन्हें 'अण्णा हजारे' के नाम से ही जानते हैं। सन् १९९२ में उन्हें [[पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया था। [[सूचना का अधिकार|सूचना के अधिकार]] के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे। साफ-सुथरी छबि वाले हजारेहज़ारे [[भ्रष्टाचार]] के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये प्रसिद्ध हैं। [[जन लोकपाल विधेयक]] पारित कराने के लिये उन्होने आमरण अनशन आरम्भ किया जिसे अपार समर्थन मिला जिससे घबराकर सरकार को उनकी मांगे मानने को विवश हुई।
 
==परिचय==
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छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
 
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी जमीनज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का रामराजराम राज है। गांव में तो उन्होंने रामराजराम राज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं : भ्रष्टाचार रहित भारत।
 
==अन्‍ना से झुकतीं है सरकारें ==
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समाजसेवी अन्ना हजारे का मूल नाम डॉ. किशन बाबूराव हजारे है। उनका जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव में हुआ था। उन्होंने 1975 में अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत की थी। अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान 1995 में बनी थी जब उन्होंने शिवसेना-बीजेपी की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। 1990 तक हजारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता की थी, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि नाम के गांव की कायापलट कर दी थी। पहले इस गांव में बिजली और पानी की जबर्दस्त किल्लत थी। हजारे ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया। उनके ही कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई भी मिली। इसके बाद हजारे की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ।
 
1995 में महाराष्ट्र के तीन 'भ्रष्ट' मंत्रियों-शशिकांत सुतार, महादेव शिवंकर और बबन घोलाप के खिलाफ वे अनशन पर बैठे थे। सरकार को झुकना पड़ा और सुतार और शिवंकर को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया। घोलाप ने हजारेहज़ारे के खिलाफ अवमानना का मुकदमा कर दिया। हजारे ने दावा किया था घोलाप ने ज्ञात स्रोतों से अपनी कमाई के अनुपात में बहुत ज़्यादा रकम इकट्ठा कर ली है। हालांकि, हजारे अदालत में इन दावों के समर्थन में सबूत पेश नहीं कर पाए, जिसके बाद अदालत ने उन्हें तीन महीने की जेल की सज़ा सुनाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने एक दिन की सज़ा के बाद ही उन्हें जेल से बाहर कर दिया। इसके बाद अन्ना ने मनोहर जोशी, गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। हालांकि, बाद में उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए।
 
अन्ना के गांधीवादीगाँधीवादी विरोध का सामना महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी की सरकारों को भी करना पड़ा है। अन्ना 2003 में कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठ गए। हजारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। मलिक ने इस्तीफे दे दिया। आयोग ने जैन के खिलाफ आरोप तय किए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अन्ना हजारे को 1990 में सरकार ने 'पद्मश्री' सम्मान से नवाजा था।
 
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