"पुष्य": अवतरणों में अंतर
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पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण का अक्षर 'हू' है. द्वितीय चरण का अक्षर 'हे' है. तृ्तीय चरण का अक्षर 'हो' है. चतुर्थ चरण का अक्षर 'ड' है. पुष्य नक्षत्र की योनि मेष है. पुष्य नक्षत्र को ऋषि मरीचि का वंशज माना गया है.
==रवि पुष्य==
पुराण के अनुसार रविवार को पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र में दान-जप का विशेष महत्व है। इस नक्षत्र में भूमि, भवन की खरीदी, व्यापार का शुभारंभ, कृषि कार्य का प्रारंभ अच्छा तथा शुभ माना गया है।
इस नक्षत्र को अत्यंत शुभ माना जाता है। रविवार या गुरूवार को यदि पुष्य नक्षत्र हो तो यह अमृत सिद्धि योग बनता है। रवि-गुरू पुष्य नक्षत्र में शुभ कार्य करने के लिए ग्रह बल, चंद्र बल, गुरू-शुक्र अस्त, मलमास इन सबका विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इस शुभ योग में आप वाहन खरीदें, रत्न धारण करें, मंत्र-पूजा करें वह शुभ माना जाता है।
==गुरु पुष्य योग==
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