"महावाक्य": अवतरणों में अंतर

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वेद में कई '''महावाक्य''' हैं। जैसेः
 
*[[नेति नेति]] (यह भी नही, यह भी नहीं)
 
*[[अहं ब्रह्मास्मि]] (मैं ब्रह्म हूँ)
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वेद की व्याख्या इन महावाक्यों से होती है।
 
 
[[उपनिषद]] उद्घोष करते हैं कि मनुष्य देह, इंद्रिय और मन का संघटन मात्र नहीं है, बल्कि वह सुख-दुख, जन्म-मरण से परे दिव्यस्वरूप है, आत्मस्वरूप है। आत्मभाव से मनुष्य जगत का द्रष्टा भी है और दृश्य भी। जहां-जहां ईश्वर की सृष्टि का आलोक व विस्तार है, वहीं-वहीं उसकी पहुंच है। वह परमात्मा का अंशीभूत आत्मा है। यही जीवन का चरम-परम पुरुषार्थ है।
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[[श्रेणी:वेद]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
 
[[de:Mahavakya]]