"सूखा": अवतरणों में अंतर
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'''अकाल''' भोजन का एक व्यापक अभाव है जो किसी भी पशुवर्गीय प्रजाति पर लागू हो सकता है. इस घटना के साथ या इसके बाद आम तौर पर क्षेत्रीय [[
जब किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक (कई महीने या कई वर्ष तक) वर्षा कम होती है या नहीं होती है तो इसे सूखा या अकाल कहा जाता है। सूखे के कारण प्रभावित क्षेत्र की कृषि एवं वहाँ के पर्यावरण पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। इतिहास में कुछ अकाल बहुत ही कुख्यात रहे हैं जिसमें करोंड़ों लोगों की जाने गयीं हैं।
अकाल राहत के आपातकालीन उपायों में मुख्य रूप से क्षतिपूरक [[
लंबी अवधि के उपायों में शामिल हैं आधुनिक [[
== अकाल के कारण ==
{{see also|Theories of famines}}
[[File:Дистрофия алиментарная.jpg|thumb|1941 में डिसट्रोफिया से जूझ रहा एक भूखा वृद्ध.
अकाल की परिभाषाएं तीन अलग-अलग श्रेणियों पर आधारित हैं - खाद्य आपूर्ति के आधार पर, भोजन की खपत के आधार पर और मृत्यु दर के आधार पर. अकाल की कुछ परिभाषाएं हैं:
* ब्लिक्स - खाद्य पदार्थों की व्यापक कमी जिसके कारण क्षेत्रीय मृत्यु दरों में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है.{{sfn|Blix|Svensk näringsforskning|1971|p=}}
* ब्राउन और एखोलम - खाद्य आपूर्ति में अचानक, तीव्रता से होने वाली कमी जिसके परिणाम स्वरूप व्यापक भुखमरी पैदा हो जाती है.{{sfn|Brown|Eckholm|1974|p=}}
* स्क्रिमशॉ - बड़ी संख्या में लोगों की भोजन की खपत के स्तर में अचानक गिरावट. {{sfn|Scrimshaw|1987|p=}}
* रैवेलियन - किसी आबादी के कुछ खंडों में भोजन ग्रहण करने पर असामान्य रूप से गंभीर खतरे के साथ असामान्य रूप से उच्च मृत्यु दर.{{sfn|Ravallion|1996|p=2}}
* क्यूनी - परिस्थितियों का एक ऐसा सेट जो उस समय उत्पन्न होता है जब किसी क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग पर्याप्त मात्रा में भोजन प्राप्त नहीं कर पाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप एक बड़े पैमाने पर तीव्रता से कुपोषण फ़ैल जाता है.{{sfn|Cuny|1999|p=}}
किसी आबादी में खाद्य पदार्थों की कमी या तो भोजन की कमी या फिर भोजन के वितरण में कठिनाइयों के कारण होता है; यह स्थिति प्राकृतिक जलवायु के उतार-चढ़ावों और दमनकारी सरकार या युद्ध से संबंधित चरम राजनीतिक परिस्थितियों के कारण और भी बदतर हो सकती है. आयरलैंड का भीषण अकाल आनुपातिक रूप से सबसे बड़े ऐतिहासिक अकालों में से एक था. इसकी शुरुआत 1845 में आलू की बीमारी की वजह से हुई थी और यह इसलिए भी हुआ क्योंकि खाद्य पदार्थों को आयरलैंड ''से'' इंग्लैंड भेजा जा रहा था. केवल अंग्रेज ही उच्च मूल्यों का भुगतान करने में सक्षम थे. हाल ही में इतिहासकारों ने अपने उन आकलनों को संशोधित किया है जिसके अनुसार यह बताया गया था कि अकाल को कम करने में अंग्रेजों द्वारा कितना अधिक नियंत्रण का प्रयास किया जा सकता था, इसमें यह पाया गया कि आम तौर पर जितना समझा जाता था उन्होंने उससे कहीं अधिक मदद करने की कोशिश की थी.<ref>
कुछ तत्व एक विशेष क्षेत्र को अकाल के लिए अत्यधिक संवेदनशील बना देते हैं. इनमें शामिल हैं:{{sfn|Ravallion|1996|p=1}}
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* एक कमजोर या पहले से तैयार नहीं रहने वाली सरकार
कुछ मामलों में, जैसे कि चीन में ग्रेट लीप फॉरवार्ड (जिसने पूर्ण संख्याओं में सबसे बड़ा अकाल पैदा किया था), 1990 के दशक के मध्य में [[
कई अकाल बड़ी आबादी वाले देशों की तुलना में, जिनकी आबादी क्षेत्रीय वहन क्षमता से अधिक हो जाती है, खाद्य उत्पादन में असंतुलन के कारण पैदा होते हैं. ऐतिहासिक रूप से अकाल की स्थिति कृषि संबंधी समस्याओं जैसे कि
फसल कटाई की विफलता या परिस्थितियों में बदलाव जैसे कि
अकाल की स्थिति ज्वालामुखीय घटना के कारण भी उत्पन्न हुई है. 1885 में इंडोनेशिया में [[टैम्बोरा|माउंट तंबोरा]] ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण दुनिया भर में फसल नष्ट हो गए थे और अकाल की स्थितियां पैदा हो गयी थीं जिसके कारण 19वीं सदी का भीषण अकाल पड़ा था. वैज्ञानिक समुदाय की मौजूदा सर्वसम्मति यह है कि ऊपरी वायुमंडल में निकलने वाले एयरोसोल और धूलकण सूर्य की ऊर्जा को जमीन तक पहुंचने से रोककर तापमान को ठंडा कर देते हैं. यही प्रणाली सैद्धांतिक रूप से अत्यंत विशाल उल्का-पिंडों के कारण बड़े पैमाने पर विलुप्तियों की हद तक पड़ने वाले प्रभावों पर लागू होती है.
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{{See also|Water crisis}}
{{Out of date|article|date=December 2010}}
गार्जियन की रिपोर्ट है कि 2007 में दुनिया की लगभग 40% कृषि योग्य भूमि का स्तर गंभीर रूप से गिर गया है.<ref>
|journal = New Scientist Magazine |title=Billions at risk from wheat super-blight |date=2007-04-03
|accessdate = 2007-04-19 |issue= 2598 |pages = 6–7}}</ref>
20वीं सदी की शुरुआत में आंशिक रूप से अकाल से निपटने के क्रम में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन [[उर्वरक|उर्वरकों]], नए कीटनाशकों, रेगिस्तानी कृषि और अन्य कृषि प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल होना शुरु हो गया था. 1950 और 1984 के बीच जब [[
कॉर्नेल विश्वविद्यालय में पारिस्थितिकी और [[
भूविज्ञानी डेल एलन फीफर का दावा है कि आने वाले दशकों में [[भोजन|खाद्य पदार्थों]] की कीमतों में किसी राहत के बिना उत्तरोत्तर वृद्धि और वैश्विक स्तर पर ऐसी भारी [[
[[
== अकाल के लक्षण ==
अकाल [[उप-सहारा अफ़्रीका|उप-सहाराई अफ्रीकी]] देशों को सबसे अधिक बुरी तरह से प्रभावित करता है लेकिन खाद्य संसाधनों की अत्यधिक खपत, भूजल की अत्यधिक निकासी, युद्ध, आंतरिक संघर्ष और आर्थिक विफलता के साथ अकाल दुनिया भर के लिए एक समस्या बनी हुई है जिसका सामना सैकड़ों लाख लोगों को करना पड़ता है.<ref>
प्रतिरक्षण सहित राहत की प्रौद्योगिकियों ने जन स्वास्थ्य अवसंरचना, सामान्य खाद्य राशन और कमजोर बच्चों के लिए पूरक भोजन की व्यवस्था में सुधार किया है, इससे अकालों के मृत्यु दर संबंधी प्रभावों में अस्थायी रूप से कमी आयी है, जबकि उनके आर्थिक परिणामों को अपरिवर्तित छोड़ दिया गया है और खाद्य उत्पादन क्षमता के सापेक्ष एक क्षेत्रीय जनसंख्या के एक बहुत बड़े अंतर्निहित मुद्दे को हल नहीं किया गया है. मानवीय संकट भी नरसंहार अभियानों, गृह युद्धों, शरणार्थियों के प्रवाह और चरम हिंसा तथा साम्राज्य के पतन के प्रकरणों से उत्पन्न होते हैं जिससे प्रभावित आबादी के बीच अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है.
भुखमरी और अकाल का खात्मा करने के लिए दुनिया के नेताओं द्वारा बार-बार दोहराए गए कथित इरादों के बावजूद अकाल अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर भागों में एक चिरकालिक खतरा बना हुआ है. जुलाई 2005 में फैमिन अर्ली वार्निंग सिस्टम्स नेटवर्क ने [[नाइजर.|नाइजीरिया]] के साथ-साथ [[
कुछ लोगों का मानना था कि [[
फ्रांसिस मूर लैपे जो बाद में इंस्टिट्यूट फॉर फ़ूड एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (फ़ूड फर्स्ट) के सह-संस्थापक बने, उन्होंने ''डाइट फॉर ए स्मॉल प्लानेट'' (1971) में यह तर्क दिया कि शाकाहारी आहार मांसाहारी आहारों की तुलना में उन्हीं संसाधनों के साथ एक बड़ी आबादी के लिए भोजन प्रदान कर सकते हैं.
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आधुनिक समय में स्थानीय और राजनीतिक सरकार तथा [[अशासकीय संस्था|गैर-सरकारी संगठन]] जो अकाल राहत प्रदान करते हैं उनके पास सीमित संसाधन मौजूद होते हैं जिनके जरिये उन्हें एक साथ उत्पन्न होने वाली खाद्य असुरक्षा की विभिन्न स्थितियों से निबटना पड़ता है. इस प्रकार खाद्य राहत सामग्री के सबसे प्रभावशाली ढंग से आवंटन के क्रम में खाद्य सुरक्षा के वर्गीकरण को श्रेणीबद्ध करने के विभिन्न विधियों का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें से एक सबसे प्रारंभिक विधि 1880 के दशक में अंग्रेजों द्वारा तैयार की गयी भारतीय अकाल संहिता है. संहिताओं में खाद्य असुरक्षा के तीन चरणों को सूचीबद्ध किया गया था: लगभग-तंगी, अभाव और अकाल, इसके अलावा ये बाद में अकाल की चेतावनी या मापन प्रणालियों के निर्माण में अत्यंत प्रभावशाली रहे थे. उत्तरी [[कीनिया|केन्या]] में तुर्काना लोगों के आवासीय क्षेत्रों की निगरानी के लिए विकसित पूर्व चेतावनी प्रणाली में भी तीन स्तर हैं, लेकिन प्रत्येक चरण का संबंध संकट को कम करने और इसे कमजोर करने की एक पूर्व-निर्धारित प्रतिक्रिया से जुड़ा हुआ है.
1980 और 1990 के दशक में दुनिया भर में अकाल राहत संगठनों के अनुभव के परिणाम स्वरूप कम से कम दो प्रमुख गतिविधियां सामने आयीं: "आजीविका का दृष्टिकोण" और किसी संकट की गंभीरता के निर्धारण के लिए पोषण संकेतकों का अधिक से अधिक इस्तेमाल. खाद्य सामग्री की तनावपूर्ण स्थितियों में व्यक्तियों और समूहों द्वारा खपत की पूर्ति सीमित कर इसका सामना करने का प्रयास किया जाएगा जो [[
2004 के बाद से अकाल राहत में संलग्न कई सबसे महत्वपूर्ण संगठन जैसे कि विश्व खाद्य कार्यक्रम और अंतरराष्ट्रीय विकास की अमेरिकी एजेंसी ने तीव्रता और परिमाण को मापने के लिए एक पंच-स्तरीय पैमाने को अपनाया है. तीव्रता का पैमाना किसी भी परिस्थिति को खाद्य सुरक्षित, खाद्य असुरक्षित, खाद्य संकट, अकाल, गंभीर अकाल और चरम अकाल के रूप में वर्गीकृत करने के लिए आजीविका के उपायों और मृत्यु दर तथा बाल कुपोषण की माप दोनों का इस्तेमाल करता है. मौतों की संख्या परिमाण के नाम का निर्धारण करती है जिसमें 1000 से कम हताहतों की संख्या एक "मामूली अकाल" को परिभाषित करती है और एक "भयावह अकाल" का नतीजा 1,000,000 से अधिक लोगों की मौतों के रूप में सामने आता है.
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===अकाल निवारण===
{{Main|food security}}
[[
[[
===अकाल राहत===
{{Main|famine relief}}
[[सूक्ष्म पोषक तत्व|सूक्ष्म पोषक]] तत्वों की कमी की व्यवस्था सुदृढ़ खाद्य पदार्थों के माध्यम से की जा सकती है.<ref name="hiddenhunger">
सहायता समूहों के बीच एक बढ़ती समझ यह है कि भूखों को सहायता प्रदान करने के लिए खाद्य सामग्री की बजाय नगदी या नगदी वाउचर देना एक किफायती, तेज और अधिक प्रभावी तरीका है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां खाद्य सामग्री उपलब्ध होती है लेकिन इसे खरीद पाना संभव नहीं होता है.<ref name="csmonitor">
हालांकि एक
[[
== ऐतिहासिक अकाल, क्षेत्र के अनुसार ==
{{See|List of famines}}
20वीं सदी के दौरान एक अनुमान के मुताबित 70 मिलियन लोग दुनिया भर में अकाल की वजह से मारे गए थे जिनमें से अनुमान के मुताबिक़ 30 मिलियन लोगों की मौत [[
=== अफ्रीका में अकाल ===
[[File:Niger childhood malnutrition 16oct06.jpg|thumb|right|2005 के अकाल के दौरान नाइजर में कुपोषित बच्चे.]]
22वीं सदी ई.पू. के मध्य में एक अचानक और अल्पकालिक जलवायु परिवर्तन हुआ जो कम वर्षा का कारण बना जिसके परिणाम स्वरूप ऊपरी मिस्र में कई दशकों तक सूखा पड़ा रहा. माना जाता है कि परिणामी अकाल और नागरिक संघर्ष पुराने साम्राज्यों के पतन का एक प्रमुख कारण रहा है.
फर्स्ट इंटरमीडिएट पीरियड का एक विवरण कहता है, "संपूर्ण ऊपरी मिस्र में भूख की वजह से मौतें हो रही थीं और लोग अपने बच्चों को खा रहे थे." 1680 के दशक में अकाल का विस्तार संपूर्ण सहेल में हो गया था और 1738 में [[
जॉन इलिफे के अनुसार, "16वीं सदी के [[
अफ्रीकी अकाल के इतिहासकारों ने [[
अपनी एक-तिहाई आबादी की जान गंवानी पड़ी थी.<ref>
हालांकि 20वीं सदी के मध्य भाग के लिए कृषकों, अर्थशास्त्रियों और भूगोलविदों ने अफ्रीका को अकाल के प्रति संवेदनशील नहीं माना था (वे एशिया को लेकर कहीं अधिक चिंतित थे).{{Citation needed|date=November 2007}} इसके कई उल्लेखनीय जवाबी-उदाहरण थे जैसे कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान [[
तब से अफ्रीकी अकाल कहीं अधिक निरंतर, अधिक व्यापक और अधिक गंभीर हो गए हैं. कई अफ्रीकी देश खाद्य उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं जो खाद्य सामग्री के आयात के लिए [[नकदी फसल|नकदी फसलों]] पर निर्भर करते हैं. अफ्रीका में [[
कई ऐसे कारक हैं जो अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को कमजोर बनाते हैं जिनमें शामिल हैं राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य संघर्ष और गृह युद्ध, [[भ्रष्टाचार (आचरण)|भ्रष्टाचार]] और खाद्य सामग्री की आपूर्तियों के संचालन में कुप्रबंधन और व्यापार नीतियां जो अफ्रीकी कृषि को नुकसान पहुंचाते हैं. मानव अधिकारों के हनन के कारण उत्पन्न हुए अकाल का एक उदाहरण 1998 का सूडान का अकाल है. [[
2025 तक अपनी आबादी के सिर्फ 25% को ही भोजन देने में सक्षम होगा, यह अनुमान यूएनयू के घाना स्थित इंस्टिट्यूट फॉर नेचुरल रिसोर्सेस इन अफ्रीका के मुताबिक़ है.<ref name="news.mongabay.com"
हाल के उदाहरणों में 1970 के दशक का सहेल का सूखा, 1973 और 1980 के दशक के मध्य में[[
अक्टूबर 1984 में दुनिया भर के टेलीविजन रिपोर्टों में भूख से मर रहे [[इथियोपिया|इथियोपियाई]] लोगों के फुटेज दिखाए गए थे जिनकी स्थिति कोरेम शहर के निकट स्थित एक खाद्य वितरण केंद्र के आसपास केंद्रित थी. [[
====सन 2000 के बाद के मामले====
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"अगर हम काफी तेजी से, काफी पहले से काम करते हैं तो अकाल की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो एक गंभीर खतरा बना रहेगा. "
6 जुलाई को मेथोडिस्ट रिलीफ एंड डेवलपमेंट फंड (एमडीआरएफ) के सहायता विशेषज्ञों ने कहा कि पूरे [[नाइजर.|नाइजर]], [[
====खाद्य सुरक्षा बढ़ाने की पहल====
राष्ट्र या बाजार के माध्यम से परंपरागत हस्तक्षेपों की एक पृष्ठभूमि के खिलाफ खाद्य सुरक्षा की समस्या से निबटने के लिए वैकल्पिक पहल करने का बीड़ा उठाया गया है. इसका एक उदाहरण कृषि विकास के लिए "समुदाय क्षेत्र के आधार पर विकास का दृष्टिकोण" ("सीएबीडीए") है जो अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करने के उद्देश्य से चलाया गया एक एनजीओ कार्यक्रम है. सीएबीडीए हस्तक्षेप के विशिष्ट क्षेत्रों जैसे कि सूखा-प्रतिरोधी फसलों की शुरुआत और खाद्यान्न उत्पादन की नयी विधियों जैसे कि कृषि वानिकी के माध्यम से अपना काम करती है. 1990 के दशक में [[
|date=November 2008
|publisher=Overseas Development Institute}}</ref>
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===एशिया में अकाल===
====कंबोडिया====
राजधानी नाम पेन्ह में 1975 में खेमर रूज ने प्रवेश कर [[
====चीन====
{{see also|Great Chinese Famine }}
[[File:Engraving-FamineRelief-China.gif|thumb|right|चीनी अकाल राहत में लगे अधिकारी, 19 वीं सी. खुदा हुआ चित्र]]
चीनी विद्वानों ने ईसा पूर्व 108 से 1911 तक किसी न किसी प्रान्त में हुई 1828 अकाल की घटनाओं की गणना की है - जो औसतन लगभग एक अकाल प्रति वर्ष है.<ref>
उन्नीसवीं सदी के मध्य में जब एक तनावग्रस्त साम्राज्य राज्य प्रबंधन से हट गया और अनाज को सीधे ही आर्थिक दानशीलता के लिए भेजा जाने लगा, तब वह प्रणाली समाप्त हो गई. इस प्रकार तोंगाज़ी पुनर्स्थापना के अंतर्गत 1867-68 के अकाल से सफलतापूर्वक निजात पा लिया गया, लेकिन 1877-78 में विशाल उत्तरी चीन में जो अकाल आया वह उत्तरी चीन में आये सूखे के कारण आया महाविनाश था. [[शांशी|शांक्सी]] प्रांत में आबादी उल्लेखनीय रूप से कम होने लगी, क्योंकि अनाज ख़त्म हो गया था और भूखे लोगों ने हताशा में जंगलों, खेतों व अपने घरों को भी अनाज के लिए उजाड़ दिया था. अनुमानित मृत्यु संख्या 9.5 से 13 मिलियन व्यक्तियों की है.<ref>
=====ग्रेट लीप फॉरवर्ड (बड़ी छलांग)=====
पंक्ति 153:
सबसे बड़ा अकाल 20 वीं सदी का, बल्कि सभी समय के दौर का, चीन का 1958-61 का ग्रेट लीप फॉरवर्ड अकाल रहा है. इस अकाल का तात्कालिक कारण था माओ जेडोंग द्वारा चीन को कृषि राष्ट्र से एक औद्यगिक राष्ट्र के रूप में मात्र एक बड़ी छलांग के द्वारा दुर्भाग्य पूर्ण ढंग से रूपांतरित कर देने का प्रयास. पूरे चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के केडर आग्रह करते थे कि किसानों को अपने खेतों को सामूहिक खेती के लिए त्याग देना चाहिए और छोटे कारखानों में स्टील का उत्पादन आरम्भ कर देना चाहिए, इस प्रक्रिया में कई बार उनके खेती के औजार भी पिघल जाते थे. सामूहिकीकरण ने कृषि में श्रम व स्त्रोतों को निरुत्साहित किया, विकेन्द्रित धातु उत्पादन की अवास्तविक योजनाओं ने आवश्यक श्रम को क्षति पहुंचाई, मौसम की प्रतिकूल स्थितियों व सामुदायिक भोजन कक्षों ने उपलब्ध खाद्यान्न की फिजूल खपत को प्रोत्साहित किया. (देखें चांग जी व वेन जी (1997) "[http://scholar.google.com/scholar?q=Communal%20dining%20and%20the%20Chinese%20Famine%201958-1961&ie=UTF-8&oe=UTF-8&hl=en&btnG=Search कम्युनल डायनिंग एंड द चायनीज फेमिन 1958-1961]"). सूचना पर केन्द्रित नियंत्रण व पार्टी केडर पर अत्यधिक दबाव की स्थिति ऐसी थी कि केवल सही खबर की रिपोर्ट ही दी जाती थी - जैसे कि उत्पादन लक्ष्य को पूरा कर लिया गया या उत्पादन उससे भी अधिक रहा- बढ़ते विनाश की सूचनाओं को प्रभावी ढंग से दबा दिया जाता था. अकाल की स्थिति की जानकारी जब नेतृत्व को हुई तब प्रतिसाद के रूप में उसने थोड़ा काम किया और इस महाविनाश पर किसी भी प्रकार की चर्चा करने पर अपना प्रतिबन्ध जारी रखा. समाचारों को दबाने की यह व्यापक क्रिया इतनी प्रभावी थी कि अकाल की गंभीरता से कुछ चीनी ही वाकिफ थे और 20 वीं सदी के शांतिकाल में हुए उस जनसंख्या महाविनाश की जानकारी बीस वर्ष बाद सबको तब ही मालूम हुई, जब सेंसरशिप का पर्दा उठना प्रारंभ हो गया.
अनुमान लगे जाता है कि 1958-61 के अकाल से मृत्यु संख्या 36 से बढ़ कर करीब 45 मिलियन की रही,<ref>
====भारत====
{{Main|Famine in India}}
[[मॉनसून|मानसून]] वर्षा पर लगभग पूरी तरह से निर्भर रहने से फसल की असफलता के कारण [[
[[File:Starved child.jpg|thumb|190px|1972, भारत में अत्यधिक भुखमरी से पीड़ित एक बच्चा.]]
रमेश चन्दर दत्त 1900 में व वर्तमान काल के विद्वान जैसे कि [[
अकाल आयोग ने 1880 में अवलोकनों के द्वारा इस तथ्य को पुष्ट किया कि अकालों के लिए खाद्यान्न कमी उतनी जवाबदेह नहीं है जितना कि खाद्यान्न वितरण का प्रबंधन है. उन्होंने पाया कि ब्रिटिश भारत के प्रत्येक प्रान्त में जिसमें [[म्यान्मार|बर्मा]] भी शामिल था, वहां खाद्यान्न का आधिक्य था और वार्षिक आधिक्य 5.6 मिलियन टन था (भाटिया 1970). उस दौरान चावल व अन्य अनाजों का भारत से वार्षिक निर्यात लगभग एक मिलियन टन था.
वर्ष 1966 में [[
====जापान====
एक शासी निकाय के अनुसार 1603 से 1868 के बीच इदो अवधि में कम से कम 130 अकाल हुए थे जिनमें से 21 उल्लेखनीय थे.<ref>
====मध्य पूर्व====
उदहारण के रूप में [[इराक़|इराक]] ने 1801, 1827 व 1831 में अकालों का सामना किया. [[
ऐसा विश्वास किया जाता है कि 1870-1871 में हुए बड़े पर्शियन अकाल में पर्शिया (आज का इरान) में 1.5 मिलयन व्यक्तियों की मौत हुई जो पर्शिया की कुल अनुमानित आबादी 6-7 मिलियन के 20-25 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करती है.<ref>{{Cite book
पंक्ति 181:
</ref>
[[
====उत्तर कोरिया====
{{main|North Korean famine}}
उत्तर कोरिया में 1990 के दशक के मध्य में अभूतपूर्व बाढ़ों के कारण अकाल आये. आत्मनिर्भर अर्थतंत्र वाले इस शहरी औद्योगिक समाज ने इसके पूर्व के दशकों में बड़े पैमाने पर [[
====वियतनाम====
वियतनाम में कई अकाल आये हैं. [[द्वितीय विश्वयुद्ध|द्वितीय विश्व युद्ध]] के दौरान जापान के कब्जे के कारण वियतनाम में 1945 में अकाल आया जिससे 2 मिलियन मौतें हुई जो वहां की तत्कालीन आबादी का 10% था.
<ref>{{Cite web|url=http://mailman.anu.edu.au/pipermail/hepr-vn/2008-August/000188.html |title=Vietnam needs to remember famine of 1945 |publisher=Mailman.anu.edu.au |date= |accessdate=2010-04-28}}</ref> [[
=== यूरोप में अकाल ===
====पश्चिमी यूरोप====
{{See|Medieval demography|Crisis of the Late Middle Ages}}
सन् 1315 से 1317 (या 1322 तक) का भीषण अकाल पहला बड़ा खाद्य संकट था जिसने यूरोप को 14वीं शताब्दी में घेरे रखा. उत्तरी यूरोप में कई वर्षों तक लाखों लोग मारे गए, अकाल ने 11वीं और 12वीं शताब्दी की समृद्धि को नष्ट कर दिया.<ref>
[[File:Goya-Guerra (59).jpg|thumb|गोया के त्रासदी युद्ध की एक नक्काशी, भूख से मर रही महिलाओं को दिखाता हुआ, 1811-1812 में मैड्रिड से प्रेरित एक उत्कीर्णन.]]
17वीं शताब्दी का समय यूरोप में खाद्य उत्पादकों के लिए परिवर्तन का काल था. शताब्दियों तक वे सामंतवादी व्यवस्था में कृषि पर गुजारा करने वाले किसानों के रूप में रहे थे. वे अपने मालिकों के ऋणी थे, जिनके पास अपने किसानों द्वारा जोती गई जमीन के विशेषाधिकार थे. जागीर का मालिक वर्ष भर में उत्पादित फसल और पशुधन का एक भाग लेता था. किसान सामान्यतया कृषि खाद्य उत्पादन में किए गए काम को न्युनतम करने की कोशिश करते थे. उनके मालिक उन पर खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ही कम जोर डालते थे, जब आबादी बढ़ने लगी केवल तब किसानों ने खुद ही उत्पादन बढ़ाना शुरू कर दिया. जुताई के लिए अधिक से अधिक जमीन का उपयोग किया गया जबतक कोई जमीन बची ही नहीं, और किसान अधिक श्रम आधारित पद्धतियां अपनाने को मजबूर हुए. जब तक कि उनके पास अपने परिवार को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन था तब तक वे अपना समय दूसरे कामों जैसे शिकार करने, [[मत्स्य पालन|मछली पकड़ने]] या आराम करने में बिताना पसंद करते थे. जितना खाना वे खा सके या खुद के लिए संग्रहीत कर सके उससे ज्यादा उत्पादन करना आवश्यक नहीं था.
17वीं शताब्दी के दौरान पिछली शताब्दियों के प्रचलन को जारी रखते हुए [[बाज़ार|बाजार]]-चालित कृषि में बढ़ोतरी हुई. खासतौर पर पश्चिमी यूरोप में [[
कृषि पर गुजारा करने वाले किसान भी बढ़ते हुए [[कर|करों]] के कारण अपनी गतिविधियों को व्यवसायीकृत करने के लिए बाध्य हो गए. करों का भुगतान केंद्र सरकार को पैसों में करना होता था जिसने किसानों को उनकी फसल को बेचने हेतु बाध्य किया. कई बार उन्होंने औद्योगिक फसलों का उत्पादन किया, लेकिन उनकी खाद्य आवश्यकताओं और कर बाध्यताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाने हेतु उन्होंने कई रास्ते ढूंढ़े. किसानों ने इस नए धन को उपयोग निर्मित वस्तुएओं को खरीदने के लिए भी किया. कृषि और सामाजिक विकास ने खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दिया जो पूरी 16वीं शताब्दी में अपना स्थान लेता रहा लेकिन सत्रहवीं शताब्दी में जब यूरोप ने सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में खुद को खाद्य उत्पादन के लिए विपरीत परिस्थिातियों में पाया तब यह प्रत्यक्ष रूप से और बढ़ गया – सोहलवीं शताब्दी के अंत में पृथ्वी के तापमान में गिरावट का दौर था.
पंक्ति 204:
1590 के दशक में कुछ निश्चित क्षेत्रों विशेष तौर पर नीदरलैंड को छोड़कर पूरे यूरोप में कई शताब्दियों का सबसे भीषण अकाल देखने को मिला. तुलनात्मक रूप से 16वीं शताब्दी के दौरान अकाल दुर्लभ हो गए थे. जैसा कि अपेक्षाकृत शांति की लंबी अवधि के दौरान अधिकतर देखा जाता है, अर्थव्यवस्था एवं आबादी में सतत विकास दर्ज किया गया. चूंकि किसान काम को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बांटने का प्रयास करते हैं, इसलिए कृषि पर गुजारा करने वाले किसानों की जनसँख्या भी लगभग हमेशा ही बढ़ती है. हांलाकि सघन जन आबादी वाले क्षेत्रों जैसे उत्तरी इटली में किसानों ने प्रौमिस्क्युअस कल्चर जैसी तकनीकों से अपनी भूमि की पैदावार को बढ़ाना सीख लिया था, लेकिन वे अभी भी अकालों से असुरक्षित थे, इसने उन्हें अपनी भूमि पर और अधिक सघनता से कार्य करने हेतु बाध्य किया.
अकाल बेहद अस्थिर करने वाली और विनाशकारी घटनाएं होती है. [[
एक अकाल अक्सर बाद के वर्षों में बीज की कमी या दिनचर्या में व्यवधान या श्रम की कमी के कारण अपने साथ कई कठिनाईया भी लेकर आता था. अकालों को अक्सर [[ईश्वर|दैवी]] कोप के रूप में समझा जाता था. अकालों को ईश्वर द्वारा पृथ्वी के लोगों को दिए गए उपहारों को वापस ले लेने के रूप में देखा जाता था. अकाल के रूप में ईश्वर के क्रोध से बचने के लिए विस्तृत जुलूस और धार्मिक कृत्य किए जाने लगे.
पंक्ति 212:
यूरोप के सभी क्षेत्र खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र इस दौरान अकाल से बुरी तरह प्रभावित हुए. नीदरलैंड जोकि अकाल के सबसे बुरे प्रभावों से बचने में सफल रहा था लेकिन 1590 का वर्ष वहां पर भी कठिन था. [[ऐम्स्टर्डैम|एम्सटर्डम]] अनाज व्यापार (बाल्टिक के साथ) जिसके लिए वास्तकविक अकाल नहीं घटा था, ने इस बात की गारंटी दी कि नीदरलैंड में हमेशा कुछ न कुछ खाने को होगा यद्यपि भुखमरी प्रबल थी.
इस समय नीदरलैंड के पास पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा व्यसायीकृत कृषि थी, कई औद्योगिक फसलें जैसे [[सन|फ्लैक्स
सन 1620 के आसपास पूरे यूरोप में अकाल फैलने का दूसरा दौर दिखाई पड़ा. हालांकि पच्चीस बरस पहले के अकालों के मुकाबले आमतौर पर इनकी गंभीरता काफी कम थी, लेकिन फिर भी कई इलाकों में इन्होने काफी गंभीर रूप धारण कर लिया था. 1696 का [[फ़िनलैण्ड|फिनलैंड]] का भीषण अकाल, जो सन 1600 के बाद का संभवतः सबसे विनाशकारी अकाल था, ने उस देश की एक-तिहाई आबादी को मौत के मुंह में धकेल दिया था. {{PDFlink|[http://www.euro.who.int/document/peh-ehp/nehapfin.pdf]|589 [[Kibibyte|KiB]]<!-- application/pdf, 603384 bytes -->}}
1693 और 1710 के बीच [[फ़्रांस|फ्रांस]] में दो बड़े अकालों का प्रकोप आया, और इसने 20 लाख से अधिक लोगों को खत्म कर दिया. दोनों मामलों में फसल खराब होने से पैदा हालात को लड़ाई के दौरान खाद्य आपूर्ति की मांग ने और ज्यादा खराब कर दिया.<ref>
यहां तक कि [[
1695-96 के अकाल ने [[
1740-43 के दौर में बेहद ठंडी सर्दियां और गर्मियों में भयानक सूखा देखा गया जिसकी वजह से पूरे यूरोप में अकाल फैला और मृत्यु दर में अचानक तेज बढ़ोत्तरी हो गई. (डेविस द्वारा लिखित, ''लेट विक्टोरियन होलोकास्ट'' , पृष्ठ 281 में उल्लेखित) यह संभावना है कि 1740-41 की बेहद ठंडी सर्दी, जिसकी वजह से उत्तरी यूरोप में बड़े पैमाने पर अकाल फैला, उसका मूल कारण एक ज्वालामुखी विस्फोट रहा हो.<ref>
महा अकाल, जो 1770 से 1771 तक चला, ने चेक गणराज्या की आबादी के लगभग दसवें हिस्से, या 250,000 निवासियों को खत्म कर दिया, और ग्रामीण इलाकों में बदलाव की अलख जगाई जिसने किसान विद्रोहों को जन्म दिया.<ref>
यूरोप के अन्य इलाकों में तो अकाल काफी हाल तक भी आते रहे हैं. [[फ़्रांस|फ्रांस]] ने उन्नीसवीं शताब्दी में अकाल का सामना किया. पूर्वी यूरोप में 20वीं शताब्दी के दौरान भी अकाल आते रहे हैं.
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फसल विफलता उत्तरी [[इटली|इतालवी]] अर्थव्यवस्था के लिए काफी विनाशकारी साबित हुई. क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पिछले अकालों से अच्छी तरह उबरने में सक्षम रही थी, लेकिन 1618 से 1621 के अकाल युद्ध की अवधि के दौरान ही आये. अर्थव्यवस्था सदियों तक पूरी तरह से उबर नहीं पाई. पूरे उत्तरी इटली में 1640 के दशक के अंतिम वर्षों में गंभीर, और 1670 के दशक में कम गंभीर अकाल आये.
उत्तरी इटली में, 1767 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि वहाँ पिछले 316 वर्षों (अर्थात 1451-1767 की अवधि) में से 111 वर्षों में अकाल आया था और सिर्फ सोलह वर्षों में अच्छी पैदावार हुई थी.<ref>
स्टीफन एल. डाइसन और रॉबर्ट जे. रोलैंड के अनुसार, "केलियरी की जेसुइट्स [सार्डिनिया में] ने 1500वीं सदी के अंत के कुछ ऐसे वर्षों का वर्णन किया है "जिनके दौरान इतनी भीषण भुखमरी तथा बंजरता देखी गयी कि ज्यादातर लोगों को अपनी जान बचाने के लिए जंगली पेड़-पौधों का सहारा लेना पड़ा" ... कहा जाता है की 1680 के भयानक अकाल के दौरान, 250,000 की कुल जनसंख्या में से लगभग 80000 लोग मारे गए, और पूरे गांव के गांव तबाह हो गए थे ..."<ref>{{cite book|last=Dyson|first=Stephen L|coauthors=Rowland, Robert J |title=Archaeology and history in Sardinia from the Stone Age to the Middle Ages: shepherds, sailors & conquerors|publisher=UPenn Museum of Archaeology, 2007|location=Philadelphia|year=2007|isbn=1934536024|page=136}}</ref>
=====इंग्लैंड=====
1536 से इंग्लैंड में गरीबों से संबंधित कानून बनाने शुरू किये गए जिनमें इलाके के धनी लोगों पर वहां के गरीबों के निर्वहन की कानूनी जिम्मेदारी डालने की बात कही गयी. अंग्रेजी कृषि उद्योग नीदरलैंड से पिछड़ा हुआ था, लेकिन 1650 तक उसने अपने कृषि उद्योग का व्यापक पैमाने पर व्यवसायीकरण कर लिया. इंग्लैंड में शांति के समय का आखिरी अकाल 1623-24 आया.<ref name="famine"
=====आइसलैंड=====
ब्राइसन (1974) के अनुसार, 1500 और 1804 के बीच आइसलैंड में सैंतीस वर्षों में अकाल पड़े थे.<ref>
1783 में दक्षिण मध्य [[
[[File:Irish potato famine Bridget O'Donnel.jpg|thumb|आयरलैंड में महा-भीषण अकाल के शिकार लोगों का चित्रण, 1845-1849]]
आइसलैंड 1862 से 1864 के बीच एक आलू अकाल से भी ग्रसित हुआ था. हालांकि आयरिश आलू अकाल की तुलना में इसके बारे में कम ही लोगों को पता है, आइसलैंड का आलू अकाल भी उसी बीमारी के कारण उत्पन्न हुआ था जिसने 1840 के दशक के दौरान अधिकांश यूरोप में तबाही मचाई थी. आइसलैंड की जनसंख्या का लगभग 5 प्रतिशत अकाल के दौरान मौत के मुंह में समा गया.
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=====फिनलैंड=====
देश ने गंभीर अकाल झेले हैं, और
1696-1697 के अकाल में एक तिहाई जनसंख्या की मौत हुई.<ref>
=====आयरलैंड=====
{{see also|Great Irish famine}}
1845-1849 के आयरलैंड के भयंकर अकाल के लिए लॉर्ड रसैल के नेतृत्व वाली यूनाइटेड किंगडम की व्हिग सरकार की नीतियां भी काफी हद तक जिम्मेदार थीं.<ref>
इसका तात्कालिक प्रभाव 1,000,000 मौतें और 2,000,000 शरणार्थियों का ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और [[
| last = Rubinstein
| first = W. D.
पंक्ति 268:
| page = 85
| isbn = 0582506018 }}
</ref> अकाल के बीत जाने के बाद अकाल द्वारा उत्पन्न बंजरता, जमींदारों द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था द्वारा प्रेरित बीमारियों एवं उत्प्रवास को पूरी तरह से कम आंकना आबादी के 100 वर्ष पिछड़ने का कारण बना. आयरलैंड की आबादी, जो उस समय अकाल के पूर्व की कुल आबादी की मात्र आधी रह गयी थी, में 1970 (आयलैंड के ज्यादातर भाग के स्वतंत्र होने की आधी शताब्दी बाद) के बाद ही दोबारा से बढ़ोत्तरी देखी गयी. अकाल के बाद आयरिश जनसंख्या में गिरावट का यह वह काल था जब [[
[[File:Brothers in misfortune.jpg|thumb|upright|अकाल के दौरान भूखे रूसी बच्चेलगभग 1922 के आस पास.]]
====रूस और सोवियत संघ====
{{Main|Famines in Russia and USSR}}
स्कॉट एवं डंकन (2002) के अनुसार, "1500 ई. से 1700 ई. के मध्य पूर्वी यूरोप ने 150 से अधिक दर्ज हुये अकाल झेले हैं, जबकि रूस में 971 ई. से 1974 ई. तक भुखमरी के 100 वर्ष और अकाल के 121 वर्ष रहे हैं."<ref>
रूसी साम्राज्य प्रत्येक 10 से 13 वर्ष में सूखे और अकाल के लिये जाना जाता है जिसमें से सूखे का औसत प्रत्येक 5 से 7 वर्ष है. 1845 से 1922 के मध्य रूस में ग्यारह बड़े अकाल पड़े जिनमें से 1891-92 का अकाल सर्वाधिक भयंकर था.<ref>
872 दिनों की लेनिनग्राद की घेराबंदी (1941-1944) के कारण सामान्य प्रयोग की वस्तुओं, पानी, ऊर्जा और खाद्य की आपूर्ति में हुये व्यवधान के कारण लेनिनग्राद क्षेत्र में अद्वितीय अकाल पड़ा. जिसके परिणाम स्वरूप एक मिलियन लोगों की मौत हुई.<ref>
=== लैटिन अमेरिका में अकाल ===
कोलंबस के पूर्व के अमेरिकी लोगों ने अक्सर गंभीर खाद्य अल्पता एवं अकालों को झेला है.
1877 -78 में [[ब्राज़ील|ब्राजील]] का ''ग्रेनेड सेका'' (भयंकर सूखा) जोकि अब तक दर्ज किया गया ब्राजील का सबसे भयंकर सूखा है,<ref>
== इन्हें भी देखें ==
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*अकाल से जूझने के लिए एट्मिट (दलिया) का उपयोग
*जलवायु परिवर्तन और कृषि
*
*अकाल अर्ली वार्निंग सिस्टम नेटवर्क
*खाद्य मूल्य संकट
पंक्ति 304:
*पीक फ़ूड
*सभ्यता, मानव, और पृथ्वी ग्रह के लिए खतरा
*[[
*निर्वाह संकट
*''विश्व कृषि आपूर्ति और मांग का आकलन'' (मासिक रिपोर्ट)
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{{Natural disasters}}
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[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
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[[fr:Famine]]
[[he:רעב המוני]]
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[[te:కరువు]]
[[th:การขาดแคลนอาหาร]]
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▲[[tt:Açlıq]]
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