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[[जैन धर्म|जैन]] दृष्टिकोण से भी आगमों का विचार कर लेना समीचीन होगा। जैन साहित्य के दो विभाग हैं, '''आगम''' और आगमेतर। केवल ज्ञानी, मनपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता है। कहीं कहीं नवपूर्व के धारक को भी आगम माना गया है। उपचार से इनके वचनों को भी आगम कहा गया है। जब तक आगम बिहारी मुनि विद्यमान थे, तब तक इनका इतना महत्व नहीं था, क्योंकि तब तक मुनियों के आचार व्यवहार का निर्देशन आगम मुनियों द्वारा मिलता था। जब आगम मुनि नहीं रहे, तब उनके द्वारा रचित आगम ही साधना के आधार माने गए और उनमें निर्दिष्ट निर्देशन के अनुसार ही जैन मुनि अपनी साधना करते हैं।
 
==वर्गीकरण==
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[[श्रेणी:जैन धर्म]]
[[श्रेणी:जैन ग्रन्थ]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
 
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