"ययाति": अवतरणों में अंतर

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[[इक्ष्वाकु]] वंश के राजा नहुष के छः पुत्र थे - याति, '''ययाति''', सयाति, अयाति, वियाति तथा कृति। याति परमज्ञानी थे तथा राज्य, लक्ष्मी आदि से विरक्त रहते थे इसलिये राजा [[नहुष]] ने अपने द्वितीय पुत्र ययाति का राज्यभिषके कर दिया।
 
उन्हीं दिनों की बात है कि एक बार दैत्यराज [[वृषपर्वा]] की पुत्री [[शर्मिष्ठा]] अपनी सखियों के साथ अपने उद्यान में घूम रही थी। उनके साथ में गुरु [[शुक्राचार्य]] की पुत्री ''[[देवयानी]]'' भी थी। शर्मिष्ठा अति मानिनी तथा अति सुन्दर राजपुत्री थी किन्तु रूप लावण्य में देवयानी भी किसी प्रकार कम नहीं थी। वे सब की सब उस उद्यान के एक जलाशय में, अपने वस्त्र उतार कर स्नान करने लगीं। उसी समय भगवान [[शंकर]] पार्वती के साथ उधर से निकले। भगवान शंकर को आते देख वे सभी कन्याएँ लज्जावश से से दौड़ कर अपने-अपने वस्त्र पहनने लगीं। शीघ्रता में शर्मिष्ठा ने भूलवश देवयानी के वस्त्र पहन लिये। इस पर देवयानी अति क्रोधित होकर शर्मिष्ठा से बोली, "रे शर्मिष्ठा! एक असुर पुत्री होकर तूने ब्राह्मण कन्या का वस्त्र धारण करने का साहस कैसे किया? तूने मेरे वस्त्र धारण करके मेरा अपमान किया है।" देवयानी ने शर्मिष्ठा को इस प्रकार से और भी अनेक अपशब्द कहे। देवयानी के अपशब्दों को सुनकर शर्मिष्ठा अपने अपमान से तिलमिला गई और देवयानी के वस्त्र छीन कर उसे एक कुएँ में धकेल दिया।
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तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।<br>
कालो न यातो वयमेव याताः <br>
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥ <br>
 
हमने भोग नहीं भुगते, बल्कि भोगों ने ही हमें भुगता है; हमने तप नहीं किया, बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गये हैं; काल समाप्त नहीं हुआ हम ही समाप्त हो गये; तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, पर हम ही जीर्ण हुए हैं !
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[[श्रेणी:पौराणिक कथाएँ]]
[[श्रेणी:यदुकुल]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
 
[[bg:Яяти]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ययाति" से प्राप्त