"पेशीतन्त्र": अवतरणों में अंतर

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१. उरोस्थिंकठिका (sternohyoid), २. अंसकंठिका (omohyoid) का ऊर्ध्व मध्यांश, ३. अवटुकंठिका (thyrohyoid), ४. द्वितुंदी (digastric) का अग्र मध्यांश, ५. चिबुककंठिया (mylohyoid), ६. कठिका जिह्विका (hyoglossus), ७. शरकंठिका (stylohyoid), ८. चर्वणी (masseter), ९. द्वितुंदी का पश्च मध्यांश, १०. पट्टिका-शिरस्या (splenius capitis), ११. उर: कर्णमूलिका (sternocleidomastoid), १२. अंसफलक उन्नायक (levator scapulae), १३. पश्च विषमा (scalenus posterior), १४. मध्य विषमा (medius), १५. पूर्व विषमा (anterior), १६. पृष्ठच्छदा (trapezins), १७. अंसकंठिका का निम्न मध्यांश तथा, १८. उर: कर्णमूलिका।
 
 
गले के पार्श्व में एक बड़ी पेशी कान के पीछे कर्णमूल से उरोस्थि (sternum) तक जाती दीख रही है, जो उरोस्थि ओर जत्रु के पास के भाग से उदय होकर, ऊपर जाकर, कर्णमूल पर लग जाती है। यह उर:कर्णमूलिका (sternocleidomastoid) पेशी है। एक ओर की इस पेशी के संकुचन से सिर दूसरी ओर को घूम जाता है। दोनों ओर की पेशियों के साथ संकुचन करने पर सिर नीचे को झुक जाता है। यह एक विशेष पेशी है, जो चतुष्कोणकार गलपार्श्व को अग्र और पश्च दो (anterior and posterior) त्रिकोणों में विभक्त कर देती है। पूर्व त्रिकोण का शिखर नीचे उदोस्थि पर है। एक भुजा गले की मध्य रेखा और दूसरी इस पेशी पूर्व या अंत: धारा बनाती है। इस त्रिकोण में बड़े महत्व की कितनी ही रचनाएँ हैं, जो ऊपर से नीच को, या नीचे से ऊपर को जाती है। पश्च त्रिकोण का शिखर ऊपर कर्णमूल के नीचे और आधार नीचे जत्रुक पर है तथा अंत: भजा उर कर्णमूलिका की बहि:धरा और बहि: या पार्श्व भुजा (trapezius) पेशी की बहि:धारा से बनती है। गले की मध्य रेखा में कठिका (hyiod), अबटुउपास्थि (thyroid cartilage) ओर उरोस्थि की ऊर्ध्व धारा शल्यचिकित्सक के लिये विशेष पेशियाँ ये हैं : चिबुककंठिका (mylohyoid), (जो मुखगुहा कीह भूमि बनाती है, अधोहन्वस्थि के एक ओर के कोण से दूसरी ओर के कोण तक फैली हुई है और पीछे की ओर कठिका पर लग जाती है), कंठिका जिह्वका (hyoglossus), अवटकंठिका (thyrohyoid), उरोस्थि कंठिका (sternohyoid) तथा अंसकंठिका (omohyoid)। इन पेशियों की स्थिति का विस्तार इनके नाम से प्रकट है। अंसकंठिका एक लंबी पेशी है, जो अंसफलंक से निकलकर, दोनों त्रिकोणों को पार करके, कठिकास्थि पर जाकर लगती है। इसके बीच के भाग में एक कंडरा है, जो प्रावरणी के एक भाग द्वारा प्रथम पर्शुका पर लगी हुई है। शरग्रसिनिका (stylopharyngeus) और शरकंठिका (stylohyoideus) कपालास्थि के शर प्रवर्ध से निकलती हैं। उर:कर्णमूलिका में ११वीं कपाली (मेरु सहायिका) तंत्रिका जाती है। इस त्रिकोण की जिह्वा में जानेवाली पेशियों में अधोजिह्विका (hypoglossal) तंत्रिका जाती है। कंठिका से नीचे की पेशियों में ऊपरी ३ या ४ मेरुतंत्रिकाओं के सूत्र जाते हैं।
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१. पृष्ठच्छदा (trapezius), २. उर:कर्णमूलिका (Sternocleidomastoid), ३. अर्धर्कटकी शिरस्या (Semis pinalis capitis), ४. पट्टिका शिरस्या एवं ग्रैवी (splenius capitis et cervicis), ५. अंसउन्नमनी (levator scapulae), ६. लघु अंसापकर्षणी (rhomboideus minor), ७. बृहत्‌ अंसापकर्षणी (rhomboideus major) ८. अर्ध्यसपृष्ठिका (supraspinatus), ९. अवअंसपृष्ठिका (infrasapinatus), १०. बृहत्‌ अंसाभिवर्तनी (teres major), ११. ट्राइसेप्स ब्रैकाई (triceps brachii), १२. पश्च निम्न दंतुरा (serratus posterior, inferior), १३. बाह्य पर्शुकांतर (external intercostal), १४. कटि अभिपृष्ठ प्रावरणी (lumbodorsal fascia) से आवृत्त त्रिककंटिका (sacrospinalis), १५. महा नितंबिका (glufeus maximus), १६. कटिपार्श्वच्छदा (latissimus dorsi), १९. बृहत्‌ अंसाभिवत्रनी, २०. लघु अंसाभिवर्तनी तथा २१ अंसच्छद (deltoid) पेशी।
 
 
 
==अग्रबाहु की पेशियाँ==
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[[श्रेणी:पेशीतंत्र]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]
 
[[als:Muskulatur]]