"भारतीय लिपियाँ": अवतरणों में अंतर

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==भारतीय लिपियों की विशेषता==
 
===वर्णात्मक चिह्नावली===
भारतीय भाषाओं में संगणक पर कार्य करने के लिये उनकी लिपियों की बुनियादी
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ख् + य् + अ = ख्य
 
 
शब्द के अन्त में, अन्तिम व्यंजनों के क्रम में स्वर न होने पर भी
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4 (उ,ऊ)
 
 
अक्षर के बायीँ ओर 'इ' की मात्रा आती है, इसी प्रकार से 'ए' व 'ऐ'
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(मात्रा अलग से प्रदर्शित)
क्या: क् + य् + आ = क +_ + य + आ
 
 
===संयुक्ताक्षर===
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रूप पर निर्भर करता है।
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=== 'र' के लिये विशेष नियम===
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इनमें चन्द्रबिन्दु (ँ) तो स्वरों की नासिक्यता को चिह्नित करता है परन्तु
बिन्दु (ं) का एकमात्र उद्देश्य लिपि में संक्षिप्तता लाना है।
 
 
===अन्य बातें===
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क्या है? म् + इ = मि क्यों होता है `मि_' क्यों नहीं ? इनका उत्तर एक
गणितीय समीकरण के रूप में नीचे दिया जा रहा है।
 
 
;मात्रा व स्वर में गणितीय संबंध
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मात्रा (इ) के रूप में देता है। (इसको निकालने में `क' के स्थान पर
किसी भी व्यंजन का प्रयोग किया जा सकता था.)
 
 
;मात्रा का अपने स्वर से संबंध
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अर्थात्, 'इ' में हलन्त निहित है तथा वह अपने से पूर्व अक्षर में से `अ'
को घटाता है।
 
 
;अन्य मात्राएं
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उ = _ + उ
ऊ = _ + ऊ इत्यादि।
 
 
=== निष्कर्ष===
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तथा इस सबको देखते हुए लगता है कि यह आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि
भारत में शून्य की अवधारणा भाषा में विकसित होकर गणित में गई हो।
 
 
==इन्हें भी देखें==
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[[श्रेणी:भारत की लिपियाँ]]
[[श्रेणी:उत्तम लेख]]