"वासना": अवतरणों में अंतर

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'''वासना''' का अर्थ होता है 'कामलिप्सा' या 'मैथुन की तीव्र इच्छा'। वासना कभी-कभी हिंसक रूप में भी प्रकट होती है। अधिकांश धर्मों में इसे [[पाप]] माना गया है।
 
==वासना से ही प्रेम==
 
प्रेम एक सर्वविदित शब्द है .यह एक ऐसा शब्द है कि सभी लोग अपने जीवन में कभी ना कभी इसका सामना किये ही रहते हैं,लेकिन प्रेम को सिर्फ शब्दों तक ही जानते हैं .आज जितना यह शब्द प्रदूषित हो चूकाहै पहले कभी भी नहीं हुआ था .प्रेम एक मनुष्य के चेतना की एक ऐसी अवस्था है जिसमें वासना समाप्त हो जाती है .अधिकांश मनुष्य तो वासना को ही प्रेम समझते हैं युवा वर्ग हो या बृद्ध वर्ग दोनों ही भ्रमित हैं .दोनों का प्रेम के सम्बन्ध में विचार एक ही केंद्र विन्दु से जुड़ा होता है .दोनों का अनुभव वासना के स्तर पर ही है .
प्रेम की चाह प्रत्येक मंनुष्य के अन्दर होती है, परन्तु वासना में प्रेम कहाँ ?.प्रेम में तो वासना समाप्त होने के
बाद ही हुआ जा सकता है .वासना के कीचड़ से ही प्रेम के कमल खिलते हैं ,परन्तु आज वासना को ही प्रेम कहा जा रहा है .वासना का अर्थ केवल सम्भोग क्रिया से ही नहीं है , वल्कि वासना के अंतर्गत हमारी समस्त महत्वकांक्षाएं आ जाएँगी जो सिर्फ अपने सुख के लिए ही उठती हैं .वासना में हम स्वतः किसी भी तरह आनंदित हो लेना चाहते हैं तथा दूसरे व्यक्ति के सुख का ख्याल तक नहीं आता .वह भले ही अपना जीवन साथी ही क्यों न हो .कुछलोग अपने जीवन साथी का भी ख्याल कर लेते हैं लेकिन जहां पर उनके इक्षाओं
में बाधा पड़ने लगता है वहां पर वे अपने जीवन साथी के सुख सुविधाओं के ख्याल को भूल जाते है . कुछ ऐसे लोग भी होंगे जिन पर यह लागु नहीं होगा परन्तु उनकी संख्या बहुत ही कम होगी .जो लोग अपने जीवन साथी का थोड़ा ख्याल कर लेते हैं वे भी प्रेम को नहीं समझते हैं . उनकी यह नम्रता सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि अन्यत्र से वासना तृप्ति का कोई साधन नहीं दिखायी देता है .
 
वासना को ही प्रेम समझकर जीवन का प्रारंभ करते हैं उन्हें तनाव के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता
है क्योंकि वासना में मनुष्य सदा ही अतृप्त होता है तथा तृप्त होने के लिए सदा ही नए -नए साधनों की तलाश करता है . वासना में मनुष्य अपने साथी को वस्तु के तरह से प्रयोग करता है . इसीलिए पति पत्नी से तथा पत्नी पति से, दोनों एक दूसरे से ऊबजातें हैं लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण एक साथ रहने के लिए मजबूर होते हैं .जो लोग इसकी परवाह नहीं करते वे अलग हो जातें हैं .
 
वासना वह कीचड़ है जिसमे प्रेम के कमल खिलते हैं लेकिन कीचड़ को कमल समझ लेना मुर्खता है . जिसके अन्दर वासना नहीं है वह प्रेम को नहीं समझ सकता है . वासना के बिना प्रेम भी नहीं हो सकता है .इसका यह अर्थ भी नहीं लगाना चाहिए कि वासना ही सब कुछ है .इसको इस प्रकार समझना चाहिए कि वासना बीज है ,प्रेम वृक्ष है तथा करुणा फल है . जिसके पास वासना का बीज नहीं होगा उसके पास प्रेम के वृक्ष भी नहीं हो सकता तथा करुणा फल भी नहीं हो सकता है . जिस प्रकार से बीज का प्रयोग उदर तृप्ति में करने से फसल नहीं उगाया जा सकता ,ठीक उसी प्रकार से वासना का उपयोग शारीरिक सुख के लिए करने पर प्रेम के वृक्ष नहीं तैयार हो सकते हैं .जिस प्रकार से बीज के नष्ट होने के पश्चात् ही पौधा का अंकुर निकलता है ,ठीक उसी प्रकार से वासना के नष्ट होने के पश्तात ही प्रेम के अंकुर निकलते हैं .वासना और प्रेम दोनों एक साथ नहीं रह सकते .प्रेम के होने के लिए वासना का नष्ट होना अनिवार्य शर्त है .यहाँ पर एक अर्थ स्पष्ट कर लेना चाहिए कि वासना का दमन कर के नष्ट नहीं किया जा सकता है . दमन करने पर भी वासना तो अन्दर रहती ही है ,
समय पाकर कभी न कभी ऊपर अवश्य ही आयेगा .दमन से वासना का बीज और भी पुष्ट होता जाता है .
वासना को रूपांतरित करने के लिए उसे नष्ट करना ही होगा .उससे कम शर्त पर प्रेम संभव नहीं है .बीज को बचाकर वृक्ष तैयार नहीं किया जा सकता .यह नहीं हो सकता कि बीज भी बचा रहे और वृक्ष भी तैयार हो जाये .वृक्ष को आने के लिए वासना को जाना ही होगा .
 
अतृप्ति का ही नाम वासना है तथा पूर्ण तृप्ति है प्रेम .प्रेम में कोई आकांक्षा नहीं होती है ,क्योंकि आकांक्षाएं तो अतृप्ति से ही आतीं हैं .और अतृप्त व्यक्ति किसी भी तरह स्वयं तृप्त हो जाना चाहता है ,वह यह इसकी फिक्र नहीं करता है कि किसी को कष्ट भी हो रहा है .वासना में व्यक्ति पशु के भांति व्यवहार करता है .जबकि प्रेम में परम विश्रांति को प्राप्त होता है वासना और प्रेम में मुख्य अंतर यह है कि वासना में मनुष्य कि उर्जा neeचे की ओर तथा प्रेम में ऊपर की ओर प्रवाहित होती है .वासना वासना में मनुष्य का केंद्र खो जाता है तथा प्रेम में
केंद्र पर होता है .बहुत लोग प्रेम के भ्रम में वासना को ही पोषित करते रहते हैं .जहाँ पर थोड़ा भी अपने सुख का ख्याल आया वहां प्रेम नहीं हो सकता है भले ही हम उसे देख न पायें .प्रेम में दो नहीं होते जहाँ पर दो की अनुभूति होती है वहां पर वासना ही होती है .प्रेम अखंड होता है तथा वासना में व्यक्ति बनता होता है .
 
 
 
==उदाहरण==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/वासना" से प्राप्त