"खगोलजीव विज्ञान": अवतरणों में अंतर
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अगर अन्य ग्रहों पर जीवन कार्बन और पानी पर आधारित भी हो, यह नहीं कहा जा सकता के उनके शरीरों में भी [[कोशिकाएँ]] (सेल) होंगी जिन्हें बनाने के नियम पृथ्वी के जीवों की तरह [[डी॰ऍन॰ए॰]] पर आधारित होंगे। यह संभव है के उन जीवों में कोई और व्यवस्था आधार हो।
जैसे-जैसे पृथ्वी पर जीवों के फैलाव के बारे में जानकारी बढ़ी है, वैज्ञानिकों को ऐसी जगहों पर [[चरमपसंदी]] जीव फलते-फूलते हुए मिले हैं जहाँ कभी जीवन ना-मुमकिन समझा जाता था। कभी सोचा जाता था के गहरे समुद्र के तहों की खाइयों के भयंकर दबाव में जीव नहीं रह सकते। यह भी सोचा जाता था के बहुत अधिक तापमान (६० °सेंटीग्रेड से ज़्यादा) में भी जीव नहीं रह सकते। लेकिन पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिकों ने गहरे समुद्र में ज्वालामुखीय गर्मी से खौलते हुए पानी और गैस के फव्वारे पाए हैं जिनमें चरमपसंदी जीवाणु पनप रहे हैं। इसी तरह समझा जाता था के खुले अंतरिक्ष के व्योम में और विकिरण-ग्रस्त (यानी रेडियेशन से भरपूर) वातावरण में जीव नहीं रह सकते, क्योंकि इनमें उनकी कोशिकाएँ फट जाती हैं और उनका [[डी॰ऍन॰ए॰]] ख़राब हो जाता है। लेकिन अब राइज़ोकार्पन ज्योग्रैफ़िकम (पर्वतों पर पत्थरों पर उगने वाली एक किस्म की लाइकन काई) जैसे जीव पाए जा चुके हैं जो अंतरिक्ष यान द्वारा व्योम में ले जाए गए और १५ दिनों के बाद पृथ्वी पर वापस लाने पर ज़िन्दा पाए गए। इस से वैज्ञानिकों को अब यह भी शंका होने लगी है के संभव है के जीव उल्कापिंडों द्वारा एक ग्रह से दुसरे ग्रह तक फैल सकें। कुछ वैज्ञानिक तो यहाँ तक सोचते हैं के शायद पृथ्वी पर जीवन शुरू में इसी तरह किसी और ग्रह से आया हो। इस कल्पना में किसी अन्य ग्रह पर (संभवतः मंगल पर) कभी जीवाणु रहें हो सकते है जबकि पृथ्वी किसी भी जीवन से महरूम थी। फिर मंगल पर एक बड़ा उल्कापिंड पड़ा जिस से मंगल की कुछ बड़ी चट्टानें उड़कर अंतरिक्ष में चली गई और उनमें से कुछ पृथ्वी की और भी निकलीं। जब यह पृथ्वी के पास पहुँची तो पृथ्वी ने अपने [[गुरुत्वाकर्षण]] से उन्हें खींच लिया और वे स्वयं उल्कापिंड बनकर पृथ्वी पर गिरीं। इनमें कुछ जीवाणु जीवित बच गए जिन्हें पृथ्वी का वातावरण अनुकूल लगा और वे फैलने लगे। अन्य वैज्ञानिक इस कल्पना में बहुत से नुक्स निकलकर इसे असंभव कहते हैं। विवाद जारी है।
==इन्हें भी देखें==
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