"मधुसूदन दास": अवतरणों में अंतर
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१९०३ में मधुबाबु द्वारा प्रतिष्ठित उत्कल सम्मिलनी से ओडिआ आंदोलन आगे बढा। उसी वर्द्गा वे कांग्रेस छोड कर ओडिआ आंदोलन में स्वयं को नियोजित किया। मधुबाबु स्वाभिमान एवं आत्ममर्यादा को विशेष प्राधान्य देते थे। धन-सम्पत्ति भले ही नष्ट हो जाये, परवाह नहीं, परंतु आत्म-सम्मान सदा अक्षुण बना रहे। मधुबाबु बहुत दयालु तथा दानवीर थे। उन्होंने अपनी कमाई तथा सम्पत्ति को पूरे का पूरा जनता की सेवा में लगा दिया था। यहां तक वे दिवालिया भी हो गये। वे पहले ओडिआ नेता बने जिन्होंने विदेश यात्रा की और अंग्रेजों के सामने ओडि च्चा का पक्ष रखा। मधुबाबु कलकत्ता से एम.ए. डिग्री और बी.एल. प्राप्त करने वाले प्रथम ओड़िसा है। वे विधान परिषद के भी प्रथम ओड़िसा सदस्य है। वे अपनी वकालत (बैरिशटरी) के कारण ओड़िसा में 'मधु बारिशटर' के नाम से सुपरिचित हैं।
अपनी देशभक्ति, सच्चे नीति, संपन्न नेतृत्व एवं स्वाभिमानी मर्यादा सम्पन्न गुणों के कारण बारिशटर श्री मधुसूदन दास सदैव स्मरणीय हैं। कटक स्थित मधुसूदन आइन महाविद्यालय उनके नाम से नामित है। उनकी जन्मतिथि २८ अप्रैल को समग्र ओड़िसा राज्य में 'वकील दिवस' और 'स्वाभिमान दिवस' के रूप में मनाई जाती है।
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