'''श्रीधराचार्य''' प्राचीन [[भारत]] के एक महान [[गणितज्ञ]] थे। इन्होंने [[शून्य]] की व्याख्या की तथा [[द्विधातीयद्विघात समीकरण]] को हल करने सम्बन्धी सूत्र का प्रतिपादन किया। उनके बारे में हमारी जानकारी बहुत ही अल्प है। उनके समय और स्थान के बारे में निश्चित रुप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। पाटीगणित, पाटीगणित सार और त्रिच्चतिका उनकी उपलब्ध रचनाएँ हैं जो मूलतः [[अंकगणित]] और क्षेत्र-व्यवहार से संबंधित हैं। [[भास्कराचार्य]] ने [[बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ)|बीजगणित]] के अंत में - [[ब्रह्मगुप्त]], श्रीधर और [[पद्मनाभ]] के बीजगणित को विस्तृत और व्यापक कहा है - 'ब्रह्माह्नयश्रीधरपद्मनाभबीजानि यस्मादतिविस्तृतानि' । इससे प्रतीत होता है कि श्रीधर ने [[बीजगणित]] पर भी एक वृहद् ग्रन्थ की रचना की थी जो अब उपलब्ध नहीं है। भास्कर ने ही अपने बीजगणित में [[वर्ग समीकरण|वर्ग समीकरणों]] के हल के लिए श्रीधर के नियम को उद्धृत किया है -