"सम-ऊँगली खुरदार": अवतरणों में अंतर

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'''द्विखुरीयगण''' (आर्टियोडैक्टाइला, Artiodactyla) [[गाय]], [[भैंस]], [[सूअर]], [[बकरी]], [[ऊँट]], [[हरिण]] आदि स्तनियों (mammals) का गण है, जिनमें [[गर्भनाल]] (placents), पैर की सम अँगुलियाँ तथा [[खुर]] होते हैं। इस गण में [[खरगोश]] से लेकर [[भैंस]] और [[हिप्पोपोटैमस]] जैसे भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के प्राणी सम्मिलित हैं।
 
== प्रधान विशेषताएँ ==
प्रत्येक पैर में शल्कीभूत (cornified) खुर से घिरी हुई दो क्रियाशील पादांगुलियाँ होती हैं, पैरों के अक्ष पादांगुलियों के मध्य में होते हैं। बहुतों के सिर पर सींग या श्रृंगाभ (antlers) होते हैं। सूअर को छोड़कर सब का दंतविन्यास हीन कोटि का होता है। इनका आमाशय चार कक्षों में बँटा होता है ओर ये जुगाली करते हैं। कुछ पाले जाते हैं और कुछ का शिकार किया जाता है। [[आस्ट्रेलिया]] को छोड़कर ये सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं। इस गण के कुछ महत्वपूर्ण परिवारों का वर्णन निम्नलिखित है :
 
=== सुइडी (Suidae) ===
इनका थूथन लंबा एवं शंक्वाकार होता है, जिनके चकतीनुमा ऊर्ध्वाधर सिरे पर चीरे से नासारंध्र होते हैं। इनका सिर लंबा होता है, आँख, कान छोटे होते हैं और मुँह मांसभक्षियों की तरह चीरा (cleft) होता है। इनमें दाँतों का पुरा समूह (set) होता है, काटनेवाले निचले दाँत बाहर की ओर उभरे होते हैं और नर के बड़े बड़े भेदक दाँत (canines) हाथी के दाँत के समान मुँह के बाहर निकले होते हैं। ये दाँत कृंतकों (rodent) के दाँतों के समान बराबर बढ़ते रहते हैं और इनका उपयोग प्रहार करने में होता है। चर्वण दंत सरस खाद्य खाने योग्य होते हैं और घास, टहनी जेसे रूखे खाद्य खाने लायक नहीं होते।
 
सूअर [[सर्वभक्षी]] हैं। मांस तथा घास, शाक, फल आदि वानस्पतिक खाद्य ये बेरोक खाते हैं। इनके अग्रपाद खाने तथा खाद्य को पकड़ने में सहायक होते हैं। त्वचा पतली और शूकयुक्त (bristly) होती है। बच्चे धारीदार हेते हैं। ये फसलों को बहुत हानि पहुँचाते हैं, पानी और कीचड़ में लोटना पसंद करते हैं। नर सूअर कभी कभी बड़े खतरनाक साबित होते हैं। भारत में सूअर की केवल तीन जातियाँ पाई जाती हैं : भारतीय जंगली सूअर (दक्षिण भारतीय), पट्टित सूअर (sus vittatus) तथा क्षुद्र सूअर (pigmy hog)।
 
=== हिप्पोपोटैमिडी (Hippopotamidae) ===
हिप्पोपोटैमस को [[दरियाई घोड़ा]] भी कहते हैं। इसका शरीर और विशेषत: पैर बहुत मजबूत होते हैं, त्वचा भारी तथा विरल रोमयुक्त होती हैं, यह तैरने में कुशल होता है और जलीय पौधों पर निर्वाह करता है। उभयचर हिप्पोपोटैमस लगभग 12 फुट लंबा होता है। यह नील नदी में और उसके दक्षिण भाग में अफ्रीका में पाया जाता है। कीरोप्सिस लाइबेरियन्सिस (Choeropsis Liberiensis, pigmy hippo) उभयचर हिप्पोपोटैमस से छोटा होता है और पश्चिम अफ्रीका में पाया जाता है।
 
=== कैमेलिडी (Camelidae) ===
इस कुल के प्राणियों के पैर कोमल और चौड़े होते हैं, खुर नहीं होते, एक जोड़ा छेदक दंत होते हैं, भेदक (canine) दंत छोटे होते हैं, या होते ही नहीं। आमाशय में तीन या चार कक्ष होते हैं, जिनमें से पहले दो कक्षों में जलसंग्रह कोशिकाएँ होती हैं। इनके कूबड़ का अधिकांश वसानिर्मित होता है और आहार की कमी होने पर शरीर पोषण में खप जाता है। तीव्रगामी ऊँट या साँडनी (dromedary) के कूबड़ अल्पविकसित होता है। इनका निर्वाह स्थूल वनस्पतियों पर होता है। यौन उत्तेजन के समय नर बर्बर हो जाते हैं और तालु को लाल गुब्बरे के समान फुला लेते हैं। मांसभक्षियों की तरह, किंतु खुरीय प्राणियों के विपरीत, ये अपने अंगों को समेट कर ठीक प्रकार से लेट जाते हैं। इनकी कुछ जातियाँ निम्नलिखित हैं :
 
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(3) लामा (Llama) और अल्पाका (Alpaca), जो पश्चिमी दक्षिण अमरीका में पाए जाते हैं और परिवहन, मांस, चमड़ा और ऊन के काम आते हैं।
 
=== मुंडि कुल (Tragulidae) मातृका मृग (Chevrotains or Mouse deer) ===
इस कुछ के सदस्यों के आमाशय में तृतीय आमाशय या ओमेसम (omasum) कक्ष नहीं होता। संरचना की दृष्टि से ये सूअर और ऊँट से काफी समानता रखते हैं। भारतीय मातृका मृग (Indian chevrotains) दक्षिण भारत और लंका में पाए जाते हैं। ये ऊँटों के समान लेटते हैं। ये अकेले घूमते हैं तथा छिपने वाले (secretive) और वनवासी होते हैं। मादा एक बार में एक या दो बच्चों को जन्म देती हैं।
 
=== जिराफ कुल (Giraffidae) ===
अफ्रीका में पाए जानेवाले इस कुल के जिराफ की गर्दन तथा पैर बहुत लंबे होते हैं। चित्रोष्ट्र (Camelopardalis) 18 से 20 फुट तक लंबा होता है। इसके सिर पर तीन से पाँच तक त्वचावेष्टित सींग होते हैं। यह छुई मुई और अन्य पेड़ों की पत्तियाँ खाकर निर्वाह करता है। ओकापिया (Ocapia) अपेक्षाकृत छोटा होता है और इसकी गर्दन भी छोटी होती है।
 
=== मृग कुल (Cervidae) ===
इस कुल में मृग, वाहमृग (reindeer), वाहकुरंग (caribou) आदि सम्मिलित हैं। नर मृग को ठोस चूर्णमय (अस्थिमय) दो श्रृंगाभ (antlers) होते हैं, जो हर साल झड़ते हैं और उनकी जगह पर नए उग आते हैं। इसकी निम्नलिखित जातियाँ हैं :
 
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4. '''शाखिश्रृंग महामृग''' (Cervus devanceli, बारासिंगा या दलदली मृग) - यह केवल भारत में हिमालय की तराई और गंगा तथा सिंध नदी के मैदानों में पाया जाता है। इसका सिर लंबा और थूथन सँकरा होता है। इसकी मादा का रंग नर की अपेक्षा हलका होता है। मृगछौने पर सफेद चित्तियाँ होती हैं। इसके दो श्रृंगाभ होते हैं, जिनपर 12 नोकें होती हैं। इसके कारण इसका नाम बारासिंगा पड़ा है। यह यूथचारी है तथा घास खाता है और गरमियों में जलाशयों के निकट रहता है।
 
=== बोविडी कुल (Bovidae) ===
इस कुल के नर और मादा दोनों के सींग खोखले होते हैं। सींग युग्मिन, शाखाहीन और केराटिन (keratin) से बने होते हैं। ये ललाटास्थियों के अस्थिमय क्रोड़ के आधार पर धीरे धीरे और लगातार बढ़ते रहते हैं। कुछ वंशों का वर्णन निम्नलिखित है :
 
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* [[भैंस]] (Bos bubalus) - यह पूर्व तथा मध्य भारत के मैदानों में पाई जाती है। इसका माथा लंबा, टाँग छोटी, खुर बड़े, पीठ सीधी, पिछले घुटनों को छूती हुई दुम, बाल पतले और खुरदरे, तथा उभरी हुई रैखाओं से चिन्हित, त्रिकोणाकार, विचित्र सींग होता है। पालतू भैंसे का उपयोग कर्षक पशु के रूप में होता है। यह बहुत बलवान पर मंद चालवाला होता है। इसे जल प्रिय है, प्राय: गर्मियों में दिन का समय पानी में पड़े पड़े बिताता है। दुग्ध पशु के रूप में भैंस मूल्यवान है।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[विषमांगुल]]
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[[श्रेणी:जन्तुओं का वर्गिकरण]]
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[[uk:Парнокопитні]]
[[vi:Bộ Guốc chẵn]]
[[za:Youdaezmoeg]]
[[zea:Evenoevihen]]
[[zh:偶蹄目]]
[[zh-min-nan:Ngó͘-tê tōng-bu̍t]]
[[zh-yue:偶蹄目]]
 
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