'''शिवराम हरि राजगुरु''' ([[जन्म]]:१९०८-[[मृत्य्मृत्यु]]:१९३१, [[अंग्रेजी]]: Shivaram Rajguru, [[गुजराती]]: રાજગુરુ, [[मलयालम]]: ശിവറാം രാജ്ഗുരു, [[मराठी]]: शिवराम हरी राजगुरू) [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । इन्हें [[भगत सिंह]] और [[सुखदेव]] के साथ २३ मार्च १९३१ को [[फाँसी]] पर लटका दिया गया था । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के [[इतिहास]] में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी ।
'''शिवराम हरि राजगुरु''' का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् १९६५ (विक्रमी) तदनुसार सन् १९०८ में [[पुणे]] [[जिला]] के खेडा [[गाँव]] में हुआ था । ६ वर्ष की आयु में [[पिता]] का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये [[वाराणसी]] विद्याध्ययन करने एवं [[संस्कृत]] सीखने आ गये थे । इन्होंने [[हिन्दू]] धर्म-ग्रंन्थों तथा [[वेदो]] का अध्ययन तो किया ही [['''लघु सिद्धान्त कौमुदी]]''' जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति [[शिवाजी]] की छापामार युद्ध-शैली के बडे प्रशंसक थे ।
[[वाराणसी]] में रहतेविद्याध्ययन करते हुए इनकाराजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ । चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी [['''हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी]] ''' से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें '''रघुनाथ''' के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], सरदार [[भगत सिंह]] और [[जतीन्द्रनाथ'''यतीन्द्रनाथ दास]]''' आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था।
२३ मार्च १९३१ को इन्होंने [[भगत सिंह]] तथा सुखदेव के साथ [[लाहौर]] सेण्ट्रल जेल में [[फाँसी]] के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को [[हिन्दुस्तान]] के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया ।