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[[:w:Jagadguru|जगद्गुरु]] [[सनातन धर्म]] में प्रयुक्त एक उपाधि है जो पारम्परिक रूप से वेदान्त दर्शन के उन [[आचार्य|आचार्यों]] को दी जाती है जिन्होंने प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और मुख उपनिषद्) पर संस्कृत में भाष्य रचा है। मध्यकाल में भारत में कई प्रस्थानत्रयीभाष्यकार हुए थे यथा [[शंकराचार्य]], [[निम्बार्काचार्य]], [[रामानुजाचार्य]], [[मध्वाचार्य]], रामानन्दाचार्य और अंतिम थे
[[वल्लभाचार्य]] (१४७९ से १५३१ ई)। वल्लभाचार्य के भाष्य के पश्चात् पाँच सौ वर्षों तक संस्कृत में प्रस्थानत्रयी पर कोई भाष्य नहीं लिखा गया।<ref name="subedi">{{cite web | last=संवाददाता | first=चित्रकूट | publisher=जागरण याहू | title = श्री सीता राम विवाह के आनंदित क्षणों मे झूमे भक्त | url = http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_7168843.html | date = जनवरी १२, २०११| accessdate=जुलाई १२, २०११ | quote=हरिद्वार से आये आचार्य चंद्र दत्त सुवेदी ने कहा कि प्रस्थानत्रयी पर सबसे पहले भाष्य आचार्य शंकर ने लिखा और अब वल्लभाचार्य के छह सौ [sic] साल बाद जगद्गुरु स्वामी राम भद्राचार्य जी ने लिखा।}}</ref>
 
जून २४, १९८८ ई के दिन काशी विद्वत् परिषद् वाराणसी ने रामभद्रदास का तुलसीपीठस्थ जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में चयन किया।<ref name="dinkarjagadguru"/> ३ फ़रवरी १९८९ को [[प्रयाग]] में [[कुंभ मेला|महाकुंभ]] में रामानन्द सम्प्रदाय के तीन अखाड़ों के महन्तों, सभी सम्प्रदायों, खालसों और संतों द्वारा सर्वसम्मति से काशी विद्वत् परिषद् के निर्णय का समर्थन किया गया।<ref>अग्रवाल २०१०, पृष्ठ ७८१।</ref> इसके बाद १ अगस्त १९९५ को अयोध्या में दिगंबर अखाड़े ने रामभद्रदास का जगद्गुरु रामानन्दाचार्य के रूप में विधिवत अभिषेक किया।<ref name="kbs-bio"/> अब रामभद्रदास का नाम हुआ '''जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य'''। इसके बाद उन्होंने ब्रह्म सूत्र, भगवद्गीता, और ११ उपनिषदों (कठ, केन, माण्डूक्य, ईशावास्य, प्रश्न, तैत्तिरीय, ऐतरेय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और मुण्डक) पर संस्कृत में श्रीराघवकृपाभाष्य की रचना की। इन भाष्यों का प्रकाशन १९९८ में हुआ।<ref name="dinkarbiblio"/> वे पहले ही नारद भक्ति सूत्र और रामस्तवराजस्तोत्र पर संस्कृत में राघवकृपाभाष्य की रचना कर चुके थे। इस प्रकार स्वामी रामभद्राचार्य ने ५०० वर्षों में पहली बार संस्कृत में प्रस्थानत्रयीभाष्यकार बनकर लुप्त हुई जगद्गुरु परम्परा को पुनर्जीवित किया और रामानन्द सम्प्रदाय को स्वयं रामानन्दाचार्य द्वारा रचित ''आनन्दभाष्य'' के बाद प्रस्थानत्रयी पर दूसरा संस्कृत भाष्य दिया।<ref name="subedi"/><ref>{{cite book | title = हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली ४ | last=द्विवेदी | first=मुकुन्द | publisher=राजकमल प्रकाशन | year=२००७ | origyear=प्रथम संस्करण १९८१ | edition=संशोधित, परिवर्धित | location=नई दिल्ली, भारत | id=ISBN 972812671358-5 | pages=पृष्ठ २७३}}</ref>