"पारसी रंगमंच": अवतरणों में अंतर

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80 वर्ष तक पारसी रंगमंच और इसके अनेक उपरूपों ने मनोरंजन के क्षेत्र में अपना सिक्का जमाए रखा। [[सिनेमा|फिल्म]] के आगमन के बाद पारसी रंगमंच ने विधिवत् अपनी परंपरा सिनेमा को सौंप दी। पेशेवर रंगमंच के अनेक नायक, नायिकाएं सहयोगी कलाकार, गीतकार, निर्देशक, संगीतकार सिनेमा के क्षेत्र में आए। आर्देशिर ईरानी, वाजिया ब्रदर्स, [[पृथ्वीराज कपूर]], सोहराब मोदी और अनेक महान दिग्गज रंगमंचकी प्रतिभाएं थीं जिन्होंने शुरुआती तौर में भारतीय फिल्मों को समृद्ध किया।
 
==पारसी रंगमंच की चार प्रमुख विशेषताएँ==
पारसी रंगमंच की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं। पहला, [[पर्दा|पर्दों]] का नायाब प्रयोग। मंच पर हर दृश्य के लिए अलग अलग पर्दे प्रयोग में लाए जाते हैं ताकि दृश्यों में गहराई और विश्वसनीयता लाई जा सके। आजकल फिल्मों में अलग अलग लोकेशन दिखाए जाते हैं। पारसी रंगमंच में ये काम पर्दों के सहारे होता है। इसलिए पारसी रंगमंच की मंच सज्जा का विधान बड़ा ही जटिल होता है। दूसरी खासियत उनमें संगीत, नृत्य और गायन का प्रयोग है। पारसी नाटकों में नृत्य और गायन का यही मेल हिंदी फिल्मों में गया। इसी वजह से भारतीय फिल्में पश्चिमी फिल्मों से अलग होने लगीं। तीसरी खूबी वस्त्र सज्जा यानी कॉस्ट्यूम है। पारसी रंगमच पर अभिनेता (या अभिनेत्री) जो कपड़े पहनते हैं उसमें रंगों और अलंकरण का खास ध्यान रखा जाता है। चूंकि दर्शक बहुत पीछे तक बैठे होतें हैं इसलिए उनको ध्यान में ऱखते हुए वस्त्रों और पात्रों के अलंकरण में रंगों की बहुतयात होती है। पारसी रंगमंच की चौथी बड़ी खूबी लंबे संवाद हैं। पारसी नाटकों के संवाद ऊंची आवाज में बोले जाते हैं इसलिए संवादों में अतिनाटकीयता भी रहती है।