"शेयर बाजार की पारिभाषिक शब्दावली": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 77:
* '''लुढ़कना (एक ही दिन में भारी गिरावट)''' : शेयर बाजार का इंडेक्स सेंसेक्स या फिर निप्टी यदि एक ही दिन में काफी गिर जाये तो इसे लुढ़कना अर्थात भारी गिरावट कहा जाता है। सामान्यतः एक ही दिन में 400-500 अंकों की गिरावट बाजार के लुढ़कने या फिर इतने ही अंकों की वृद्धि बाजार के उछलने का प्रतीक माना जाता है।
 
* '''मार्केÀटमार्केट ब्रेड्थ''' : बाजार की चाल एवं प्रवृत्ति को दर्शाने वाली बातों को मार्केÀटमार्केट ब्रेड्थ कहा जाता है। शेयर बाजार में जब यह जानना हो कि बाजार की चाल सकारात्मक है या नकारात्मक तो इसका अनुमान निकालने के लिए मार्केÀट ब्रेड्थ को देखना चाहिए। एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कंपनियों में से जितनी भी कंपनियों के दिन भर के दौरान सौदे होते हैं उनमें से बढ़ने वाली और घटने वाली दोनों स्क्रिपें होती हैं। यदि बढ़ने वाली स्क्रिपों की संख्या अधिक हो तो मार्केÀट ब्रेड्थ पॉजिटिव और यदि घटने वाली स्क्रिपों की संख्या अधिक हो तो मार्केÀट ब्रेड्थ निगेटिव कही जाती है। उदाहरण स्वरूप बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों में यदि किसी दिन 2500 स्क्रिपों में सौदे हुए हों और उसमें से 1500 स्क्रिपों के भाव बढ़े हों और 1000 स्क्रिपों के भाव घटे हों मार्केÀट ब्रेड्थ पॉजिटिव अर्थात सकारात्मक कही जाती है। इसके विपरीत होने पर मार्केÀटमार्केट ब्रेड्थ निगेटिव अर्थात नकारात्मक कहलाती है। बाजार का रूझाान जानने के लिए निवेशकों को घटने वाली और बढ़ने वाली स्क्रिपों पर ध्यान देना चाहिए। यह संख्या शेयर बाजार की वेबसाइट पर उपलब्ध है। बीएसई और एनएसई दोनों की वेबसाइट पर मार्केÀटमार्केट ब्रेड्थ रोज-रोज ऑन लाइन देखने को मिलती है। सेंसेक्स की 30 स्क्रिपों में से 25 स्क्रिपें बढ़ी हों और 5 घटी हों तो सेंसेक्स की मार्केÀटमार्केट ब्रेड्थ पॉजिटिव कही जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक इंडेक्स की अपनी -अपनी मार्केÀट ब्रेड्थ जानी जा सकती है।
 
* '''प्लेज शेयर (गिरवी रखे गये शेयर)''' : कोई भी निवेशक या खुद कंपनियों के प्रमोटर शेयरों को बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों के पास गिरवी रखकर ऋण ले सकते हैं। इस प्रकार ऋण के लिए बतौर गारंटी गिरवी रखे गये शेयरों को प्लेज शेयर कहा जाता है। कंपनियां इस मार्ग से शेयर गिरवी रखकर ऋण सुविधाएं लेती हैं और उसका उपयोग कंपनी के विकास कार्यों पर करती हैं। ऋण लेने के लिए यह एक आसान एवं अच्छा मार्ग है। परंतु सत्यम कंप्यूटर घोटाले के बाद हुई जांच में सेबी का ध्यान इस तरफ गया कि कंपनी के प्रमोटर भारी संख्या में शेयर गिरवी रखकर धन इकùा करके उसका अन्यत्र उपयोग कर लेते हैं, जिससे कंपनी को कोई फायदा नहीं होता। इस विषय में पारदर्शिता के अभाव में निवेशकों को इस सच्चाई का पता नहीं लग पाता है कि प्रमोटरों की कंपनी में कितनी शेयरधारिता है क्योंकि प्रमोटरों की शेयरधारिता ही इस बात का संकेत है कि प्रमोटरों का कंपनी के साथ कितना हित जुड़ा हुआ है। सत्यम घोटाले के उजागर होने के बाद ही सेबी ने समय-समय पर प्रमोटरों द्वारा गिरवी रखे गये उनके हिस्से के शेयरों की जानकारी घोषित करने का दिशा-निर्देश जारी किया। निवेशकों को प्रमोटरों की शेयरधारिता पर ध्यान रखना चाहिए।
पंक्ति 97:
* '''रिस्ट्रक्चरिंग''' : सामान्य अर्थों में इसका मतलब है पुनर्गठन। कार्पोरेट भाषा में कहें तो जब कोई कंपनी खास उद्देश्यों के साथ अपने घाटे में कमी लाने या लाभदायिकता बढ़ाने के प्रयास स्वरूप जो कुछ फेरबदल करती है उसे स्ट्रक्चरिंग कहा जाता है। निवेशकों को कंपनी द्वारा उठाये गये इस प्रकार के कदमों का ध्यान से अध्ययन करना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी की स्थिति सुधारना होता है।
 
* '''रिहेबिलाइजेशन अथवा रिवाइवल''' : ''' : जो कंपनी कंगाल होकर बीमार पड़ गयी हो तो उसके पुनर्रूत्थान की संभावना होने पर इसका प्रयास शुरू कर दिया जाता है। इसके लिए बीआईएफआर अपना मत व्यक्त करती है तथा कंपनी के प्रबंधन को ऐसा करने के लिए उचित समय देती है। ऐसी कंपनियों के पुनर्रूत्थान की प्रक्रिया पर निवेशकों को ध्यान रखना चाहिए और उसके आधार पर निवेश करने का निर्णय लेना चाहिए। हालांकि ऐसी बीमार और पुनर्रूत्थान की संभावनाओं वाली कंपनियों के भाव काफी गिर जाते हैं और उनमें सौदे भी नाम मात्र के होते हैं, परंतु यदि कोई मजबूत ग्रुप ऐसी कंपनी को संभालने के लिए तैयार हो जाये तो कंपनी के शेयरों का भाव रिकवर हो सकता है। ऐसी कंपनियों में जहां निवेश जोखिम भरा होता है वहीं इनमें लाभ की संभावनाएं भी रहती है।
 
* '''रेटिंग''' : कंपनी के वित्तीय परिणाम, कार्य परिणाम, ट्रैक रिकॉर्ड आदि के आधार पर कंपनी की प्रतिभूतियों या कंपनियों को रेटिंग प्रदान की जाती है, जो कंपनी की साख एवं पात्रता का स्तर दर्शाती है। कंपनी या संस्थाओं के अतिरिक्त देश को भी रेटिंग उपलब्ध करायी जाती है। उदाहरण स्वरूप स्टैंडर्ड एंड पुअर ( एस एंड पी), मूडीज जैसी संस्थाएं देश की समग्र आर्थिक स्थिति के आधार पर संबंधित राष्ट्र को भी रेटिंग प्रदान करती हैं। समय-समय पर मौजूदा स्थितियों के अनुवर्ती रेटिंग को अपग्रेड या डाउनग्रेड किया जाता है। किसी देश की रेटिंग ऊंची और अच्छी होती है तो विश्व के अन्य देशों के निवेशक उक्त देश के उद्योग धंधों में निवेश करने के लिए प्रेरित होते हैं।