"चैतन्य महाप्रभु": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो r2.5.2) (robot Adding: id:Caitanya Mahaprabhu |
छो Added category:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना |
||
पंक्ति 17:
| school_tradition = [[गौड़ीय मत]]
}}
'''चैतन्य महाप्रभु'''
==जन्म तथा प्रारंभिक जीवन==
[[चैतन्य चरितामृत]] के अनुसार चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन [[१४८६]] की [[फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ला]] [[पूर्णिमा]] को [[पश्चिम बंगाल]] के [[नवद्वीप]] (नादिया) नामक गांव में हुआ,
इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व मां का नाम शचि देवी था।<ref name = "जागरण ">
==धार्मिक दीक्षा==
पंक्ति 29:
हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे॥
</blockquote></center>
[[चित्र:Mahaprabhu
यह अठारह शब्दीय (३२ अक्षरीय) कीर्तन महामंत्र निमाई की ही देन है। इसे '''तारकब्रह्ममहामंत्र''' कहा गया, व [[कलियुग]] में जीवात्माओं के उद्धार हेतु प्रचारित किया गया था।<ref name = "जागरण "/> जब ये कीर्तन करते थे, तो लगता था मानो ईश्वर का आह्वान कर रहे हैं। सन [[१५१०]] में संत प्रवर [[श्री पाद केशव भारती]] से संन्यास की दीक्षा लेने के बाद निमाई का नाम कृष्ण चैतन्य देव हो गया। मात्र २४ वर्ष की आयु में ही इन्होंने गृहस्थ आश्रम का त्याग कर सन्यास ग्रहण किया।<ref name = "जागरण "/> बाद में ये चैतन्य महाप्रभु के नाम से प्रख्यात हुए। सन्यास लेने के बाद जब गौरांग पहली बार [[जगन्नाथ मंदिर, पुरी|
चैतन्य महाप्रभु संन्यास लेने के बाद [[नीलांचल]] चले गए। इसके बाद दक्षिण भारत के श्रीरंग क्षेत्र व [[सेतु बंध]] आदि स्थानों पर भी रहे। इन्होंने देश के कोने-कोने में जाकर हरिनाम की महत्ता का प्रचार किया। सन [[१५१५]] में [[विजयादशमी]] के दिन [[वृंदावन]] के लिए प्रस्थान किया। ये वन के रास्ते ही वृंदावन को चले। कहते हैं, कि इनके हरिनाम उच्चारण से उन्मत्त हो कर जंगल के जानवर भी इनके साथ नाचने लगते थे। बड़े बड़े जंगली जानवर जैसे शेर, बाघ और हाथी आदि भी इनके आगे नतमस्तक हो प्रेमभाव से नृत्य करते चलते थे। [[कार्तिक]] [[पूर्णिमा]] को ये वृंदावन पहुंचे।<ref name = "जागरण "/> वृंदावन में आज भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन गौरांग का आगमनोत्सव मनाया जाता है। यहां इन्होंने इमली तला और अक्रूर घाट पर निवास किया। वृंदावन में रहकर इन्होंने प्राचीन श्रीधाम वृंदावन की महत्ता प्रतिपादित कर लोगों की सुप्त भक्ति भावना को जागृत किया। यहां से फिर ये [[प्रयाग]] चले गए। इन्होंने [[काशी]], [[हरिद्वार]], [[शृंगेरी]] ([[कर्नाटक]]), [[कामकोटि पीठ]] ([[तमिलनाडु]]), [[द्वारिका]], [[मथुरा]] आदि स्थानों पर रहकर भगवद्नाम संकीर्तन का प्रचार-प्रसार किया। चैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष [[जगन्नाथ पुरी]] में रहकर बिताएं। यहीं पर सन [[१५३३]] में ४७ वर्ष की अल्पायु में रथयात्रा के दिन उन्होंने श्रीकृष्ण के परम धाम को प्रस्थान किया।
पंक्ति 44:
==षण्गोस्वामी==
{{main|षण्गोस्वामी}}
[[हिंदू धर्म]] में नाम-जप को ही वैष्णव धर्म माना गया है और भगवान श्रीकृष्ण को प्रधानता दी गई है। चैतन्य ने इन्हीं की उपासना की और नवद्वीप से अपने छः प्रमुख अनुयायियों को वृंदावन भेजकर वहां सप्त देवालयों की आधारशिला रखवाई। गौरांग ने जिस गौड़ीय संप्रदाय की स्थापना की थी। उसमें षड्गोस्वामियों की अत्यंत अहम भूमिका रही। इन सभी ने भक्ति आंदोलन को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया। साथ ही वृंदावन के सप्त देवालयों के माध्यम से विश्व में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया। रसिक कवि कुल चक्र चूडामणि श्री [[जीव गोस्वामी]] महराज षण्गोस्वामी गणों में अन्यतम थे। उन्होंने परमार्थिक नि:स्वार्थ प्रवृत्ति से युक्त होकर सेवा व जन कल्याण के जो अनेकानेक कार्य किए वह स्तुत्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के सिद्धान्त अनुसार हरि-नाम में रुचि, जीव मात्र पर दया एवं वैष्णवों की सेवा करना उनके स्वभाव में था। वह मात्र २० वर्ष की आयु में ही सब कुछ त्याग कर वृंदावन में अखण्ड वास करने आ गए थे।<ref name = "सेंट्स ">
*'''श्री [[गोपाल भट्ट गोस्वामी]]''', बहुत कम आयु में ही [[गौरांग]] की कृपा से यहां आ गए थे। दक्षिण भारत का भ्रमण करते हुए गौरांग चार माह इनके घर पर ठहरे थे। बाद में इन्होंने गौरांग के नाम संकीर्तन में प्रवेश किया।<ref>
*'''श्री [[रघुनाथ भट्ट गोस्वामी]]''', सदा हरे कृष्ण का अन्वरत जाप करते रहते थे, और [[श्रीमद भागवत]] का पाठ नियम से करते थे। राधा कुण्ड के तट पर निवास करते हुए, प्रतिदिन भागवत का मीठा पाठ स्थानीय लोगों को सुनाते थे, और इतने भावविभोर हो जाते थे, कि उनके प्रेमाश्रुओं से भागवत के पन्ने भी भीग जाते थे। <ref>
*'''श्री [[रूप गोस्वामी]]''' ([[१४९३]] – [[१५६४]]), का जन्म [[१४९३]] ई (तदनुसार १४१५ शक.सं.) को हुआ था। इन्होंने २२ वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम त्याग कर दिया था। बाद के ५१ वर्ष ये [[ब्रज]] में ही रहे।<ref>
*'''श्री [[सनातन गोस्वामी]]''' ([[१४८८]]-[[१५५८]]), चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य थे। उन्होने गौड़ीय वैष्णव भक्ति सम्प्रदाय की अनेकों ग्रन्थोंकी रचना की। अपने भाई रूप गोस्वामी सहित वृन्दावन के छ: प्रभावशाली गोस्वामियों में वे सबसे ज्येष्ठ थे।
*'''श्री [[जीव गोस्वामी]]'''([[१५३३]]-[[१५४०]]), का जन्म श्री वल्लभ अनुपम के यहां [[१५३३]] ई०(तद.१४५५ शक. [[भाद्रपद]] शुक्ल द्वादशी को हुआ था। श्री जीव के चेहरे पर सुवर्ण आभा थी, इनकी आंखें कमल के समान थीं, व इनके अंग-प्रत्यंग में चमक निकलती थी। श्री [[रूप गोस्वामी]] ने इन्हें [[श्रीमद्भाग्वत]] का पाठ कराया। और अन्ततः ये वृंदावन पहुंचे। वहां इन्होंने एक मंदिर भी बनवाया। <ref>श्री चैतन्य चरितामृतम, आदि-लीला, १०.८५</ref>
पंक्ति 60:
<center><blockquote>
:''श्रीकृष्ण ही एकमात्र देव हैं। वे मूर्तिमान सौन्दर्य हैं, प्रेमपरक है। उनकी तीन शक्तियाँ- परम ब्रह्म शक्ति, माया शक्ति और विलास शक्ति हैं। विलास शक्तियाँ दो प्रकार की हैं- एक है प्राभव विलास-जिसके माध्यम से श्रीकृष्ण एक से अनेक होकर गोपियों से क्रीड़ा करते हैं। दूसरी है वैभव-विलास- जिसके द्वारा श्रीकृष्ण चतुर्व्यूह का रूप धारण करते है। चैतन्य मत के व्यूह-सिद्धान्त का आधार प्रेम और लीला है। गोलोक में श्रीकृष्ण की लीला शाश्वत है। प्रेम उनकी मूल शक्ति है और वही आनन्द का कारण है। यही प्रेम भक्त के चित्त में स्थित होकर महाभाव बन जाता है। यह महाभाव ही राधा है। राधा ही कृष्ण के सर्वोच्च प्रेम का आलम्बन हैं। वही उनके प्रेम की आदर्श प्रतिमा है। गोपी-कृष्ण-लीला प्रेम का प्रतिफल है।''<ref name = "सहित्य संग्रह ">{{cite book |last= रमण|first= रेवती|authorlink= रेवती रमण|coauthors= |editor= |others= |title= जातीय मनोभूमि की तलाश|origdate= |origyear= |origmonth= |url= http://vrihad.com:5200/bs/home.php?bookid=713|format= |accessday= |accessmonth= |accessyear= |edition= |date= २३|year= २००५|month= मई|publisher= भारतीय ज्ञानपीठ|location= |language=हिन्दी |id= ७१३|doi = |pages= १९२|chapter= |chapterurl= |quote = }}
</blockquote></center>
==यह भी देखें==
Line 81 ⟶ 80:
{{चैतन्य महाप्रभु}}{{भक्ति काल के कवि }}
{{pp-semi-template|small=yes}}▼
[[श्रेणी: भक्तिकाल के कवि]]▼
[[श्रेणी:कृष्णाश्रयी शाखा के कवि]]
[[श्रेणी:चैतन्य महाप्रभु]]
[[श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना]]
▲{{pp-semi-template|small=yes}}
[[bn:চৈতন্য মহাপ্রভু]]
|