"पक्षीविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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'''पक्षीविज्ञान''' (Ornithology) जीवविज्ञान की एक शाखा है। इसके अंतर्गत [[पक्षी|पक्षियों]] की बाह्य और अंतररचना का वर्णन, उनका वर्गीकरण, विस्तार एवं विकास, उनकी दिनचर्या और मानव के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आर्थिक उपयोगिता इत्यादि से संबंधित विषय आते हैं। पक्षियों की दिनचर्या के अंतर्गत उनके आहार-विहार, प्रव्रजन, या एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरण, अनुरंजन (courtship), नीड़ निर्माण, मैथुन, प्रजनन, संतान का लालन पालन इत्यादि का वर्णन आता है। आधुनिक फोटोग्राफी द्वारा पक्षियों की दिनचर्याओं के अध्ययन में बड़ी सहायता मिली है। पक्षियों की बोली के फोनोग्राफ रेकार्ड भी अब तैयार कर लिए गए हैं।
 
== इतिहास ==
पक्षीविज्ञान का प्रारंभ बहुत ही प्राचीन है। [[अरस्तू]] (Aristotle) के लेखों मे पक्षी संबंधी अनेक सही वैज्ञानिक अवलोकनों का उल्लेख पाया जाता है। किंतु विज्ञान की एक शाखा के रूप में पक्षीविज्ञान की मान्यता अपेक्षया आधुनिक है। घरेलू चिड़ियों की आकर्षक सुंदरता, आर्थिक उपयोगिता और चिड़ियों के शिकार द्वारा मनुष्य का मनोरजंन इत्यादि अनके कारणों से, अन्य प्राणियों की अपेक्षा, पक्षी वर्ग भली भाँति विख्यात है और व्यावसायिक तथा शौकिया दोनों ही प्रकार के वैज्ञानिकों के लिए आकर्षण का विषय रहा है। पक्षियों के विषय में अनेक वैज्ञानिक खोजें की गई और नवीन ज्ञान प्राप्त हुए हैं, जिनका समावेश पक्षी संबंधी अनेक नवीन पुस्तिकाओं में किया गया है। यद्यपि ये पुस्तिकाएँ पूर्णत: वैज्ञानिक नहीं हैं, फिर भी इनसे अनेक वैज्ञानिक वृत्तांत उपलब्ध होते हैं। यही कारण है कि पृथ्वी के उन खंडों में भी, जो अधिक बीहड़ जंगल हैं और जिनकी भली भाँति छानबीन नहीं हुई हैं, बहुत कम नई जाति के पक्षियों का पता लग पाया है, क्योंकि उन स्थानों के भी अधिकांश पक्षियों के विषय में बहुत पहले ही अधिक खोज और जानकारी हो चुकी है। किंतु यही के रूप में प्राप्त होनेवाले पक्षियों के विषय में नहीं क्योंकि पक्षियों के जीवाश्म के विषय में सम समय आश्चर्यजनक खोजें हुई हैं और अभी बहुत अधिक खोज की जाती है।
 
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जीवों के वैज्ञानिक नामकरण से, जिससे किसी भी देश और भाषा के वैज्ञानिक प्राणियों तथा पक्षियों की जाति को पहचान सकें, जीवविज्ञान में बहुत बड़ी प्रगति हुई है। जीवों के वैज्ञानिक नामकरण की पद्धति स्वीडेन निवासी कैरोलस लीनियस (Carlous Linnaeus) के ग्रंथ "सिस्टेमा नैचुरी" (Systema Naturae) के दशम संस्करण (1758 ई.) से अपनाई गई हैं। इस पद्धति के अनुसार किसी प्राणी के नाम के दो या तीन खंड होते हैं। नाम का प्रथम खंड उसके वंश (genus) को बताता है, दूसरा खंड उसकी जाति (species) को और तीसरा खंड उसकी उपजाति (subspecies) को, जो भौगोलिक क्षेत्र अथवा उसकी अन्य विशेषता पर आधारित होती है। उदाहरणार्थ साधारण भारतीय घरेलू [[कौआ|कौए]] का वैज्ञानिक नाम सामान्य भस्मच्छवि काक (Corvus splendens) और दक्षिण भारतीय कौए का नाम दक्षिण कृष्ण काक (Corvus levaillanti culminatus) और भारतीय जंगली कौए का नाम सामान्य कृष्ण काक (Corvus machrrorhynchus macrrophynchus) है। पक्षीविज्ञानवेत्ताओं ने नामकरण की इस पद्धति को 1910 ई. से अपना लिया था, किंतु अन्य प्राणिवर्गों के अध्ययनकर्ताओं ने इसे अब अपनाना प्रारंभ कर दिया है। भारतीय पक्षियों के विषय में अनेक व्यक्तियों ने अच्छे काम किए हैं और पुस्तकें लिखी हैं।
 
== भारतीय संस्कृति में पक्षी ==
[[भारतीय संस्कृति]] में पक्षियों का बहुत महत्व है। विभिन्न देवताओं के वाहन के रूप में उन्हें सम्मान मिलता रहा है यथा विष्णु का गरुड, ब्रह्मा और [[सरस्वती]] का हंस, [[कामदेव]] के तोता, कार्त्तिकेय का मंयूर, इंद्र तथा अग्नि का अरुण क्रुंच (फलैमिंगो), वरुण का चक्रवाक (शैलडक) आदि। लक्ष्मी के वाहन उल्लू आदि सम्मान नहीं मिलता है तब वह वास्तव में लक्ष्मी को कम सम्मान देने की इच्छा से। [[कृष्ण]] का ‘मोर पंख’ तो सभी भारतीयों के हृदय में स्थान पा चुका है। हंसों का ‘नीर-क्षीर’ न्याय तो प्रसिद्ध ही है। पहले तो मैं इसे कवियों की कल्पना ही मानता था किंतु जब अरुण क्रुंचों को बहते पानी में से (जिसमें मानों ‘नीर-क्षीर’ मिला हो) अपनी विशेष छन्नीदार चोंचो की सहायता से अपने लिए पौष्टिक भोजन (क्षीर) निकालकर खाते हुए देखा तब संस्कृति साहित्यकारों की अवलोकन शक्ति और रचना शक्ति की भूरि-भूरि प्रशंसा ही कर सका।
 
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[[चरकसंहिता]] का संकलन काल सातवीं शती ईशा पूर्व है (भारतीय विज्ञान के कर्णधार डॉ. सत्यप्रकाश, Research Institute of Ancient Scientific Studies , Delhi) । चरक संहिता, [[संगीत रत्नाकार]] तथा [[भरतमुनि]] के [[नाट्यशास्त्र]] में पक्षियों की चारित्रिक विशेषताओं का सूक्ष्म वर्णन है जो वैज्ञनिक पद्धति पर आधारित है। किंतु इसके बाद के उपलब्ध साहित्य से ऐसा लगता है कि, बाद में, संभवतया बर्बरों से अपनी रक्षा में जूझते भारत में, पक्षियों का अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टि से न किया जा सका। हां, ससंकृत साहित्य में पक्षियों का वर्णन सूक्ष्म अवलोकन के आधार पर, बहुत ही कोमलता तथा अनुरागपूर्ण भावनाओं के साथ किया गया है। मिथुनरत क्रौंच के वध को देखकर आदिकवि [[वाल्मिकि]] का हृयद करुण रस से ओतप्रोत होकर कविता के रूप में बह निकला था, ‘‘मा निषाद प्रतिष्ठानम् त्वम्....’’ अर्थात हे निषाद तुम्हें समाज में प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी....। हां, [[मुगल काल]] में बाबर, हुमायूं तथा जहांगीर ने, जो बहुत सिकार प्रेमी थे, पक्षियों का सूक्ष्म अवलोकन किया और लिखा। लोक साहित्य में भी पक्षियों का विशेष स्थान है, किंतु [[हिंदी साहित्य]] में पक्षियों के वैज्ञानिक अध्ययन तथा सूक्ष्म अवलोकन की परंपमरा किंही कारणों से आगे नहीं बढ़ी। और पक्षियों का जो भी वर्णन है वह अधिकतर बंधी-बंधाई रुढ़ि पर है चाहे वे पक्षी चातक, चकोर, पपीहा, सारस चक्रवाक आदि हों अथवा तोता, मैना, हंस, उल्लू, कौआ, गिद्ध, अबाबील, खंजन आदि हों। किंतु इसके साथ यह दुखद सच है कि आज सामान्य विद्यार्थी या व्यक्ति को पक्षियों तथा पेड़-पौधों की सही पहचान बतलाने वाला रुचिकर साहित्य, हिन्दी में, नहीं के बराबर है।
 
== पक्षिविज्ञान की तकनीकें ==
पक्षिविज्ञान में तरह-तरह के तरीके एवं औजार प्रयुक्त होते हैं। नये आविष्कार आदि को शीघ्र ही इसमें काम में लाने की कोशिश की जाती है। पक्षिविज्ञान से सम्बन्धित तकनीकों को मुख्यत: दो भागों में बांता जा सकता है -
* नमूनों के अध्ययन से सम्बन्धित तकनीकें
* कार्यक्षेत्र में प्रयुक्त तनीकें
 
== इन्हें भी देखें ==
[[सालिम अली पक्षिविज्ञान एवं प्रकृतिक इतिहास केंद्र]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://sacon.org/ सालिम अली पक्षि-विज्ञान एवं प्रकृति-विज्ञान केंद्र, कोयंबत्तूर]
* ''[http://www.sil.si.edu/DigitalCollections/NHRareBooks/Martinet/martinet.htm Ornithologie]'' (1773-1792) Francois Nicholas Martinet Digital Edition Smithsonian Digital Libraries
* [http://www.westmidlandbirdclub.com/club/older.htm List of oldest ornithological organisations in the world]
* [http://www.bioweb.uncc.edu/bierregaard/ornith__in_na.htm History of ornithology in North America]
* [http://www.scricciolo.com/cina01.htm History of ornithology in China]
* [http://rmc.library.cornell.edu/ornithology/guide/hillguide07.htm Hill ornithology collections]
* [[Robert Ridgway]]'s [http://contentdm.lindahall.org/u?/Natural_His,0 ''A Nomenclature of Colors'' (1886)] and [http://contentdm.lindahall.org/u?/Natural_His,174 ''Color Standards and Color Nomenclature'' (1912)] - text-searchable digital facsimiles at Linda Hall Library
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